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बेहद गरीब माँ एवं उसके दोनों बच्चों को है मदद की दरकार ।
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5 वर्ष पहले टीबी की बीमारी से दोंनों के सर से पिता का साया उठ गया ।
मासूमियत से भरा बचपन जिंदगी के थपेडे नहीं जानता। वह तो बस बारिश की बूंदे और कागज की कश्ती की चाह में आसमां छूने को आतुर रहता है। मगर यह जिंदगी का स्याह पहलु है कि हर किसी के हिस्से एक सा बचपन नहीं आता। किसी का बचपन बिना साए के लावारिश कहताला है, तो कोई निर्धन होने के चलते अपना बचपन खो देता है। ऐसे ही एक कहानी है चमोली जिले के खनौली गांव के सात साल के दीपक एवं 13 साल के देवेन्द्र की, ये दोनों टीबी की बीमारी से पीडित अपनी मां की सेवा में जुटे हुए है। पांच वर्ष पहले टीबी की ही बीमारी के कारण इन दोंनों के सर से पिता का साया उठ गया। विधवा पेंशन
एवं मनेरगा के भरोंसे मुफलिसी में किसी तरह इन दोनों का लालन पालन इनकी मां सुरेशी देवी कर रही थी। अब सुरेशी देवी को भी टीबी होने के चलते मेडिकल काॅलेज में भर्ती होना पड़ा। रिस्तेदारों एवं संबन्धियों की बेरूखी एवं घर में बच्चों को अकेला न छोडने के चलते सुरेशी उन्हें भी अपने साथ यहां ले आयी। दुखदायी पहलु यह की अब सुरेशी देवी की टीबी की बीमारी तेरह साल के देवेन्द्र पर भी फैल गई है। डाक्टरों का कहना है कि अगर दूसरे बच्चे को इन से दूर नहीं रखा गया तो इसे भी पर टीबी हो सकती है। देवेन्द्र समझदार होने के चलते सुबह से शांम तक अपनी मां सुरेशी देवी की सेवा में जुटा रहता है जबकि सात साल के दीपक को यह भी नहीं जानता की वह कहां आया है। ग्रामीण परिवेश में पले इन बच्चों को देख हर किसी का दिल पसीज रहा है। हाॅस्पिटल में महीने भर गुजर जाने के बाद मानों अब दीपक व देवेन्द्र ने हाॅस्पिटल को ही घर समझ लिया है। मां के प्रति देवेन्द्र की सेवा भक्ति देख कर हाॅस्पिटल के सिस्टर, डाक्टर खुश है। जबकि सात साल के दीपक की हरकते किसी के लिए मुसिबते तो किसी के लिए मनोरंजन का साधन बनी हुई है। दिन भर अस्पताल परिसर में भटकने के बाद सांम को ये दोनों बच्चें एक ही बेड पर साथ सो जाते है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इनकी मद्द भी की लेकिन इनके प्रयास भी साकार नहीं हो रहे है। सामाजिक कार्यकर्ता विभारे बहुगुणा का कहना है कि तमाम तरह के एनजीओं एवं सामाजिक संगठन बच्चों एवं असहाय लोगों की मद्द में जुटे रहते है लेकिन अब तक भी इनकी मद्द के लिए किसी का आगे न आना दुर्भाग्य पूर्ण है।
कोई तो पढ़ा दो मेरे बच्चों को
यह कहना है सुरेशी देवी का। पिछले लम्बे समय से टीबी के उपचार के लिए बेस चिकित्सालय में पडी सुरेशी देवी कहती है कि टीबी के उपचार में लम्बा समय लगेंगा। इनके पिता की टीबी उन पर फैली और अब उनकी टीबी उनके बच्चों पर पसर रहीं है। अगर कोई उनके बच्चों को पढ़ाने में उनकी मद्द कर दे तो वह उनका आभारी रहेंगी। सुरेशी देवी के दोनों बच्चें भी स्कूल जाने के इच्छुक है।
Youth icon Yi National Creative Media Report 09.04.2016
आपका ये प्रयास जरूर इन्हें सहायता दिलाएगा। आप बताएं कैसे कैसे मदद हो सकती है इनकी।।
Please be contact with Mr. Maithani ji. We will definitely come up with some solutions.
हमें तत्काल इनकी सहायता करनी चाहिए। टी बी की बिमारी साध्य है, निरन्तर दवा और पुष्टाहार से ठीक हो जाती है। माँ बेटे का स्वस्थ होना आवश्यक है, छोटे की भी जाँच की जाय। आइये हम सब इनके लिए हाथ बढ़ाएं।
बहुत सही लिखा
मैथानी जी राह दिखाये क्या करना चाहिये फिर काम करते हैं
Rakesh ji mai apko aaj call karta hun aaj