Jinda hun mai, दरिन्दों ने चेहरा तो बिगाड़ दिया लेकिन उसके हौसले और जज्बे का वो बाल भी बांका न कर सके ।
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लक्ष्मी के हौसले और साहस की इसी कहानी को हम आज बता रहे हैं आपको
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वर्ष 2014 में यूथ आइकॉन नेशनल अवार्ड से नवाजा गया देहरादून में लक्ष्मी को ।
समाज के भीतर ही छिपे चंद दरिंदों ने भले ही लक्ष्मी के चेहरे को शायद जिंदगी भर के लिए बिगाड़ दिया है लेकिन लक्ष्मी के हौसले और जज्बे का वो बाल तक बांका नहीं कर सके। जिंदगी से हार मानने के बजाय लक्ष्मी ने समाज में अपने हक के लिए आवाज उठानी शुरु की। आज लक्ष्मी देश में एसिड अटैक की शिकार लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। उनके लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। लक्ष्मी का मानना हैं कि हौसला तो सब में होता है लड़कियां अपने ऊपर होते अन्याय के खिलाफ लड़ना भी चाहती है लेकिन उसे मुकाम तक पहुंचाने के लिए हर एक फ्रैंण्ड भी जरुरी होता है।
लक्ष्मी की जुबानीः
तेजाब हमले के बाद मैं अब सिर्फ जीना ही नहीं चाहती हूं बल्कि समाज में क्रान्ति लाना चाहती हूँ। समाज के एक इन्शान की शैतानी मानसिकता ने मेरे आगे आज कई बाधाएं ला खड़ी कर दी हैं। जिसने मुझ पर हमला किया वह मेरी सहेली का भाई था। उसके मन में न जाने मेरे प्रति क्या सोच पनप रही थी जिसे मै कभी समझ ही नहीं पाई थी । एक दिन उसने अचानक मेरे सामने खुद से शादी करने का प्रस्ताव रखा उसकी बात सुन कर मै हैरान परेशान हुई सोचा भी नहीं था कि मेरी दोस्त का भाई मुझ पर गलत निगाह रखता है। मै तब बहुत डर भी गई थी। मै सातवीं क्लाश में पड़ रही थी और मेरी उम्र तब महज 15 साल थी । फिर एक दिन मैंने उससे शादी करने से मना करने की जुर्रत क्या कर दी कि उसकी हैवानी सोच में मेरे इस फैसले ने आग में घी डालने का काम कर दिया।
मैने शादी करने से मना किया और उसने मुझ पर एसिड डाल दिया।
जिसने मुझ पर एसिड से अटैक किया वह मेरे पड़ोस में ही रहता था उसकी नजर हर वक्त मुझ पर बनी रहती थी उससे शादी करने से मना करने के बाद वह मुझसे बदला लेना चाहता था। लेकिन मै बहुत छोटी थी मुझे इतनी समझ भी नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है। खैर कुछ दिन बाद मैं दिल्ली के खान मार्किट बस स्टॉप पर बस के इन्तजार में खड़ी थी। तभी वो अपने कुछ अन्य दोस्तों के साथ मेरे बराबर में आ गया मै कुछ नहीं बोली लेकिन वह मुझे बरबाद करने की नियति से मेरा पीछा करते हुवे वहाँ पूरी प्लानिंग के साथ पहुंचा था। उसने तुरन्त मुझे जमीन पर गिरा दिया और तेजी से मेरे शरीर के ऊपर तेजाब उड़ेल दिया। तब भगवान् का शुक्र रहा कि मैंने उसके हमले को भांपते हुए अपनी आँखों को तुरन्त हाथ से ढक दिया था जिसके कारण मेरी आंखे बच पाई और आज मै आप लोगों को देख और समझ पा रही हूँ। बाकी मेरा शरीर तेजी से जलने लगा था कुछ ही सेकण्ड में मेरे चेहरे और कान के हिस्सों से माँस जलकर जमीन पर गिरने लगा एसिड बहुत तेज था जिसकी वजह से चमड़ी के साथ -साथ मेरी हड्डियां भी गलनी शुरू हो गई थीं।
मै दर्द से तड़प रही थी और इन्शानियत शर्मशार हो रही थी तभी एक फरिश्ता भी आ गया तब मै वहां पर दर्द से तड़प रही थी। कोई मदद को आगे नहीं आया आज भी मै उस घटना को याद करती हूँ तो इन्शानियत पर से ही भरोशा उठ जाता है। लेकिन सब लोग एक जैंसे भी नहीं होते हैं और फरिश्ते भी सभी नहीं बन सकते। तब वहां पर तमाशबीनो के बीच एक ड्राइवर आया जिनका नाम अरुण सिंह था उन्होंने खुद को सोनिया गांधी का ड्राईबर बताया था। उस वक्त मेरे लिए वही ड्राइवर फरिश्ता बनकर मेरी मदद के लिए आगे आए थे। मै आज भी उनसे मिलना चाहती हूँ लेकिन मेरे पास उनका कोई कान्टेक्ट नम्बर या पता नहीं है उस इन्शान को कैंसे भूल सकती हूँ जिसने मुझे सबसे बुरे वक्त में बचाया था। और तब ड्राइवर अरुण सिंह ने इंसानियत को भी शर्मसार होने से बचा लिया था। वह मुझे तुरन्त अपनी गाड़ी से अस्पताल तक ले गए थे। जिसकी वजह से मै आज जीवित भी हूँ और अपनी जंग को भी लड़ रही हूँ ।
शिरीन आंटी ने हमारी बहुत मदद की उन्होंने मुझे नई जिन्दगी और हिम्मत दी।
हमारे घर की आर्थिक हालत बेहद नाजुक थी। पापा किसी के घर में खाना बनाते थे। और ऊपर से मुझ पर एसिड अटैक हो गया आर्थिक तंगहाली के बीच मामूली कमाई से मेरा ईलाज होना सम्भव ही नहीं था। लेकिन तब पापा जहां काम करते थे उस घर की मालकिन शिरीन आंटी ने हमारी बहुत मदद की थी। उन्होंने अपनी बच्ची की तरह देखभाल की मेरी शिरीन आंटी ने मेरी एक नहीं बल्कि सात सर्जरी करवाई जिस पर आंटी के पूरे दस लाख रुपए खर्च हो गए थे। शिरीन आंटी की मदद हमेशा याद रहेगी मुझे। अब मै जिंदगी की जंग लड़ने के लिए एकदम फिट हूं लेकिन घर की जिम्मेदारियां अब मेरे सामने खड़ी हैं अभी कुछ समय पहले ही पापा की मौत हो गई है। अब मेरे घर में सबसे बड़ी मै ही हूँ छोटा भाई राहुल जिसकी उम्र 20 साल की है वह पिछले कुछ सालों से बीमार है। डाक्टरों ने भी अब हाथ खड़े कर दिए लेकिन मुझे तो उसकी बराबर देखभाल करनी है। परिवार की देखभाल के लिए मुझे ही कुछ न कुछ काम ढूँढना था। लेकिन मेरा चेहरा एसिड से बुरी तरह से झुलस चुका था। जिसके कारण घर से बाहर खुली दुनिया में आना सहज भी नहीं था कुछ लोगों ने भी मुझे बोला कि तू अगर ऐसे बाहर जाएगी तो लोग तुझे देखकर डरेंगे कोई तुझे काम भी नहीं देगा। मैंने सभी की बातों को सुना फिर अनसुना कर खुद में हिम्मत जुटाई और एसिड अटैक के आठ साल बाद में अब घर से बाहर निकली रोजगार की तलाश में। अफशोस होता है बड़ी-बड़ी बातें करने वाला समाज सुधरने को बिलकुल भी तैयार नहीं है। समाज को सुधरने के लिए हर वक्त कानून का ही इन्तजार रहता है। मेरा चेहरा आज विकृत हो गया है लेकिन मै कहती हूँ कि यह मेरा नहीं बल्कि हमारे दूषित विकृत एवं कलुषित समाज का चेहरा है। आज मै अपने इस विकृत चेहरे को ज्यादा से ज्यादा समाज को दिखाना चाहती हूँ। ताकि समाज में गन्दी मानसिकता के लोगों को खुद पर कुछ तो शर्म आये। मैंने कभी भी अपना चेहरा छुपाया नहीं जो है सब समाज के सामने है। अभी मै ;स्टॉप एसिड अटैकद्ध ;ै।।द्ध संस्था के साथ जुड़ी हूँ यहाँ पर आलोक दीक्षित ‘सर’ भी हमारी काफी हेल्प करते हैं हमें समय-समय पर मोटिवेट करते रहते हैं और उनकी यह संस्था भी बहुत अच्छा काम समाज में कर रही है।
पढाई में भी होनहार है लक्ष्मी आगे चलकर सिंगर बनना चाहती है।
ऐसिड अटैक जैंसे विभत्स हादशे के बाद भी लक्ष्मी ने जीवन में कभी हार नहीं मानी उसने हादसे के वक्त से ही मानो यह भी ठान ली थी कि वह अब हर हाल में अपने मुकाम को हाशिल करके ही रहेगी कदम-कदम पर असहज बनने जा रही जिन्दगी को उसके हौसले और जज्बे ने समाज के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा दायक बना दिया। मै ऐसिड अटैक के बाद भयानक दर्द से कराह रही थी मेरा चेहरा हाथ सब कुछ बुरी तरह से झुलस चुका था। डाक्टरों ने तुरन्त सर्जरी के लिए कहा था। तब मेरी अलग-अलग समय में सात बार सर्जरी भी हुई ज्यादा वक्त अस्पताल में ही गुजरता था लेकिन मै अपनी पढाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी इसी दौरान मैंने पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान केन्द्रित किया । अब मै नेशनल इन्स्टट्यूट ऑपन स्कूलिंग से 12वीं कर रही हूं। साथ ही मैंने कम्प्यूटर के बेसिक कोर्स के आलावा बुटीक व ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया है। लेकिन मेरी इच्छा है कि मैं गाने में ही अपना करियर बनाऊ क्योंकि मुझे गाने का बहुत शौक है। बस अब जीवन में मुझे कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखना है आगे बढ़ते रहना है अब इससे बड़ा हादशा क्या होगा जीवन में इसलिए कोई डर या भय मन में नहीं रह गया है।
लक्ष्मी की याचिका पर बने नियम
अगर आप इसे मेरी कामयाबी या जीत बता रहे हैं तो इसमें थोडा आगे यह जोड़ना चाहूंगी कि कोर्ट में बेशक याचिका मैंने दाखिल की थी लेकिन आज हमें जो सफलता इसमे मिली है उसका श्रेय मै अपनी वकील अपर्णा भट्ट जी को देना चाहूँगी जिन्होंने बिना किसी कोर्ट फीस के मेरा यह केश लड़ा और हमेशा हमारे साथ हैं। क्योंकि यह लड़ाई आसान नहीं थी। कोर्ट में समय ज्यादा जरुर लगा लेकिन अंत में सच्चाई और हिम्मत की ही जीत हुई। आगे भी यह मुहीम जारी रहेगी अभी भी बहुत लड़कियों पर ऐसिड अटैक हो रहे है। मेरी सरकार से यह भी मांग है कि एसिड अटैक की शिकार हुई सभी लड़कियों एवं महिलाओं को आर्थिक मुआवजे की रकम बढाई जाय और साथ ही साथ सभी के लिए सरकारी नौकरियां भी सुनिश्चित हो। व लड़कियों पर ऐसिड अटैक करने वाले दरिंदों के लिए सख्त से सख्त सजा का भी प्राविधान हो जिससे कि भविष्य में कोई ऐसी घिनौनी हरकत करने का साहस ना जुटा सके। जिस दिन हमारी सरकार ऐसा कर देती है तो उस दिन मै खुद की असली जीत मानूंगी।
आगे भी जंग जारी रहेगी
”स्टॉप एसिड अटैक“ संस्था बहुत मदद कर रही है। संस्था ने एसिड अटैक लड़कियों के बैंक एकाउन्ट खुलवाए हैं। संस्था खुद भी हमारी मदद करती है और अन्य कोई भी हमें अपनी मदद देना चाहते हैं तो वह सीधे-सीधे हमारे एकाउन्ट में पैंसा जमा करवा सकते हैं। हमें इस वक्त पैंसों की सबसे ज्यादा जरुरत है। कई लड़कियों के तो आँखों के आगे मांश जमा हो गया है ऐसे में अगर कोई डाक्टर भी समाज सेवा के भाव से हम लोगों की मदद कर सकते हैं जिससे कुछ लड़कियां दुनिया को फिर से देख सकती हैं। अब मैं खुद भी अपनी तरह एसिड अटैक की शिकार अपनी दोस्तों की मदद करना चाहती हूं। मैं आपकी ”यूथ आइकॉन“ के मार्फत सभी लोगों से अपील करना चाहती हूँ कि मदद के लिए आगे आएं। हममें ज्यादातर पीडि़त लड़कियां बेहद गरीब हैं। हमारी मांग है कि केंद्र या राज्य सरकारें भी यह सुनिष्चित करे कि आने वाले समय में अब और कोई भी लड़की को ऐसिड हमलों का शिकार ना बनना पड़े। और ये तभी सम्भव होगा जब कठोर कानून बनेगा साथ ही दरिंदों के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्राविधान तैयार किया जायेगा। सरकार महिलाओं की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए ठोस निति तैयार करे। क्योंकि आज कमजोर कानून की वजह से ही समाज के कुछ कलुषित मानसिकता के लोग चोरी छिपे महिलाओं के साथ घिनौने कृत्य करने से बाज नहीं आ रहे हैं। बस अब और नहीं सहेंगे हम….और नहीं डरेंगे हम….और नहीं झूकेंगे हम।
और आज बुलंद हौसलों वाली लक्ष्मी के उम्मीदों को पंख लगाए आलोक ने :
जैसा कि मै पहले भी बता चुका हूँ कि लक्ष्मी बेहद खूबसूरत लड़की थी लेकिन अपने गलत ईरादों में कामयाब न होने पर दरिंदे ने उसकी खूबसूरती को एसिड से झुलसा दिया जिससे डबल्यूएच बदसूरत हो गई । लेकिन लक्ष्मी से जब मै बार-बार पूछता कि अब इस तरह से खुलेआम सार्वजनिक स्थानों पर जाने में काबी संकोच होता है क्या चेहरा ढकना पड़ता है … तो बेबाक लक्ष्मी तपाक से हँसते हुए बोलती है कि अरे सर अब यह चेहरा लक्ष्मी का कहाँ है ! ये तो हमारे समाज का चेहरा है । अब मुझे इस चेहरे को छुपाने की क्या जरूरत इसे तो मै बार-बार समाज को खुलकर दिखाती हूँ कि यह देखो यही है असलियत इस समाज की । अफशोस कि आज भी एसिड अटैक की घटनाएं होती रहती हैं और हमारा सिस्टम बहुत कठोरता से निबटने के लिए अभी तक तैयार नहीं है । जिसका दुख होता है लेकिन हमारा संघर्ष जारी रहेगा । बताते चलें कि आलोक जो कि पढे लिखे होनहार व सम्पन्न परिवार से आते हैं उन्होने लक्ष्मी को हमेशा हमेशा के लिए अपना जीवन साथी चुन लिया है और अब इन दोनों के आंगन में एक नन्ही सी बुलबुल बी चहकती है जिसका नाम है पीहू । लक्ष्मी बताती है कि उसे आलोक व उनके परिवार के लोगों की ओर से बहत सारा मान सम्मान व प्यार मिलता है जो कि समाज के उजले पक्ष को दर्शाता है ।
शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ संस्थापक , निदेशक यूथ आइकॉन Yi नेशनल अवार्ड । 9756838527 ।