Scholarship scam in Uttarakhand : घोटालों की ‘कब्रगाह’ में एक और घोटाला उत्तराखंड में 350 करोड़ का छात्रवृत्ति घोटाला !
देहरादून, (यूथ आइकाॅन)। घपले-घोटालों से उत्तराखंड राज्य का चोली दामन का साथ हो गया है। आलम ये है कि राज्य गठन से अबतक विकास की बाते कम और घोटालों की ज्यादा हुई है। अंतरिम सरकार से लेकर अब तक हर सरकार पर घोटालों के आरोप लगते रहे हैं। सबसे ज्यादा गजब की बात तो ये है कि हर सरकार ने पहली सरकार को ज्यदा घपलेबाज बताया और जनता के मन को भ्रमित कर वोट वसूलकर सत्ता कब्जाई। हालांकि सरकार बनने के बाद कभी भी उन घोटालों पर चर्चा नहीं हुई। अंतरिम सरकार के दामन पर डेकोरेशन से लेकर कई नियुक्तियों को लेकर सवाल उठे थे। उसके बाद पहली निर्वाचित सरकार से लेकेर पिछली हरीश रावत सरकार तक पर घपले-घोटालों के आरोप लगे हैं। सिलसिला अब तक जारी है। राज्य में बड़ी संख्या को फर्जी छात्र पंजीकरण दिखाकर उनके नाम पर समाज कल्याण विभाग को करोड़ों रुपये का चूना लगाया गया है। इसमें विभाग के अधिकारियों के भी शामिल होने की बात सामने आई है। छात्रवृत्ति घोटाले की जांच को लेकर रहस्य बना हुआ है। पिछले सालों के दौरान गरीब, दलित, पिछड़े छात्रों को उच्च और गुणवत्ता परक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए जो
शुल्क प्रतिपूर्ति और छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई जा रही है, उसे कतिपय छात्र, विभागीय अफसर और संस्थान संचालकों की कथित गिरोहबंदी की जरिये ठिकाने लगा दिया गया। लेकिन इससे जुड़े सनसनीखेज तथ्य लगातार सामने आ रहे हैं। ऐसा ही एक तथ्य यह भी सामने आया है कि छात्रों ने एक साथ ही एक शैक्षणिक सत्र में अलग-अलग कॉलेजों में अलग-अलग पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया और छात्रवृत्ति डकार ली। कई मामलों में दाखिले के फार्म पर जो मोबाइल नंबर दर्ज कराए गए हैं, उन पर संपर्क साधा गया तो वो किसी और के निकले। कई छात्रों के फार्म पर एक ही मोबाइल नंबर दर्ज मिले। मिसाल के तौर पर भगवानपुर के मौनू कुमार ने वर्ष 2015-16 में हरिद्वार जनपद में तीन अलग-अलग संस्थानों में एलएलबी, बीबीए और पालीटेक्निक कोर्स में दाखिला लिया और इन कोर्सों के एवज में उसके बैंक खातों में 80 हजार रुपये से अधिक की छात्रवृत्ति पहुंची। अब ये जांच ही बताएगी कि ये राशि किसकी जेब में गई? तथ्यों की पड़ताल से ऐसे दर्जनों प्रकरण पकड़ में आए हैं, जिनमें छात्र एक ही शैक्षणिक वर्ष में अलग-अलग संस्थानों से डबल और ट्रिपल कोर्स कर रहे हैं। मजेदार बात यह है कि इस तरह के तकरीबन सारे प्रकरण निजी शिक्षण से संस्थानों से जुड़े हैं। अब सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली त्रिवेंद्र सरकार क्या इस मामले की सीबीआई से जांच करायेगी ।
छात्रवृत्ति घोटाले की हो सीबीआई जांच: जुगराण
छात्र, विभागीय अफसर और संस्थान संचालकों की गिरोहबंदी :
सीबीआई जांच हुई तो उठेगा सनसनीखेज राज से पर्दा :
राज्य में बड़ी संख्या को फर्जी छात्र पंजीकरण दिखाकर उनके नाम पर समाज कल्याण विभाग को करोड़ों रुपये का चूना लगाया गया है। इसमें विभाग के अधिकारियों के भी शामिल होने की बात सामने आई है। 27 मार्च 2017 को अपर सचिव वी.षणमुगम ने समाज कल्याण विभाग को छात्रवृत्ति घोटाले की जांच करने की जिम्मेदारी दी थी। इसमें विकासनगर के 11 और सेवलाकलां के आठ छात्र छात्राओं की छात्रवृत्ति से जुड़े मामलों में प्रारंभिक जांच का पूरा ब्योरा है। देहरादून की ही तरह हरिद्वार जिले से जुड़े कुछ मामलों में साफ तौर पर यह बात सामने आई है कि कुछ बिचैलियों ने इन छात्रों के प्रमाण पत्र लेकर उनके दाखिले करा दिए। बैंक के खाते भी इनकी जानकारी के बगैर खुलवाए गए और विड्रॉल फॉर्म में दाखिले के वक्त ही छात्रों के हस्ताक्षर करवा लिए गए। इन छात्रों को बैंक की पासबुक भी नहीं दी गई। कॉलेजों में जब इनकी उपस्थिति की जांच की गई तो न के बराबर ही मिली। इन फर्जी छात्रों को परीक्षाएं भी दिलवाईं गईं जिसके बदले उन्हें दो चार हजार रुपये दे दिए गए। जांच अधिकारी के अनुसार वही छात्र छात्रवृत्ति का हकदार होता है जिसकी कक्षा में 70 फसदी उपस्थिति होती है लेकिन इनमें से एक भी इस पैमाने पर खरा नहीं उतरता है। छात्रवृत्ति मांग पत्र का भौतिक सत्यापन अनिवार्य होने के बावजूद इसे पूरा नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त संस्थान की मान्यता की जांच भी समाज कल्याण अधिकारियों ने नहीं की। जांच अधिकारी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि देहरादून और हरिद्वार के तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारियों ने गैरकानूनी काम किया है जिससे सरकारी पैसे की बर्बादी हुई है। यही नहीं एससी एसटी एक्ट के अनुसार तो इस तरह के मामले में दंड का प्रावधान भी है। उन्होंने सभी मामलों की विस्तार से जांच करवाने की सिफारिश भी की थी। इसी पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं।
छात्रवृत्ति घोटाले को लेकर सुलगते सवाल
-भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस वाली त्रिवेंद्र सरकार छात्रवृत्ति घोटाले का पटाक्षेप करेगी?-वर्ष 2011 में निदेशालय के स्तर पर ऐसे प्रकरणों पर सवाल उठे थे और छात्रों और छात्रवृत्ति के सत्यापन की बात हुई थी, उसके बाद भी विभाग ने ठोस कार्ययोजना क्यों नहीं बनाई?-तथ्यों की पड़ताल से ये बात भी सामने आई है कि कई संस्थानों में छात्रों के एक ही बैंक शाखा में बल्क में खाते खोले गए हैं, जो कथित खेल होने का संदेह पैदा करते हैं?-क्या एक ही शैक्षणिक वर्ष में एक साथ दो या तीन पाठ्यक्रम में दाखिला मुमकिन है।-ऐसे प्रकरणों को पकड़ने के लिए विभाग के पास क्या कोई क्रास चेक सिस्टम है। यदि है तो ये प्रकरण उसकी पकड़ से बाहर क्यों रहे?-बीबीए, एलएलबी समेत अन्य पाठ्यक्रमों के प्रवेश शुल्क में एक रूपता क्यों नहीं है? एक ही तरह के पाठ्यक्रम के लिए किसी संस्थान को ज्यादा प्रतिपूर्ति शुल्क दिया जा रहा है तो किसी को कम, ऐसा क्यों?
Very nice.
Needful is not getting help , Uttarakhand political culture is just for storing huge money bundles in corrupt pockets of these swains— shameful