आप रोइएगा जरूर इस पोस्टर को देखकर ! जिस दिन उत्तराखंडियों अस्मत को लूटा गया उसी दिन को ठुमके लगाने के लिए चुना गया । वो हसेंगे, मस्ती करेंगे, लेकिन आप उत्तराखंड की किस्मत पर रोइए जरूर !
पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल की खरी-खरी ।
इस चित्र को गौर से देखिए और उत्तराखंड की किस्मत पर रोइए। ऐसा समाज जो दो अक्टूबर रामपुर तिराहे की काली रात को इतनी जल्दी भूल गया। जिस रात को याद करके हमें शहीदों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए , जिस रात बहशी भेडियों से कुचली उत्तराखंड की नारियों के प्रति हमारे मन में आज भी उन्हें सामाजिक मजबूत संबल देेने का भाव होना चाहिए। हम दिल्ली में एक मंच बेशर्मी से सजाने वाले हैं , जिसमें ठुमके लगेंगे, गीत होंगे। हो सकता है कि कमेडियन भी बुलाया हो जो सस्ते जुमले सुनाए।
बहुत पहले से कह रहे हैं कि उत्तराखंड बनने के बाद कई लोग संस्कृति साहित्य के नाम पर और अपने पुराधाओं को याद करने जैसे तमाम प्रपंचों के साथ खूब लूटपाट में लगे है। कुछ ही कार्यक्रम होते हैं जो सजगता के साथ, अपने समाज को जोडने के लिए होते हैं। जिनमें लूटपाट का भाव नहीं होता है बल्कि आयोजन करने की सहज मनोवृत्ति होती है ।
और उनमें लिया धन खर्च के रूप में भी दिखता है। वरना
अधिकांश कार्यक्रम शुद्ध ठगी के रूप में है। जिनमें लोगों से पैसा तो लिया ही जाता है। नेता , व्पापारी, सरकार , ओएनजीसी जैसी संस्थाओं और धनकुबेरों से पैसा लिया जाता है। इस तरह के आयोजन में केवल पैसा कमाना ही उद्देश्य होता है।
दरअसल संस्कृति परंपरा को बचाने के नाम पर कई तरह के धंधे उग आए हैं। कह नहीं सकते कि दो अक्टूबर के इस आयोजन के पीछे क्या मकसद है। हो सकता है कि इसमें ऐसी लूटपाट और चंदा खींचने की प्रवृत्ति न हो।
लेकिन कम से कम आयोजकों को इस दिन का ख्याल रखना चाहिए था। ऐसा नहीं कि दो अक्टूबर को सारे कामकाज रुक जाएंगे। लेकिन दो अक्टूबर रामपुर तिराहे की भूलकर कोई ऐसा उत्तराखडी भी होृ सकताजो ठुमके लगाए, रंग बिरंगे गीत लगाए।
हो सकता है कि यह संस्था बाद में इसे चालाकी से इसे श्रद्धांजलि सभा का रूप दे दे लेकिन जिस तरह के पोस्टर दिखे हैं वह शर्मनाक है। कलाकारों को शहीदों की इज्जत रखते हुए ऐसे आयोजनों न केवल ठुकराना चाहिए बल्कि भत्सर्ा भी करनी चाहिए। पूरा विश्वास है कि कम से कम दीपा पंत और उनके पिता इस आयोजन में नहीं जाएंगे।
संस्कृति के अलावा विभिन्न पुराधाओं पर किताब छपवाकर ठीक ठीक रकम जेब से डालने का नया धंधा पनपा है। एच एन बहुगुणा पर कुछ समय पहले आई एक विशेष पत्रिका पर
नजर पडी।। जिसमें एक आध लेख छोडकर बहुगुणा पर ऐसी कोई सामग्री नहीं जिसे दुर्ळभ कहा जा सके। पठनीय कहा जा सके। मामूली से लेख हैं । पर उक्त पत्रिका की असली कहानी है , बडे बडे बारह- तेरह विज्ञापन । ये विज्ञापन मामुली नहीं ठीक ठीक पैसा ऐंठने लायक है। शासन में ऊपर से नीचे तक के विज्ञापन इसमें दिख रहे हैं।
वह पत्रिका पता नहीं कितनी छपी, लेकिन पैसा ऐंठने का अच्छा खासा जुगाड दिखता है। इसमें चालीस पचास फोटो भी आम लोगों की हैं जाहिर है उनसे भी वसूला गया होगा। और इससे भी भद्दा यह है कि पत्रिका की कीमत 300 रुपए से ज्यादा रखी गई है। यानी चारों तरफ से कमाई के तरीके और जिक्र एच एन बहुगुणा का। ऐसे काम रुकने चाहिए। यह सीधे सीधे ठगी के नए धंधे है। पिछले दिनों दिल्ली में वीर चद्र सिंह गढवाली पर एक पत्रिका निकाली गई। अफसोस हुआ कि पत्रिका में एक भी लेख वीर चंद्र सिंह गढवाली पर नहीं था । केवल कवर पर उनका फोटो था। ंअंदर बेशुमार गल्तियां।
विभिन्न क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम पर जो ऐसी खास पत्रिका आती है वो विज्ञापन लेने के धंधे हैं और इनमें जो पढने की सामग्री होती है वह अक्सर बहुत ही स्तरहीन होती है। लेकिन मैगजीन लाने वाले को इससे कोई मतलब होता है। वह पचास साठ पत्रिका निकाल कर अपना घंधा कर लेता है। रोक लगनी चाहिए ऐसी चेष्टाओं पर