समाजवादी नेता विनोद बर्थ्वाल : अब हमारे बीच नहीं रहे ।
राजनीतिक महत्व्कांक्षाओं के लिए डिगे नहीं कभी समाजवादी विनोद ।
मजबूत व नेक ईरादों के थे यारों के यार थे विनोद ।
आज पूरा सोशल मीडिया उन्हैं श्रंद्धांजलि दे रहा है, विश्वास नहीं होता कि लोकप्रिय नेता श्री विनोद बड़थ्वाल नहीं रहे। आत्मीय, सहज और अपनत्व से भरा उनका व्यवहार सदैव याद आएगा। उनके शुभचिंतकों का बहुत बड़ा दायरा है। उनका असमय जाना बज्रपात
से कम नहीं है। वे यारों के यार थे, चाहे निजी जीवन हो या राजनैतिक वे सदैव चट्टान की तरह अडिग रहे। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले विनोद बड़थ्वाल अपनी तरह के अलग इंसान थे। जहाँ कुर्सी के लिए राजनेता अपना जमीर बेच रहे हैं वहाँ बड़थ्वाल ने कभी सम्बन्धों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनके पास अनेक अवसर जिसका लाभ उठाकर वे पद प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते थे। वे हेमवती नन्दन बहुगुणा की धारा के उनके वैचारिक वारिस थे। राज्य की पहली सरकार में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के कांग्रेस में आने के आग्रह को उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार किया था।
उनकी स्वीकार्यता, कद और हनक राज्य के बड़े से बड़े नेताओं के लिए ईर्ष्या का विषय थी। यह सब उन्होंने अपने व्यवहार और वैचारिक प्रतिबद्धता से कमाया था। वरिष्ठ नौकरशाह भी उनके सम्मान में कुर्सी से उठते थे।कभी मंत्री विधायक न बनने वाले बड़थ्वाल मंत्री विधायकों से ज्यादा जनता की पैरोकारी करते थे और उनकी सुनी भी जाती थी।
उनकी पार्टी के लिए उत्तराखण्ड का जनमानस घोर विरोधी था किन्तु उन्होंने अपने निजी राजनैतिक जीवन के लाभ को अनदेखा कर अपनी पार्टी और पार्टी के संस्थापकों के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण को अन्तिम साँस तक निभाया। उनका यही व्यक्तित्व उन्हैं अन्य राजनेताओं से अलग खड़ा करता है।
समाजवादी नेता विनोद बर्थ्वाल की असमय हुई मौत को तमाम राजनीतिक , सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लोग राज्य के लिए भारी क्षति मान रहे हैं ।