नेता जी गैरसैंण gairsain uttarakhand से बैर क्यों ...??? उत्तराखण्ड के पहाड़ी नेताओं में साहस की कमी है । वह किसी भी तरह के निर्णय लेने से पहले दिल्ली की सोचते हैं । उत्तराखंडी नेताओं को पहाड़ हित से ज्यादा अपनी कुर्सी है प्यारी । youth icon report , shashi bhushan maithani paras dehradun सेवा में जुटा मंगला माता - भोले जी महाराज का हंस फाउंडेशन । Hans Foundation . Mangala Mata ji . Bhole ji Maharaj . Satpuli pauriनेता जी गैरसैंण gairsain uttarakhand से बैर क्यों ...??? उत्तराखण्ड के पहाड़ी नेताओं में साहस की कमी है । वह किसी भी तरह के निर्णय लेने से पहले दिल्ली की सोचते हैं । उत्तराखंडी नेताओं को पहाड़ हित से ज्यादा अपनी कुर्सी है प्यारी । youth icon report , shashi bhushan maithani paras dehradun सेवा में जुटा मंगला माता - भोले जी महाराज का हंस फाउंडेशन । Hans Foundation . Mangala Mata ji . Bhole ji Maharaj . Satpuli pauri

There is nothing impossible : उत्तराखंड के नेताओं व सरकार आईना दिखाती एक संस्था ।

* 17 साल में जो सरकार न कर सकी वो 9 साल में संस्था ने कर दिखाया ।

Shashi Bhushan Maithani Paras शशि भूषण मैठाणी पारस एडिटर यूथ आइकॉन निदेशक YOUTH ICON NATIONAL MEDIA AWARD YI DEHARADUN
Shashi Bhushan Maithani Paras 

अभी 10 नवम्बर को बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं । जब उत्तराखंड में पहली बार पहाड़वासियों को एक असंभव सी चीज सम्भव ही नहीं बल्कि मूर्त रूप में नजर आई । और यह सब हुआ पहाड़ी सोच को धरातल पर उतारने को की गई एक शानदार कोशिस से और जनता को समर्पित सेवा भाव से ।  फोटो में यह शानदार उच्चस्तरीय ढांचा जो आप लोग देख रहे हैं वह है उत्तराखंड के पहाड़ का । जो यहां भाजपा और कांग्रेस  के नेताओं को शर्मिंदा करने के लिए काफी है । इन दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने बीते 17 सालों में पहाड़ी  जनमानस को सिर्फ और सिर्फ छला और ठगा है । जो कि अभी भी सुधरने को तैयार नहीं हैं । मेरा यह लिखना या सोचना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि देशभर में सबसे ज्यादा डरपोक नेता  अगर किसी राज्य में हैं तो वो हैं सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड में ।

नेता जी गैरसैंण gairsain uttarakhand से बैर क्यों ...??? उत्तराखण्ड के पहाड़ी नेताओं में साहस की कमी है । वह किसी भी तरह के निर्णय लेने से पहले दिल्ली की सोचते हैं । उत्तराखंडी नेताओं को पहाड़ हित से ज्यादा अपनी कुर्सी है प्यारी । youth icon report , shashi bhushan maithani paras dehradun सेवा में जुटा मंगला माता - भोले जी महाराज का हंस फाउंडेशन । Hans Foundation . Mangala Mata ji . Bhole ji Maharaj . Satpuli pauri
नेता जी गैरसैंण से बैर क्यों …??? उत्तराखण्ड के पहाड़ी नेताओं में साहस की कमी है । वह किसी भी तरह के निर्णय लेने से पहले दिल्ली की सोचते हैं । उत्तराखंडी नेताओं को पहाड़ हित से ज्यादा अपनी कुर्सी है प्यारी । 

 

 

जी हां…… ! मुझे यह भी कहने या लिखने में कोई गुरेज नहीं है कि हमारे इन नेताओं ने आम लोगों की शहादत से बने राज्य की मूल अवधारणाओं को अपनी नक्कारा, बेहद व्यक्तिगत स्वार्थी एवं अति महत्वकांक्षाओं वाली सोच से पलीता लगा दिया है । यह कहने में भी मुझे कोई एतराज नहीं कि इस प्रदेश का नेता बहुत कमजोर व डरपोक किस्म का है जो कि कभी सोनिया, राहुल तो कभी मोदी, अमित के रहमोकरम पर सांसे लेते और छोड़ते हैं । बीते 17 वर्षों में सूबे की जनता ने यह भलीभांति देख व समझ लिया है कि हमारे नेता सुतली बम का आवरण तो जरूर

सरकार मायने विश्वसनियता, सहारा, सुरक्षा, भरोसा लेकिन उत्तराखंड में इन सबके मायने आज सरकार नहीं है। आज भरोसे और विश्वसनियता के मायने हैं ‘द हंस फाउंडेशन’। इधर सरकारें लगातार उत्तराखंड में जनता के बीच भरोसा खोती जा रही हैं, उधर माता मंगला देवी और भोले जी महाराज की संस्था पर आमजन का भरोसा मजबूत होता जा रहा है। आखिर क्यों न हो ? जहां सरकार ‘आमजन’ को सामाजिक , बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा देने में नाकाम है वहीं हंस फाउंडेशन बखूबी इन्हें अंजाम दे रहा है। शिक्षा व खेल क्षेत्र में मेधावियों को प्रोत्साहन हो या जरूरतमंद की आर्थिक मदद, कला- संस्कृति को बढ़ावा देने का सवाल हो या प्रदेश में जीवन स्तर सुधारने और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत करना। हर क्षेत्र में हंस फाउंडेशन आज सरकार से आगे है। आज हाल यह है कि सरकार भी हंस फाउंडेशन के भरोस है। किसी संस्था का प्रभाव इतनी तेजी से बढ़ना हालांकि कई सवालों और शंकाओं को भी जन्म देता है, लेकिन सच यह है कि हंस फाउंडेशन पर आम लोगों का भरोसा दिनों दिन बढ़ रहा है। हंस फाउंडेशन की स्थापना को अभी दस वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं, 2009 में स्थापित यह संस्था आज उत्तराखंड के लिये वरदान बनी हुई है। 
– योगेश भट्ट  वरिष्ठ पत्रकार । 

 

लिए हुए हैं, परन्तु ये मुर्गाछाप से ज्यादा कुछ नहीं हैं । नेता चाहे भाजपा का हो या फिर कांग्रेस का इनके अंदर इस पहाड़ी राज्य की भलाई के लिए कोई भी फैसला लेने का साहस कभी नहीं हुआ, और न ही राज्य के हितों के लिए किसी को लड़ते हुए जनता ने देखा है । हालांकि जनता ने इन माननीयों को लड़ते भी देखा है परन्तु जनता के हित के लिए नहीं बल्कि मंत्री या मुख्यमंत्री न बनाए जाने या फिर मलाईदार मंत्रालय न मिलने की दशा में, इनके व्यक्तिगत स्वार्थ पूरे न हों तो ये सरकार तोड़ने व अपने मूल राजनीतिक दल को छोड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, और ये झूठ नहीं है जनता सामने से ये हरकत देख चुकी है । बहरहाल बात हो रही थी उत्तराखण्ड में अकर्मण्य नेताओं की और फिर से उसी विषय पर आता हूँ । इस बात को प्रदेश का हर एक नागरिक जानता है यहां के नेताओं को एक कदम भी अगर आगे बढ़ना होता है तो ये पहले दिल्ली दरबार में अर्जी लगाने जाते हैं । ऐसा नहीं है कि हम पहाड़ियों ने अपने नेताओं में मोदी, अमित, सोनिया, राहुल, माया, मुलायम,ममता, नीतीश या लालू जैसे साहसी या दुस्साहसी नेताओं को न ढूंढा हो लेकिन ऐन वक्त पर पहाड़ी नेतागण सूखी गुदड़ी (तुरई) के अंदर मौजूद भूसा की तरह ही साबित हुए । अफशोस कि उग्र अंदोलन के कोख से पैदा हुए इस उत्तराखण्ड राज्य के नेता बीते 17 वर्षों में सूबे की अवाम की नजरों में न नायक बन सके, न ही खलनायक ! बने तो सिर्फ और सिर्फ नालायक । अगर किया है भाजपा या कांग्रेसी नेताओं ने काम तो बताएं :-

* आप लोग गैरसैण पर फैसला लेने से क्यों परहेज करते रहे हो ? -उत्तर है जीरो ।

* नेता जी जनता आपसे सवाल कर रही है कहाँ है हमारे उत्तराखंड की राजधानी ? – उत्तर जीरो ।

* बीते 17 वर्षों में पहाड़ों में आपकी सरकारों ने कौन से उद्योग स्थापित किये, क्या बता पाएंगे आप ?  उत्तर है जीरो ।

* पहाड़ों की पारंपरिक खेती को कब ? कहाँ ? और किस प्रकार ? बढ़ावा दिया आपकी सरकारों ने 17 सालों में , है कोई जगह जिसे आपने मॉडल के तौर पर विकसित किया हो ? – फिर से उत्तर है जीरो ।

जनता पलायन न करे पहाड़ों से इसके लिए ऐसी कौन सी आकर्षक योजनाएं या मॉडल आपने बीते 17 वर्षों में पहाड़ों पर तैयार किए हैं , जिसके बाद जनता आप लोगों पर विश्वास कर सके ? – कुछ नहीं उत्तर है जीरो ।

* पर्वतीय क्षेत्रों में काश्तकार आपकी सरकारी मदद से नहीं बल्कि अपनी पारंपरिक सोच व परिश्रम से सेब, आलू, बादाम, अखरोट, नाशपाती, व सब्जियों का उत्पादन हर वर्ष करता है , लेकिन नेता जी ये बताओ कि बीते 17 वर्षों में आपने काश्तकारों के लाभ हेतु उनके उत्पादों के विपणन की क्या व्यवस्था दी ? – शून्य ।

* पहाड़ के किस क्षेत्र में  है आपकी उम्दा चिकित्सा व्यवस्था ? – शून्य ।

* महोदय यह भी बता दीजिए कि बीते 17 वर्षों में आप लोगों ने कितने सरकारी स्कूलों पर ताला जड़ दिया है ? – उत्तर – बेहद शर्मनाक ।

* सवाल बहुत हैं पर इस सबसे अहम सवाल का जबाब अगर है तो जरूर दीजिए कि बीते 17 सालों में भाजपा कांग्रेस और UKD ने कितने पहाड़ियों को पहाड़ से पलायन करने पर मजबूर किया है ? – उत्तर है सबको ।

हमें पूरा विश्वास है कि सरकार ने काम किया हो या न किया हो आंकड़े जरूर तैयार किये होंगे जो कि दिल्ली दरबार में मत्था टेकते वक़्त काम आते हैं । कृपया इन आंकड़ों को भी सार्वजनिक करें । इस निराशा से बढ़िया है कि कुछ दिन आपके इन झूठे बहकाओ में ही इस राज्य की जनता जी ले। 

अगर नहीं सुधरे अभी तो नब्बे के दशक से भी बड़ा आंदोलन हो सकता है पहाड़ में : 

Gairsain . गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग को लेकर पहाड़ में होने लगा है मंथन । लोग उतरने लगे हैं सड़कों पर । शुरुआत हो गई है रुद्रप्रयाग जनपद से । कहीं अब नब्बे के दशक से भी उग्र न हो जाय आंदोलन । सरकार हो जाओ खबरदार । youth icon yi media report । shashi bhushan maithani paras शशि भूषण मैठाणी पारस
गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग को लेकर पहाड़ में होने लगा है मंथन । लोग उतरने लगे हैं सड़कों पर । शुरुआत हो गई है रुद्रप्रयाग जनपद से । कहीं अब नब्बे के दशक से भी उग्र न हो जाय आंदोलन । सरकार हो जाओ खबरदार । 

नेताओं को अपनी नेतागिरी में थोड़ा नहीं बहुत ज्यादा बदलाव लाना होगा पहाड़ हित के लिए सजग व सतर्क रहना होगा अन्यथा जिस तरह का माहौल या गुस्सा पहाड़ियों में पनप रहा है वह कब विस्फोटक बन जाए इसका कोई पता नहीं । क्योंकि जन-जन के बीच एक अजीब सी बेचैनी है, सुगबुगाहट है और सिस्टम के प्रति खीज है । उत्तराखंड के नेताओं की अकर्मण्यता (नक्कारेपन) से सावधान रहने की जरूरत है नेताओं को । उत्तराखण्ड के नेताओं को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि नब्बे के दशक का राज्य आंदोलन अपनी विराटता की वजह से न सिर्फ देश मे बल्कि पूरे विश्वभर में सुर्खियों में रहा था । गौरतलब है कि तब अभिभाजित उत्तर प्रदेश में यहां के पहाड़ ज्यादा गुलजार थे । गांव के गांव भरे हुए थे लेकिन अफशोस कि जबसे उत्तराखण्ड अलग हुआ तब से पूरा पहाड़ मानव विहीन होता जा रहा है । और उसके जिम्मेदार हैं भाजपा, कांग्रेस और उत्तराखण्ड क्रांति दल क्योंकि बीते 17 वर्षों इस प्रदेश में जनता का नहीं बल्कि इन तीनों पार्टियों के नेताओं ने बारी बारी राज किया और क्षेत्रीय दल UKD ने खूब साथ भी निभाया इसलिए यह क्षेत्रीय दल भी जनता की अपेक्षाओं। पर कभी भी खरा नहीं उतर पाया । यह भी सच है कि पहाड़ों का विकास कम और नेताओं व उनके रिश्तेनातेदारों का विकास जमकर हुआ है । जिस प्रदेश में 4 मुख्यमंत्री होने थे वहां अभी तक 9 नेता मुख्यमंत्री पद की  शपथ लेकर जन-भावनाओं को चपत मार चुके हैं । बाकी अन्य सभी नेतागण अपनी उम्मीदों की कोंपल हरी-भरी बनाए हुए हैं ।   

द हंस फाउंडेशन ने दिखा दिया पहाड़ी नेताओं को आईना :

पौड़ी के सतपुली (चमोली सैण) में हंस फाउंडेशन द्वारा निर्मित अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त 200 बेड का अस्पताल । यह पहाड़ों में व किसी भी गांव का पहला उच्चकोटि का अस्पताल है । जिसके बाद से उत्तराखण्ड के नेताओं की कार्यशैली व मंशा पर भी जमकर सवाल उठने लगे हैं । यह आम चर्चा है कि जो काम अभी तक 17 सालों में राज्य सरकार न कर सकी वह हंस फाउंडेशन ने कर दिखाया । और यही कारण है कि मंगला माता व भोले महाराज पर्वतीय समाज के लोगों के बीच खासे लोकप्रिय होते जा रहे हैं । report : youth icon yi national media . Shashi bhushan Maithani paras . .. photo : satpuli chamoli sain Pauri . Mangala Mata. Bhole ji maharaj
पौड़ी के सतपुली (चमोली सैण) में हंस फाउंडेशन द्वारा निर्मित अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त 200 बेड का अस्पताल । यह पहाड़ों में व किसी भी गांव का पहला उच्चकोटि का अस्पताल है । जिसके बाद से उत्तराखण्ड के नेताओं की कार्यशैली व मंशा पर भी जमकर सवाल उठने लगे हैं । यह आम चर्चा है कि जो काम अभी तक 17 सालों में राज्य सरकार न कर सकी वह हंस फाउंडेशन ने कर दिखाया । और यही कारण है कि मंगला माता व भोले महाराज पर्वतीय समाज के लोगों के बीच खासे लोकप्रिय होते जा रहे हैं । 

द हंस फ़ाउंडेशन उत्तराखण्ड में सरकार से भी बेहत्तर साबित हो रहा है । पहाड़ में हर तबके का वर्ग सरकार के बजाय माता मंगला व भोले महाराज से आस लगाए रहते हैं । और हों भी न .. क्योंकि गरीब असहाय जनता की सेवा में हरदम तत्पर जो रहता है हंस फाउंडेशन । मजेदार बात तो यह भी है कि सूबे में हर पार्टी का नेता छोटा हो या बड़ा सब माता मंगला व भोले महाराज के चरणों में दण्डवत होने जाते हैं और वह किसी भक्ति भाव से नहीं बल्कि अपने लिए वोट बैंक मजबूत बनाने के लिए, क्योंकि इस समाजसेवी दंपत्ति के पास सूबे की जनता की आस और विश्वास है । यह सर्वविदित है कि बीते माह 10 नवम्बर 2017 को सतपुली पौड़ी में बनाए गए  वर्ल्ड क्लास द हंस हॉस्पिटल को पहाड़ी जनता की सेवा इसी हंस फाउंडेशन द्वारा समर्पित किया गया है । जो कि बेहद ही खूबसूरत नयारघाटी के नदी तट पर बनाया गया है । जिसकी प्रशंसा पूरे पहाड़ पर हो रही है । हमारे नेता 17 वर्षों में केवल जनता की भावनाओ से खेलते रहे कोरे भाषण व आश्वासन देते रह गए जबकि एक समाजसेवी संस्था के नेक इरादों ने धरातल पर जनता की उम्मीदों को मूर्त रूप देकर शानदार संदेश भी दिया है । सतपुली चमोली सैण के बाशिंदे बताते हैं कि सतपुली में माता मंगला व भोले महाराज द्वारा तैयार करवाए गए विशाल व भव्य अस्पताल इस क्षेत्र के लिए अब नई पहचान देने का काम करेगा साथ ही ईलाके के विकास को बढ़ाने व पलायन को रोकने में कारगर होगा । एक अस्पताल खुलने से कई अन्य तरह के रोजगारों का भी सृजन होगा । अस्पताल खुलने से पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर है जिसके लिए वह हंस फाउंडेशन माता मंगला व भोले जी का विशेष आभार व्यक्त करते है । यह पहला मौका है कि जब उत्तराखण्ड के किसी पहाड़ी गांव में इतना विशाल अत्याधुनिक सुविधाओं युक्त 200 बेड वाला अस्पताल खुला हो । ये सूबे में 17 वर्षो से सियासत करने वालों के मुंह पर जोरदार तमाचा जैसा भी है ।

Youth icon Yi Creative Media . DEHARDUN . 

SHASHI BHUSHAN MAITHANI “PARAS”

9756838527 

By Editor