सरकार चाहे अरबों रूपये भी खर्च कर ले पर वह ऐसी रचना कभी भी नहीं कर सकती है ।
एक बार फिर उठे कदम और बढ़ चले ऊंचे हिमालय की ओर …. हिमालय.. जहां आकर अहसास होता है कि प्रकृति जब देना चाहे तो दिल खोलकर देती है। इतना, कि इंसानी कल्पनाओं से बाहर, अकल्पनीय, अलौकिक और अविश्वसनीय…!!!
इस बार का लक्ष्य पंच केदारों में से एक रुद्रनाथ तक कि ट्रैकिंग, जो सभी बद्री और केदारों में दुष्कर मानी जाती है। सफर का आरम्भ 07 जुलाई को शाम साढ़े पांच बजे अपने कार्यस्थल से प्रारंभ हुआ। अपने सहयोगियों के साथ एक ही दिन पहले बने इस कार्यक्रम की स्मृतियां वर्षों साथ रहने वाली है।
इस सफर का पहला पड़ाव सगर नामक गाँव जो इस ट्रैक का बेस कैंप है। अगले दिन प्रातः 9 बजे प्रारम्भ की हुई यात्रा विभिन्न पड़ावों जैसे पुंग बुग्याल, ल्वीठी बुग्याल, पनार बुग्याल, पित्रधार से होती हुई पंच गंगा पर जाकर खत्म हुई। सगर से पनार की दूरी लगभग 12 किमी है।
लेकिन 6 किमी की सीधी चढ़ाई से अच्छे 2 लोगों की हालत पतली हो जाती है। इस चढ़ाई को पार करने पर महसूस हुआ कि क्यों इस जगह पर आने से लोग हिचकते हैं। पनार से 5 किमी की दूरी पर पंच गंगा अवस्थित है।
इस पूरे रास्ते मे पहले बेहद खूबसूरत घना जंगल और बाद में पड़ने वाले बुग्याल बहुत ही शानदार हैं। इसी दिन हमे मोनाल और भरल को देखने का सौभाग्य मिला। इस ट्रैक में पनार से रुद्रनाथ तक 8 किमी तक लगातार बुग्याल में ही चलने से बेहद ही शानदार नजारे देखने को मिलते है। इस समय यहां खिलने वाले भांति- 2 के फूल इतने शानदार दृश्य पैदा कर रहे होते हैं कि लगता है जैसे धरती पर यही स्वर्ग हो। यहां से दिखने वाली पर्वत श्रृंखला जिसमे नंदा देवी, नन्दा घुंटी, नन्दा कोट, कामेत आदि अनेक चोटियां दिखती है बेहद शानदार है।
हमारी टीम अगली सुबह जल्दी उठने के पश्चात एक शानदार सूर्योदय के दर्शन करने के पश्चात रुद्रनाथ जी के लिए रवाना हुई। मूर्ति पूजा में विश्वास न रखने वाले मुझ जैसे इंसान को रुद्रभिषेक देखकर बेहद सुकून का अहसास हुआ। इतने कठिन स्थान पर आस्था ही इंसान को ऐसे बेहद कठिन काम को करने के लिए प्रेरित कर सकती है। लगभग 10 बजे रुद्रनाथ से वापसी कर पंचगंगा से अनुसुइया देवी वाले रास्ते से लौटने का कार्यक्रम तय हुआ।
ऊपर बुग्याल में बढ़ते हुए रास्ते मे लगभग 50 है0 के क्षेत्र में उगे हुए अलग अलग रंग के फूलों को देखकर मन बेहद प्रफुल्लित हो गया। अहसास हुआ कि प्रकृति के आमने इंसान कितना छोटा प्राणी है। जिस काम को करोड़ों रु0 खर्च करने के बाद भी इंसान न बना पाए उस शानदार उद्यान को प्रकृति ने बगैर किसी धन खर्च किए बना डाला है। आज के दिन इस सफर के सबसे ऊंचे स्थान (3800 मी0) पर पहुंचकर नीचे उतरने शुरू किया। यहां पर रास्ता बेहद ढाल वाला और कठिन है।
नीचे देखने पर कलेजा बाहर को आ जाता था। पंचगंगा से 8 किमी की दूरी पर काण्डई बुग्याल में भोजन करने के पश्चात अनुसुइया देवी के मंदिर में दर्शन करने के उपरांत शाम साढ़े 7 बजे मंडल पहुंचकर तय हुआ कि वापस निकला जाए। रात डेढ़ बजे पूरी टीम सकुशल अपने कार्यस्थल पर लौट आई।
हिमालय को देखते हुए महसूस होता है कि इसे जितना देखो कम है। हर बार लगता है कि इससे बेहतर शायद न मिले लेकिन अगली बार, हर बार बेहतर मिलता है और इसे और देखने की इच्छा प्रबल होती जाती है।
रिपोर्ट के साथ सभी फोटो साभार श्री सत्या रावत ।
घुमंतू रिपोर्ट : सत्या रावत . Lwinthi Bugyal : सरकार चाहे अरबों रूपये भी खर्च कर ले पर वह ऐसी रचना कभी भी नहीं कर सकती है । Satya Rawat , Rudranath ।