फेसबुक ने की उसकी तरक्की की राह आसान ! और आज उसने पूरे देश में अपनी सफलता का परचम लहरा दिया । Devesh Bhardwaj हैं सचमुच Youth icon । युवा वर्ग इस story को जरूर पढ़ें ।
देवेश से देवेश की चैट पर देवेश की खास रिपोर्ट ! व्हट इज़ विक्रम, सर…..।
देवेश की सफलता में फेसबुक का भी हाथ है। वो बताते हैं कि अंग्रेजी में मुझे अधिक कठिनाई नहीं थी पर हिंदी पर पकड़ बनाना कठिन चुनौती थी और इसके लिए अच्छे साहित्यकारों की पुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ वो समसामयिक विषयों पर लोकप्रिय फेसबुक पोस्ट्स को भी निरंतर फॉलो करते रहते थे। मेरी नामराशि के इस युवा देवेश भारद्वाज को, भारत की लोकसभा में ट्रांसलेटर के पद पर तैनाती मिली है। देवेश बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली में पाँच साल तक संविदा शिक्षक का कार्य किया फिर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में कंसल्टेंट के रूप में योगदान करते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। और अब इस सफलता के रूप में उनकी मेहनत रंग ला गयी है।
फेसबुक से जुड़ा एक युवा मित्र बीते दिसम्बर में मैसेज कर देहरादून में अपने परीक्षा केंद्र की लोकेशन और पहुँचने का तरीका व ठहरने की जगह के बारे में पूछता है। और मैं लापरवाही से उत्तर देता हूँ कि यू मे स्टे एट हॉटेल्स/धर्मशालाज़ नियरबाइ प्रिंस चौक। फ्रॉम ISBT यू कैन टेक 5 नम्बर विक्रम फॉर रीचिंग प्रिंस चौक। मेरे इस जवाब पर युवा ने जो सवाल किया उससे मुझे अपनी लापरवाही का बोध हुआ। सवाल था व्हट इज़ विक्रम सर? स्पष्टीकरण देना पड़ा कि इट्स ब्लू कलर्ड थ्री वहीलर पब्लिक ट्रांसपोर्ट वेहिकिल। लाइफलाइन आव कॉमन मैन आव देहरादून। मुझे छेड़ते हुए युवा ने लिखा, इंट्रस्टिंग, वी हैव ई-रिक्शा इन देल्ही तो मुझे भी दून को डिफेंड करना पड़ा, एवरी सिटी हैज इट्स ओन फ्लेवर। इंज्वॉय दिस वन आल्सो। ऑटो इज़ आल्सो एवलेबल बट रादर एक्सपेंसिव।
इसी युवा का जब अभी पिछले हफ्ते मैसेज आया कि उसने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक वन प्राप्त कर टॉप किया है तो सहसा विश्वास नहीं हुआ। यूपीएससी की साइट चैक करी तो बात सच निकली।
मेरी नामराशि के इस युवा देवेश भारद्वाज को, भारत की लोकसभा में ट्रांसलेटर के पद पर तैनाती मिली है। देवेश बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली में पाँच साल तक संविदा शिक्षक का कार्य किया फिर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में कंसल्टेंट के रूप में योगदान करते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। और अब इस सफलता के रूप में उनकी मेहनत रंग ला गयी है। देवेश की सफलता में फेसबुक का भी हाथ है। वो बताते हैं कि अंग्रेजी में मुझे अधिक कठिनाई नहीं थी पर हिंदी पर पकड़ बनाना कठिन चुनौती थी और इसके लिए अच्छे साहित्यकारों की पुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ वो समसामयिक विषयों पर लोकप्रिय फेसबुक पोस्ट्स को भी निरंतर फॉलो करते रहते थे। मैं उनके किस तरह काम आया, नहीं जानता पर उनके विनम्र आभार और आमंत्रण का मैसेज पढ़कर अच्छा लगा। आभार से अधिक उनकी लगन देखकर। सहज ही ये कोट याद आया कि टॉपर्स डॉंट डू डिफरेंट थिंग्स,दे जस्ट डू थिंग्स डिफरेंट्ली।
इसी संदर्भ में मुझे अपनी पहली वो दून यात्रा भी याद आती है जब किसी परिचित ने चलते हुए समझाया था कि घंटाघर से विक्रम में चले जाना। परिचित के विक्रम शब्द प्रयोग पर मुझे शंका हुई और मैंने एक पुलिसकर्मी को पूछा कि राजपुर के लिए ऑटो कहां मिलेगा। और फिर एक शब्द की क़ीमत मुझे 95 रुपए अधिक देकर चुकानी पड़ी थी।
मशहूर स्कूल्स के शहर, देहरादून में, ब्रैंड नेम विक्रम, प्रॉपर नाउन से कॉमन नाउन कैसे बन गया, एक रोचक शोध का विषय हो सकता है।
एनीवे, कांग्रेट्स Devesh Bhardwaj ऑन युअ: ग्रैंड सक्सेस एंड थैंक्स फॉर दिस विक्रम एपिसोड।
Mast, congratulations dear bharadwaj ji..