सुना है कन्हैया ने जेएनयू में एक बार फिर भाषण दिया है, लेकिन कहीं दिखायी-सुनायी नहीं दिया। किसी चैनल पर लाइव प्रसारण भी नहीं हुआ, बाद में भी किसी ने रिपीट भी नहीं किया। सुना है उसने इस बार काली जैकेट और उसके अंदर गोल गले वाली टीशर्ट भी नहीं पहनी थी, बल्कि इसके बजाए कुर्ता पहना था। शायद नया सिलवाया होगा। लेकिन हुआ क्या ? क्या अचानक पूरा मीडिया राष्ट्रवादी हो गया, जिसने ‘कामरेड कन्हैया’ को ब्लैक आउट कर दिया। या फिर मीडिया के ज्ञानचक्षु खुल गए, कि एक ‘राष्ट्रद्रोही’ को इतना फुटेज नहीं मिलना चाहिए या फिर जेल में ‘जन्मे’ कन्हैया के ग्लैमर का सफर इतना ही था। दरअसल मीडिया में इसके पहले इतना स्पष्ट विभाजन कभी नहीं था, इसलिए मुझे डर है कि जब मैं अपना टीवी ज्ञान या एक टीवी पत्रकार के तौर पर अपनी बात लिखूंगा, तो मुझे मूढ़ मान लिया जाएगा, लेकिन टीवी न्यूज़ की गूढ़ बात तो यही है कि उस दिन वो टीवी की मजबूरी थी कि कन्हैया घंटे भर तक प्राइम टाइम में बिना ब्रेक के लौंडे के लिबाज़ में लाइव भाषण देता रहा और अब ये टीवी की ही हकीकत है, कि वो नेताओं की तरह कुर्ता पहनकर आया, भाषण दिया और न्यूज़ में लोग देख भी नहीं पाए कि ‘कामरेड कन्हैया’ दरअसल कुर्ते में दिखते कैसे हैं।
दरअसल उस दिन भाषण देते वक्त चूक कन्हैया से भी हुई थी और भाषण दिखाने वाले न्यूज़ चैनलों से भी, लेकिन फायदा उस दिन कन्हैया ने भी उठाया और न्यूज़ चैनलों ने भी। कन्हैया ने अपने 50 मिनट के भाषण में नेता बनने और पीएम मोदी के आलोचक होने का खिताब तो हासिल कर लिया, लेकिन अपने ऊपर लगे देशद्रोह के दाग को धोने का मौका गंवा दिया । अदालत के फैसले से पहले लोगों की निगाह में बेगुनाह साबित होने का बेहतरीन मौका कन्हैया के पास था, अगर वो तरन्नुम में लगाए “आज़ादी” के नारों में चंद शब्द और जोड़ देता। अफज़ल गुरु के विरोध के नारे या आतंकवाद का विरोध मात्र देशभक्ति का सर्टिफिकेट नहीं है, लेकिन ऐसे माहौल में जब आप अपने ऊपर लगे आरोपों से अपना बचाव यह कहकर कह रहे हैं कि आपने वो नारे लगाए ही नहीं। तो फिर एक घंटे में आपको अपने ऊपर लगे देशद्रोह के आरोपों को धोने का मौका था, लगा देते आतंकवाद, नक्सलवाद और अफज़ल के खिलाफ नारे । मार देते तमाचा उन चेहरों पर जो देशद्रोह के नाम पर शोर मचा रहे हैं । ज़ाहिर है ऐसा नहीं किया तो ईगो की बात तो नहीं ही रही होगी, ज़रूर कुछ सियासी खुराफात हुई होगी। क्योंकि सियासी रणनीतिकार और टीवी की नब्ज़ को समझने वाले आपके सलाहकार में शुमार हो चुके होंगे। जिनकी नेक सलाह पर कन्हैया ने वो ‘क्रांतिकारी’ भाषण दिया, जिसने उसे छात्र नेता से सीधे विपक्ष का नेता बना दिया।
अब बात न्यूज़ चैनलों की चूक की, जो समझ ही नहीं पाए कि उनका इस्तेमाल हो रहा है। मीडिया ने यह देखा ही नहीं कि कन्हैया है कौन । यह सोचा ही नहीं कि क्यों उसके एक घंटे के भाषण को लाइव दिखाया जाए । अगर देखा सोचा होता, तो कन्हैया को 5-10 मिनट से ज्यादा नहीं मिलते, क्योंकि कन्हैया कोई आंदोलन खड़ा करने वाला नेता नहीं था, जिसने लाठी डंडे खाये हों या फिर किसी मुद्दे को लेकर लंबा संषर्ष या योगदान रहा हो । उसकी पहचान सिर्फ एक ऐसे छात्र नेता की थी, जो देशद्रोह के आरोप में जेल गया और इस बात को लेकर विवाद है कि उस पर देशद्रोह का केस झूठा है या फिर गलत तरीके से दर्ज किया गया है । न्यूज़ चैनलों के पास एक मौका और था, जब वो अपनी चूक को संभाल सकते थे और वो तब जब यह पता चला कि कन्हैया ने तो अपने भाषण की पूरी लाइन ही बदल ली थी । अगर किसी को ऐसा लगता भी है कि कन्हैया ने बहुत अच्छा भाषण दिया, तो क्या बेहतर यह नहीं होता कि पहले उसके पूरे भाषण को रिकॉर्ड किया जाता, फिर उसे प्ले किया जाता, भले ही पूरा का पूरा कर देते । क्योंकि जो भी हो कन्हैया देशद्रोह का आरोपी था, वो भी नारे लगाने का आरोपी, पता नहीं एक बार फिर वो कुछ ऐसी वैसी बात लाइव प्रसारण के दौरान कह देता । फिर इसका ज़िम्मेदार कौन होता । एक टीवी पत्रकार होने के नाते मुझे पता है कि संभव नहीं था कि कन्हैया के भाषण को पहले रिकॉर्ड किया जाता और फिर उसका प्रसारण । टीवी चैनलों ने कन्हैया को आरोपी, पीडित, राजनीति का शिकार मानने के बजाए सिर्फ ‘मैन आफ द मूमेंट’ माना, जिसके बारे में लोग जानना चाह रहे थे, इसीलिए तिहाड़ से लेकर जेएनयू तक लगभग हर चैनल ने अपनी दस दस कैमरा टीम लगायीं और तकनीकी खराबी से पार पाने के लिए जेएनयू में एक से ज्यादा लाइव दिखाने वाले उपकरणों का इंतज़ाम भी किया । क्योंकि कोई भी चैनल टीआरपी की रेस में पीछे नहीं रहना चाहता था, वो भी प्राइम टाइम में । अब आप इसे टीवी की दुनिया की मजबूरी कहिए, स्वार्थ कहिए या फिर विशुद्ध कारोबार, हकीकत यही है ।
अब बात टीवी न्यूज़ के मिजाज की, तो जब भी टीवी न्यूज़ को दिलचस्प बनाने के तरीके पढ़ाए जाते हैं, तो हर टीचर दो बातें जरूर बताता है, वो भी अंग्रेजी में और वो ये कि “‘टीवी न्यूज़ इज़ अ टीम वर्क ” और “टीवी न्यूज़ इज़ आल अबाउट अ ड्रामा ” अब इस कसौटी पर कसिये उस दिन के भाषण को और उसके लाइव प्रसारण को, जिसमें सबकुछ था, इमोशन, ट्रेजडी, कॉमेडी, मिमक्री सबकुछ । अब वो सब खत्म हो गया, तो कैमरा जेएनयू में भाषण देते कन्हैया को कैद करने नहीं पहुंचे और अगर कुछेक पहुचे भी होंगे, तो टीवी तक भाषण नहीं पहुंच पाया । अब यकीन मानिये टीवी न्यूज़ की इसे कसौटी पर कसेंगे, तो आप नादान न्यूज़ चैनलों को माफ कर देंगे।
जिस तरह से कन्हैया को हीरो बनाने का प्रयास कई न्यूज़ चैनल कर रहे थे और जिस तरह से सोशल मीडिया ने उनकी धज़्ज़ियाँ उड़ाईं , उसी का परिणाम है कि अब चैनल वाले कन्हैया से मुंह मोड़ने पर मजबूर हैं।और दिल्ली न्यायलय के जज की टिप्पडिं भी कारगर सिद्ध हुयी।
बिल्कुल आज सोशल मीडिया हर आदमी को मीडिया मेन बना दिया है । और यह भारत कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था मे सबसे ज्यादा लाभदायक सिद्ध हो रहा है ।
जो भी था वो एक भयानक गलती थी मीडिया की जिसका खामियाज़ा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा।
जी बिल्कुल सही प्रतिक्रीया दी आपने मनि जी , और यह मीडिया के कभी न भूलाए जाने वाला एक सबक भी ।
satik vishleshln kiya hai kapil ji ne