अतीत में जमी जड़ों के बिना भविष्य का पेड़ खड़ा नहीं हो सकता !
जिधर देखो , उधर एंग्री यंगमैन’ दिखते हैं. मुहावरे के मैन’ पर मत चिपक जाइएगा यह बड़ा पुराना है जब अमिताभ बच्चन जवान हुआ करते थे। अभी तो जितने ‘यंग’ हैं सभी ‘एंग्री’ हैं। चारों तरफ गुस्सा ही गुस्सा ही दिखता है. तनतनाये हुए युवा! भन्नाये हुए युवा! निराश हताश बेचैन बे-आस. वे बड़ी नौकरियाँ कर रहे हों या अभी रोजगार की तलाश में हों ठीक-ठीक कमा-खा रहे हों या अभी पढ़ाई में ही लगे हों युवाओं का मूड बहुत बिगड़ा हुआ है!
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हर तरफ यह गुस्सा यह कसमसाहट यह छटपटाहट दिखती है। ऐसा लगता है कि हम सब किसी भयानक जंगल में फँस गये हों अँधेरा घना और भुतहा हो चारों तरफ बीहड़ कँटीली झाडि़याँ हों और कहीं कोई रास्ता न हो कहीं कोई रोशनी न हो। ऐसे में अकसर अपने साथ चल रहे लोग ही डरावने लगने लगते हैं दुश्मन लगने लगते हैं और डर लगने लगता है कि कहीं अपनी जान बचाने के लिए वे हमारी ही बलि न ले लें।
माहौल कुछ-कुछ ऐसा ही है। और मुझे 80 के दशक में आयी फिल्म ‘गमन’ के लिए शहरयार का लिखा एक गीत याद आता हैः
सीने में जलन आँखों में तूफान-सा क्यों है
इस शहर में हर शख्स परेशान-सा क्यों है।
क्या कोई नयी बात नजर आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान-सा क्यों है।
सचमुच कभी-कभी मैं बहुत हैरान होता हूँ। दुनिया के हर क्षेत्र में हमारे युवा अपनी प्रतिभा के झंडे फहरा चुके हैं और लगातार नयी सफलताएँ हासिल कर रहे हैं विज्ञान हो या अन्तरिक्ष विज्ञान मेडिकल साइंस हो या राजनीति अर्थशास्त्र हो या कानून या लेखन दुनिया भर में कहाँ नहीं उन्होंने अपनी सफलताओं की सुनहरी गाथाएँ लिखीं और लगातार लिख रहे हैं। आज देश की साक्षरता दर 74 प्रतिशत से भी ज्यादा है। पहले से कई गुना अधिक नौकरियाँ हैं बेरोजगारी पहले से कहीं कम है पढ़ने-लिखने के और विदेशों में जा कर नौकरियाँ करने के तमाम अवसर हैं फिर क्यों इतनी हताशा है? हमें आजादी मिले 66 साल हुए हैं। इस यात्रा को हम अगर दो हिस्सों में बाँट दें तो आजादी के 33 साल बाद यानी 1980 में हमारी प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 266 डालर थी जो अब 2012 में बढ़ कर 1492 डालर हो गयी। यह आँकड़ा किसी सरकार की सफलता-असफलता गिनाने के लिए नहीं दिया जा रहा है बल्कि 1980 के बाद जन्मे युवाओं को यह बताने के लिए दिया जा रहा है कि आप अगर थोड़ा पीछे मुड़ कर देख लें तो आपको अपना वर्तमान उतना कँटीला नहीं लगेगा।
मुझे लगता है कि मूल समस्या यही है कि अब कोई पीछे मुड़ कर नहीं देखना चाहता!
आज सूचना क्रान्ति का जमाना है। तमाम सूचनाओं की रेलमपेल हैै। गाँव तो बहुत बड़ी चीज है इंटरनेट ने दुनिया को एक छोटे-से घर में बदल दिया है। पुराने जमाने में अलादीन का चिराग होता था। आज इंटरनेट है। हर जानकारी एक क्लिक पर हाजिर। दुनिया के किसी हिस्से में बैठा कोई शख्स एक क्लिक पर आपके कम्प्यूटर की स्क्रीन पर चैट के लिए हाजिर। लेकिन सूचनाओं की इस सुनामी के बीच फँसे हम समझ नहीं पाते कि हम किस सूचना को पकड़ें और किसे छोड़ें ? जब तक हम कोई फैसला कर पायें सूचनाओं की नयी खेप उन पुरानी सूचनाओं को हमारे पीछे धकेल देती है जिनके बारे में अभी हम सोच-विचार कर ही रहे थे कि इनका क्या करें। सूचनाएँ आयीं सूचनाएँ गयीं आयीं और गयीं लेकिन हाथ जो लगीं जरूरी नहीं कि आप उन्हीं सूचनाओं को चुन कर चुनना चाह रहे थे। अब जो आ गयीं सो आ गयीं या और वे भी पल भर बाद शायद बेकार हो जाएँ जैसे ही सूचनाओं का नया थपेड़ा हम तक पहुँचे!
कुल मिला कर छोटी-सी बात यह समझने की है कि सूचना तो आपके हाथ में है लेकिन उसका कोई आगा-पीछा आप जानते-समझते नहीं। जब नहीं जानते तो आपको क्या पता कि इसका इस्तेमाल आपको फायदा पहुँचायेगा या नुकसान यह संजीवनी होगी या जहर? इसलिए अकसर यह होता है कि हमें दुनिया में अपने सिवा सब कुछ बहुत चमकीला दिखता है। बहुत बार तो यह चमक सिर्फ ऊपर से चढ़ाये गये सोने के पानी जैसी होती है जो हमें उस समय चैंधिया तो देती है लेकिन बाद में पता चलता है कि वह तो पीतल का माल था। बेकार!
कई बार यह चमक असली भी हो सकती है होती है। हम कहते हैं “वाव”….”आसम”. लेकिन हमें कहाँ टाइम कि ठहर कर यह देखें कि इस ‘वाॅव फैक्टर’ को पाने में कितने बरस की कड़ी मेहनत अनुशासन लगन लगी है. थोड़ा पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पायेंगे कि किसी भदेस खुरदुरी बदरंग स्थिति को बदल कर आॅसम बना देने की कहानी कितनी लम्बी जीवटभरी है और उसमें कितने लाखों अनाम गुमनाम सितारों का खून-पसीना लगा है। दोस्तो मैं जानता हूँ कि यह ‘स्पीड एज’ है। रफ्तार बढ़ती ही जा रही है और बढ़ती ही जाएगी। आप वैज्ञानिक क्रान्ति के उस मोड़ पर पैदा हुए हैं जहाँ कोई मशीन कोई टैकेनालाॅजी कोई डिवाइस कोई थ्योरी कोई खोज ज्यादा दिन नहीं ठहर सकती जो आज बहुत महान है कल उसकी जगह रद्दी की टोकरी में ही है। इसलिए आप समय के साथ चलें बल्कि चल सकते हों तो समय के आगे चलें लेकिन एक बुनियादी बात याद रखें कि आप अपनी यात्रा में पीछे क्या छोड़ आये हैं। अगर आपको अतीत नहीं मालूम होगा तो आप भविष्य नहीं गढ़ पायेंगे!
जो आज है वह वर्तमान है जो कल था वह अतीत है जो कल होगा वह भविष्य होगा। जो आज वर्तमान है वह कल अतीत बन जायेगा जो आज भविष्य है वह कल वर्तमान हो जाएगा और एक नया कल भविष्य बनने के लिए तैयार होगा। न अतीत के बिना वर्तमान को समझना सम्भव है और न वर्तमान के बिना भविष्य की कल्पना सम्भव है।
इसलिए अतीत से सीखिए वर्तमान को समझिए और भविष्य को बनाइए। आज जब मैं देखता हूँ तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स को तो दिल बैठता है। युवाओं की आँखों में तैरते सपनों के बजाय विक्षोभ का गर्द-गुबार आक्रोश की लपटें तिरस्कार का लावा और घृणा का कीचड़ दिखता है। विक्षोभ और आक्रोश इसलिए कि उन्हें लगता है कि राजनीति सड़ चुकी है और सरकारें चला रहे लोग सिर्फ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उन्हें देश की नहीं केवल अपनी जेबें भरने की फिक्र है। अगड़े-पिछड़े हिन्दू-मुसलमान में बँटी जहरीली मानसिकता पहले से कहीं मुखर दिखती है क्योंकि हर वर्ग के युवाओं को लगता है कि वे उन अवसरों से वंचित हो रहे हैं जिन पर उनका हक है। उन्हें लगता है कि उनकी पुरानी पीढि़यां मूर्ख और फिसड्डी थीं इसलिए जो कुछ भी पुराना है वह तिरस्कार योग्य है।
लेकिन क्या यही सच है? आप पिछली पीढि़यों से कहीं ज्यादा उन्नत हैं कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे हैं और कहीं ज्यादा सूचनाएँ आपके हाथ में हैं। होना तो यह चाहिए था कि सत्य और तथ्य आपको पानी की तरह साफ दिखना चाहिए था। लेकिन कुछ शैतानी आत्माएँ आपको भरमा देती हैं
आप वही देखते हैं जो वे दिखाना चाहती हैं– एक बरगलाया हुआ इतिहास एक बटा दो दो बटा चार वर्तमान और एक बरबाद भविष्य!
आपके इतिहास और वर्तमान में बहुत कुछ अच्छा भी है और कुछ बुरा भी। यह तय आपको करना है कि आप अपना भविष्य बनाने के लिए अपने अतीत और वर्तमान से क्या चुनते हैं अच्छाइयों को या बुराइयों को? अब यह तो एक बच्चा भी बता देगा कि आप इनमें से जिसे चुनेंगे भविष्य वैसा ही बनेगा! आप तो बच्चों से ज्यादा समझदार हैं! हैं न! और अन्त में एक और बात अतीत से आप सिर्फ सीखते ही नहीं वहाँ आपकी जड़ें होती हैं। पेड़ कितना भी ऊँचा हो आसमान छूता हो फिर भी जड़ें मिट्टी के भीतर गहरे अँधेरों में दबी होती हैं और पेड़ को जिन्दा रहने के लिए भोजन पहुँचाती रहती हैं। इसलिए अतीत में जमी जड़ों के बिना भविष्य का पेड़ खड़ा नहीं हो सकता. शायद बात लम्बी हो गयी लेकिन करनी जरूरी थी। अब और बोर नहीं करूँगा!
कमर वहीद नक़वी
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nakvi sir ne ye jo article likha hai vo youth ko jyada se jyada parna chahiye aur apne atit ko nahi bhulna chahiye