Charming mountain : पहाड़..! मुझे तुम बहुत पसंद हो ।
कभी-कभी प्रकृति भी पहाड़ों की गोद में खिलखिलाते हुए अपने प्रेम का इजहार करती है । हम तो बस साक्षी हैं उस प्रेम के जो अपने शिखर पर है, अपनी पराकाष्ठा पर हो, जिससे आगे बस विरह ही विरह पसरा है ।।दूर दिगन्त तक फैली इस दूधिया चादर की हर पल बदलती आकृतियाँ इसके सौंदर्य के कई रूपों का प्रदर्शन लगती हैं, प्रकृति का ये तिलिस्म अपनी ओर आकर्षित करता है,एक अनबुझी सी तड़प जगाता है,ऐसा कच्चा सौंदर्य जो हर पल परिवर्तनीय है,कल तक दुपहरी की झुलसाती गर्मी थी तो आज बारिश की फुहारों ने शीतल लेप लगा लिया,ये तिलिस्म नहीं तो और क्या है,विस्मय ऐसा कि मुलायम कौतुक से भरी आंखें प्रेम क इस स्वरूप को एकटक निहारते रह जाय, मनुष्य के जीवन में प्रेम,, शायद प्रकृति की इन भव्य घटनाओं की संतानें हैं,मेरी विस्मित निगाहों में तैरते खूबसूरत दृश्य भी इन आँखों के लिए प्रेम का ही स्वरूप है, जैसे जीवन के प्रेम में बौरायी कोई हिरनी, किसी आहट पर ठिठक कर ,खुद को बचाने की चेष्टा रख उस आहट को तलाशती है…इन आनंदित कर देने वाले लम्हों में प्रेम की ख्वाइशें मन की गंगोत्री से फूटती हुई लहू- मांस की इस काया का रास्ता तय करते हुए प्रेम के इस अथाह समुंदर में विलीन हो जाने को आतुर है …समुंदर या धरती के अन्य भागों की चमत्कृत कर देने वाली खूबसूरती से अलहदा ,पहाड़ों का आकर्षण किसी रहस्यलोक कम नहीं,, मैं कोई कवि नहीं हूं और न ही मुझे रस छंद अलंकारों या कवित्व का कोई ज्ञान है,लेकिन मन मचल रहा है बेचैन है कुछ लिखने को, महसूस किए अहसासों को अभिव्यक्त करने का,,,,लेकिन मन की बातें कागज पर उतरने से पहले आंखों में अटक सी गयी थी,,शब्द होंठों में आने से पहले कंठ में फिसल कर घिसटते रह गए,,,, शायद कोई कविहृदय देह इन अद्भुत और प्रकृति के सुंदरतम दृश्यों को देख कर अपने आप जाग्रत हो सुन्दर मादक,शब्दों के मायाजाल बनाकर पूरी तल्लीनता से सजीवित भावनाओं का संचार करती एक सुन्दर रचना लिख डाले।।।। हम तो बस यही कहेंगे—-
‘एक अकल्पनीय सौंदर्य , प्रेम की शाश्वत प्रकृति और रहस्यलोक का नाम है पहाड़’ ……..।
सर्वाधिकार सुरक्षित : आलोक नौटियाल