-: अच्छा हुआ जो हम फाइनल में नहीं हैं :-
सच, पहले तो बहुत बुरा लगा जब हम गेल को सस्ते में निपटाने के बाद भी उस वेस्ट इंडीज से हार गये जिसे अपने सामने हम कुछ समझ ही नहीं रहे थे। सेमीफाइनल में जीत के जश्न के तैयारी तो मैच शुरू होने से पहले ही कर ली गयी थी। पूरे शहर में छोटे बडे होटल और मैदान तो ठीक छोटी गलियों तक में बडी स्क्रीन पर मैच देखा जा रहा था। कोहली के हर रन
चोके और छक्के पर सब बल्लियों उछल रहे थे। स्कोर बोर्ड पर 192 का स्कोर टंगने के बाद तो जीत पक्की ही लग रही थी और फिर बूमरा के दूसरे ओवर की पहली गेंद पर गेल के डंडे बिखरते ही जीत तो बस औपचारिकता ही लगने लगी थी मगर क्रिकेट तो क्रिकेट है। बाकी की कहानी तो आप सब जानते ही हैं। अब हमारी कहानी सुनिये। बडी स्क्रीन लगायी गयी जिन जगहों से हमें जीत के जश्न का लाइव कार्यक्रम करना था वहंा मैच के आखिरी ओवर में छक्का पडते ही हम लोगों को तलाशते ही रह गये उत्साही क्रिकेट प्रेमियों को, ये सारे लोग बुरा मुंह बनाकर दो मिनिट में ही जगह खाली कर गये। और वैसे भी टीवी को आम खेल प्रेमियों का जश्न ही चाहिये हार का स्यापा करने के लिये तो स्टार क्रिकेट खिलाडियों को स्टूडियो में बैठा कर रखा ही गया था।
तो सच में उस रात बुरा तो बहुत लगा कि अपने लिये ये टूर्नामेंट खत्म हो गया। मगर अगले दिन जब ये श्मशान बैराग्य हटा
तो लगा कि अच्छा हुआ हार गये वरना तीन दिन तक क्रिकेट का माहौल बनाये रखना पडता। जाने कितने बनावटी हवन, कितनी बार भारत माता की जय, कितनी बार जीतेगे हम इंडिया वाले टाइप फिल्मी गाने गवाने पडते। हमारे एक मित्र हैं सेमीफाइनल तक वो हर मैच के पहले सुबह दस बजे से किसी क्रिकेट मैदान में खिलाडियों और दर्शकों को इकटठा कर लाइव करने लग जाते थे, चक दे इंडिया का गाना गवाते थे जीते
भई जीतेगा इंडिया जीतेगा सरीखे नारे लगवाते थे। उनका चैनल यही चाहता था तो वो कुढते हुये यही करते थे। मगर उनकी इस मेहनत मशक्कत पर उस दिन पानी फिर गया जब उनसे कहा गया कि आपके लाइव में उत्साह नहीं है जिन लोगों से आप बात करते हो उनमें जोश नहीं दिखता। आगे से कुछ जोशीले लोगांे को इकटठा कर लाइव किया करिये। उनके सामने लााइव करने वाले दूसरे युवा रिपोर्टरों के उदाहरण गिनाये गये जो उनसे आधी उमर के होते थे और टीवी का ड्रामा करने में कोई कसर नहीं छोडते थे। चेहरा भी रंगवा लेते थे हाथ में बल्ला भी थाम लेते थे और मौका मिले तो नाचने भी लगते थे। समाचार चैनलों का ये तय फार्मेट कई सालों से ऐसा ही चल रहा है। कोई बदलाव कोई नयापन नहीं आया है। कोई बडा टूर्नामेंट वो भी सिर्फ क्रिकेट का आते ही ऐसा ही चलने लगता है कुछ पुराने चुके हुये रिटायर्ड खिलाडियों को अनुबंधित कर लिया जाता है। स्टूडियो में इनसे चर्चा होती है तो बाहर का फील लाने के लिये हमारे सरीखे रिपोर्टर बनावटी यज्ञ और जोश दिखाने को मजबूर हो जाते हैं।
नयापन दिखाने का दबाव हम रिपोर्टर पर भी होता है। ऐसे मौकों पर टीवी पर आने को उतावले भाई लोग फोन कर पूछते हैं भाईसाहब क्या कर दें आपके लिये चैनल के लिये बताओ। इसी पर याद आया कि ब्राजील के रियो में 2014 मंे हुये पिछले फीफा वर्ल्ड कप के फाइलन के दौरान कुछ नया करने की तर्ज पर हमारे एक टीवी वाले मित्र ने ऐसा अनोखा काम किया था कि आज भी वो उसे याद कर हंसते हैं। वर्ल्ड कप के मैचों में कौन टीम जीतेगी इसकी भविप्यवाणी एक आक्टोपस करता था। जर्मनी के किसी शहर मे पानी के जार मे बैठा पाल द आक्टोसप नाम का ये बूढा जार में रखी तो दो देशों की जर्सियों में से तैरते हुये किसी एक पर बैठकर बताता था कि मैच ये टीम जीतेगी। इसे हमारे चैनलों ने आक्टोपस बाबा का नाम दिया था। इसी आक्टोपस बाबा की काट हमारे मित्र ने भोपाल में तलाशी। जहंा दूसरे दोस्त तोता से पर्ची उठावा रहे थे तो हमारे इन मित्र को न्यू मार्केट मंे घूमता हुआ नंदी भा गया। उन्होंने उसके साथ चल रहे बाबाजी को तैयार किया और मार्केट में टाप एंड टाउन के सामने फाइनल में पहुंची जर्मनी और अर्जेटीना की टीम की जर्सियां रखवाई और नंदी जी ने तीन चक्कर लगाकर जर्मनी की जर्सी के पास रूककर चेहरे पर आयीं मक्खियां भगाने के लिये दो बार सिर हिलाया। हमारे मित्र की रनिंग कामेंटी जिसे वाक थू कहते हैं इस दौरान लगातार चल रही थी। नंदी के रूकते और सीर हिलाते ही मित्र ने ऐलान कर दिया हमारे भोपाल के नंदी बाबा ने बता दिया है कि आज के मैच में जर्मनी ही जीतेगी। आप भरोसा करिये रात के मैच के मैच में जर्मनी ने एक शून्य से अर्जेंटीना को हरा दिया था। यहां आपको बोलना पड़ेगा नंदी बाबा की जय
टी टवेंटी वल्र्ड कप के इन दिनों न्यूज चैनल स्पोर्टस चैनल बने हुये थे। पूरे दिन सिर्फ क्रिकेट और मैच से जुडी खबरें और चर्चा चर्चा चर्चा। इसके अलावा कुछ नहीं। हर मैच को महा संग्राम, महा मुकाबला और जंग से कम आंका ही नहीं जा रहा था। शाम साढे सात बजे मैच शुरू होने से पहले ऐसा हाइप तैयार होता था कि लोग सब कुछ भुला कर मैच की ही बातों में लग जाते थे। कल मेरे एक मित्र ने मुझे इसी बात पर जमकर रगडा। पेशे से वो शेयर कारोबारी है कम उमर में ही होंडा सिटी में घूमते हैं। मिलते ही चढाई कर दी। आप चैनल वाले क्यों इतना हाइप करते हो मैच का। जिसमें जीत के सिवा सुबह से कुछ दिखाते नहीं, जीतो जीतो का गाना गाते हो और हार जाओ तो लगता है जिंदगी ही तबाह हो गयी है। ऐसा मत किया करो दूसरे दिन किसी काम में मन नहीं लगता ठंडे दिमाग से सोचो तो लगता है मैच ही तो था किसी को हारना और किसी को जीतना ही था। वो जीते हम हारे। मगर आप चैनल वाले दिमाग खराब कर देते हो भारत पाकिस्तान मैच में ये हाल कर देते हो के पडोस का मुसलमान दोस्त बुरा लगने लगता है खुदा ना खास्ता भारत पाक जंग हो गयी तो मालुम नहीं आप चैनल वाले क्या करवा दोगे। अवाक सा मैं हैरान था सोच में पड गया क्या इतना असर होता है टीवी पर बीस बीस ओवर के मैच की कवरेज का।
- Brajesh Rajput (M.P.)
बहुत उम्दा
ऑक्टोपस बाबा के बाद नंदी बाबा की जय …. हा हा हा हा हा । ब्रजेश जी की सटीक रिपोर्ट
agar har jeet ka faisla aise hota to sattebajo ka kya hoga
brajesh rajput ji , bahut khoob likha hai aapne . ab ek salaah team india ko yh bhi de dijiyega ki wh ab jab bhi khelne jaayen to is nandi bail ko bhi saath me le jaayen .
Raj Kaushi Dehradun , New Era Photo Studio
Good analysis Brajesh!!!!
Many times i have listen you on ABP News.