‘नुक्कड नाटक’ जब बन गये थे ‘आंदोलन’
भारत में नुक्कड नाटक को आन्दोलन बना देने वाले सफदर हाशमी का आज जन्म दिन है। सफदर हाशमी भ्रष्ट राजनेताओं के लिए हमेशा सर दर्द बने रहे। सफदर हाशमी का उत्तराखंड के श्रीनगर (गढवाल) से बडी करीबी रिश्ता रहा है। गढ़वाल विश्वविद्यालय जब नया-नया अस्तित्व में आया था उसी दौरान 1976 में वे यहाँ एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे। उन्होंने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज से एम.ए. किया था। गढ़वाल विश्वविद्यालय के पहले कुलपति डा.बी.डी.भट्ट की दिल्ली में सफदर से मुलाकत हुई और वे सफदर की प्रतिभा और जहीनता के कायल हुए। उन्होंने सफदर को गढ़वाल विश्वविद्यालय बुला लिया। सफदर ने अंग्रेजी विभाग में रहते हुए अपने शिक्षक सहयोगियों और छात्र-छात्राओं के साथ मिल कर रंगमंचीय गतिविधयों शुरू की। शिक्षकों के अलावा छात्र-छात्राओं के साथ भी उनका बेहद आत्मीय रिश्ता था। श्रीनगर (गढवाल) में उनके रहने के दौर पर राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफसर, डा.प्रभात कुमार उप्रेती ने बेहद रोचक पुस्तक-“ सफदर -एक आदमकद इंसान”, लिखी है. गढ़वाल विश्वविद्यालय में एक वर्ष तक रहने के बाद सफदर कश्मीर विश्वविद्यालय चले गए। वहां से लौट कर दिल्ली में पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना प्रसारण विभाग में कुछ समय उन्होंने नौकरी की। 1980 के दशक में उन्होंने स्वयं को पूरी तरह नुक्कड नाटकों के लिए समर्पित कर लिया। उन्होंने “जन नाट्य मंच” नाम से नाट्य मण्डली बनाई। जन नाट्य मंच ज्वलंत मुद्दों पर सडकों, चैराहों, नुक्कडों पर नाटकों का प्रदर्शन करता था। ”राजा का बाजा”, ”डी.टी.सी. की धांधली”, “वैदिक हिंसा, हिंसा न भवति”, “हत्यारे” “हल्ला बोल” जैसे सैकडों नुक्कड नाटक किये। उनके नाटक
सीधे राजनीतिक व्यवस्था पर तीखा प्रहार करते, इसलिए कई बार सफदर और उनकी नाट्य मंडली पर हमले हुए अंतिम हमला तो इतना प्राणघातक था कि उनका जीवन का चिराग इसमें बुझ गया। सफदर विचारधारा से प्रतिबद्ध वामपंथी थे। इसलिए धार्मिक रुढियों को वे कतई नहीं मानते थे। श्रीनगर (गढवाल) में रहते हुए भी इस्लाम की मान्यताओं की अवहेलना करने पर उनकी धर्म गुरुओं से बहसे भी होती रहती थी। उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली के निगमबोध घाट के विद्युत् शवदाह गृह में किया गया। इस तरह जीवित रहते हुए और जीवन के बाद भी उन्होंने धार्मिक रूढियों को तोड दिया। एक जनवरी 1989 को दिल्ली के नजदीक साहिबाबाद में “हल्ला बोल” नाटक का मंचन करते हुए सफदर पर हमला हुआ, जिसमें उनकी मृत्यु हो गयी।
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