शिव प्रसाद सेमवाल , मुख्य सम्पादक पर्वतजन
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बागी-बागी हुरर्र-हुरर्र
बागी-बागी घुरर्र-घुरर्र
पांच साल तक खाना दाना
फिर उड़ जाना फुरर्र-फुरर्र।
जनता तो कुतिया की बच्ची
फिर फुसलाना कुरर्र-कुरर्र
जीत गए तो पांच साल तक
फिर कर लेना धुरर्र-धुरर्र।
दबे पांव फिर दूध-मलाई
बिल्ली जैसे आंखें मूंदकर
फिर पी लेना सुरर्र-सुरर्र
बागी-बागी हुरर्र हुरर्र।
तुम्ही हो स्वामी, तुम्ही तात् तब
प्रेस, पुलिस तुम एक जात सब
फिर कर लेना गुरर्र-गुरर्र
बागी-बागी हुरर्र हुरर्र।
वोट हमारे पा लेना फिर
उत्तराखंड को खा लेना फिर
ठुरा-ठुरा के ठुरर्र ठुरर्र
बागी-बागी हुरर्र हुरर्र।।
Best !!!!Rhis should be our regional snug for politician
ye neta vo chikne besharm gare hain jinko kuch bhi bolo koi fark nahi parta
उम्दा !
बढ़िया !
सुन्दर रचना !
semwal ji 2017 ke liye bhi aapse ek jaandar kavita ki ummid ki jaati hai ati uttam rachna
जबर्दस्त.. दर्द भी, हिकारत..भी।
inse accha to chhota baccha jo sussu kartaa surr surr
bahut sundar kurr kurr
Good. Keep it up.