बड़ा फैसला — कड़ा फैसला । त्रिवेन्द्र का जीरो टॉलरेंस ।
अफसरों का अफसरी के साथ-साथ नेताओं का सलाहकार बनना, उन्हें चुनाव जीतने के गुर सिखाने जैसी हदें पार करने का दुस्साहस भी प्रदेश ने देखा। राज्य विभाजन पर उत्तर प्रदेश से कुछ ज्यादा ही काबिल अफ़सर उत्तराखंड के हिस्से में मिले थे। अनेक अफ़सर नए राज्य को सजाना संवारना भी चाहते थे, किन्तु नेताओं के प्रिय वही हुए जो ‘विशेष’ कलाओं में निपुण थे।
जीरो टॉलरेंस को जुमला बताने वाले आज शांत हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग (एन एच ) मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य के दो आईएएस अफसरों पर निलंबन की कार्यवाही करके भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने जीरो टॉलरेंस के रूप को साकार किया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रावत ने राज्य के नेताओं की भ्रष्ट नौकरशाहों के प्रति सॉफ्ट-कॉर्नर रखने वाली अवधारणा को तोड़ा है। नौकरशाहों की लालफीताशाही के चंगुल में राज्य अपने निर्माण की शुरुआत में ही आ गया था। अनुभवहीन नेताओं को कच्चा लालच देकर अपनी गिरफ्त में ले कर इन बड़े बाबुओं ने अव्यवस्था का जो नंगा नाच किया, उसका उदाहरण शायद ही देश में कहीं मिले।
अफसरों का अफसरी के साथ-साथ नेताओं का सलाहकार बनना, उन्हें चुनाव जीतने के गुर सिखाने जैसी हदें पार करने का दुस्साहस भी प्रदेश ने देखा। राज्य विभाजन पर उत्तर प्रदेश से कुछ ज्यादा ही काबिल अफ़सर उत्तराखंड के हिस्से में मिले थे। अनेक अफ़सर नए राज्य को सजाना संवारना भी चाहते थे, किन्तु नेताओं के प्रिय वही हुए जो ‘विशेष’ कलाओं में निपुण थे।
नवोदित उत्तराखण्ड में अनुभवहीन नेताओं और यूपी के मुकाबले प्रमोशन की अपार संभावनाओं ने अफसरों की बददिमागी के पंख लगा दिए। हद तो तब हो गई, जब ये अफ़सर सरकार गिराने, लाबिंग करने और मुख्यमंत्री हटाने के अभियानों के हिस्से बनने लगे। ‘सौ खून माफ’ वाले वरदानी अफसरों ने व्यक्तिगत रूप से खूब उन्नति की।
इस मिथक को तोड़ने का मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साहस किया है। इन उम्मीदों के साथ कि वे इस प्रजाति के अफ़सरों पर नकेल करेंगे और सत्ता की धमक का एहसास कराएंगे। प्रचंड बहुमत की सरकार की शक्ति इस सड़े-गले प्रशासनिक सिस्टम को बदलने में सक्षम है, केवल इच्छाशक्ति चाहिये।
अल्पभाषी और हठी बताने होने का आरोप लगाने वाले आज उनके इस कड़े फैसले पर गदगद है । आगे भी मुख्यमंत्री इसी तेवर के साथ राज्य की अकर्मण्य अफसरशाही को ढर्रे पर लाएंगे और प्रदेश के विकास को गति देने के लिए ऐसे ही कड़े फैसले लेते रहेंगे। इससे राज्य के प्रति समर्पित ईमानदार अफसरों का मनोबल भी बढ़ेगा।