सिंहस्थ का पहला शाही स्नान और डूबते उतराते हम !
कल सिंहस्थ का पहला शाही स्नान था। आखिर वो दिन आ ही गया जिसका इंतजार था। एफएम रेडियो और टीवी चैनलों पर सिंहस्थ को सिंघस्थ पुकारने का जिंगल सुन सुनकर लगने लगा था अब आ ही जाये सिंहस्थ या सिंघस्थ। वैसे तो उज्जैन में एक हफते पहले से ही हम डेरा डालकर सिंहस्थ के रंग के नाम पर लाखों लोगों के इस जमावडे में से मेले के अजब गजब रंग दिखा ही रहे थे मगर शाही स्नान याने ट्वेंटी ट्वेंटी का फाइनल। जमकर तैयारी करनी पडती हैं। वैसे ये मेरा चोथा कुंभ कवरेज है। मगर शाही स्नान के नाम पर रोमांच वैसा ही था जैसा पहली बार में था । प्रयाग के कुंभ और अर्धकुंभ में तो कडाके की ठंड में तडके उठकर मेला क्षेत्र में स्नान के लिये निकलने वाले
अखाडे की शोभायात्राएं कवर करनी पडती है। वहाँ पर मीडिया को भी मेलाक्षेत्र में हे अलग अलग तंबू गाडकर जगह दे दी जाती है इसलिये सुबह उठकर भागना आसान होता है। वहंा ये देखकर भी हैरानी होती थी कि हम ढेरों कपडे पहन कर दांत किटकिटाते रहे होते हैं मगर वहां नागा अघोरी बिना वस्त्र पहने बर्फ से ठंडे पानी में मजे में डुबकियां लगाते दिखते हैं। नहाते नागा की फोटो खींचना भी कम आसान नहीं होता। नागाओं के सामने आने पर हाथ में जो होता है उसे ही उठाकर मार देते हैं। शाही स्नान में कैमरामेनों के कैमरे टूटना, धक्का मुक्की में कैमरे या मोबाइल का पानी में डूबना बहुत सामान्य सी बात है। नागा अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझते। मगर नागाओं के शाही स्नान में नहान के वो विजुअल्स ही देशी विदेशी मीडिया में रूचि से देखे जाते हैं।
- उज्जैन में यहंा हम मेला क्षेत्र के बाहर होटलों में रूके थे। क्षिप्रा के घाट तक जाने के लिये ढेरों पुलिस अपने सैकडों बैरिकेड के साथ थी थे। बैरिकेडस को लांघने की बाधा दौड की अपनी पूरी तैयारी थी। सारे प्रकार के पास बिना संघर्प के इकटठे कर लिये थे। मुंबई से मेरे सहयोगी जितेंद्र दीक्षित भी आ गये थे ये उनका पहला कुंभ था। सिंहस्थ के दौरान पुलिस की सख्ती डरा भी रही थी कि कहां से कितना कवरेज कर पायेंगे। रामघाट पर मीडिया के लिये मंच तो बना दिया गया था मगर मंच की बंदिश मानना हम टीवी पत्रकारों के लिये कठिन होता है यहां तो कैमरा और माइक नागा साधुओं और स्नान करने वाली जानी पहचानी हस्तियों तक पहुंचाना होता है। फिर भले ही उस में नागाओं के डंडे पडे या फिर धक्कामुक्की में गिरे पडें। आखिर में तय हुआ कि जितेद्र रामघाट पर मंच से कवर करेंगे और मैं दत्त अखाडे वाले घाट पर नागाओं के पास जाकर उनसे बात करूंगा। घाट से ये सारी तैयारी कर लौट ही रहे थे कि पता चला आज तक और इंडिया टीवी की ओवी वैन भी आ गयी है
और वो उसे घाट के पास ले जाकर लगाने की कोशिश में हैं। ओवी तो हमारी भी थी मगर घाट के पास जाने की इजाजत सिर्फ दूरदर्शन को ही मिली थी। इसलिये हमने ओवी पार्किंग में खडी कर रखी थी। टेलीविजन पत्रकारिता में आप क्या कर रहे हो इससे ज्यादा ध्यान ये रखना पडता है कि आपके प्रतिस्पर्धी दूसरे क्या कर रहे है। बस फिर क्या था आजतक के अमित और इंडिया टीवी के पुप्पेंद्र की घाट पर ओवी लगाने की चिंता में हम भी शामिल हो गये। प्रभारी मंत्री भूपेद्र सिंह रात में दस बजे मेला दफतर में मीटिंग ले रहे थे हम उनको तलाशते हुये पहुंच गये। जैसा कि होता है मंत्री जी ने आईजी को फोन लगाया और हम तीन राप्टीय चैनलों की ओबी घाट के किनारे लगाने की व्यवस्था करने को कहा। उधर आईजी ने भी कुछ करते हैं कहकर बात टाल ही दी। हम हैरान थे कि सरकार सिंहस्थ का बेहतर कवरेज और ब्रांडिग के नाम पर करोडों रूप्ये खर्च कर रही है और जब लगातार कवरेज के लिये तीन राप्टीय चैनलों की ओवी तैयार हैं तो घाट के पास लगवाने से प्रशासन डर रहा है। साफ लग गया कि अफसरों का फौरी मकसद सिंहस्थ किसी तरह निपटाने में ही है। प्रशासन का जोर इस बात पर है कि बंदिशें इतनी लगायीं जायें कि लोग कम आयें। भीड नियंत्रण के नाम पर पाबंदियां ही पाबंदियां। इधर से नहीं उधर से जाइये और उधर से नहीं इधर से आइये। ओवी लगवाने की असफल मशक्कत में हम तीन चैनल वाले रात के साढे बारह तक आपस में और पुलिस अफसरो से बात करते रहे। उधर सुबह जल्दी उठने का तनाव अलग सर पर मंडरा रहा था। होटल आकर तीन बजे का अलार्म भर कर सोये और अधपकी सी नींद में तडके उठ कर तैयार
होकर घाटों की तरफ भागे। कुछ बैरिकेड प्रेस के नाम पर खोले गये तो कुछ बंद ही रहे। घाट से दो किलोमीटर दूर हमें रोक दिया गया फिर क्या था हाथों में कैमरा माइक और कंधे पर लाइव यू लेकर हम अपने कैमरामेन साथी होमेंद्र के साथ भागे। हर बैरिकेड पर भीड को घाट पर जाने से रोका ही जा रहा था। पुलिस वालों से हुज्जत कर भागते दौडते जब हम घाट पर बने मीडिया सेंटर के मचान पर पहंुचे तब जाकर जान में जान आयी। बैरिकेडस के शोर शराबे से दूर यहंा क्षिप्रा के घाट साफ सुथरे सजे हुये थे पहले शाही स्नान के लिये। इधर सुबह होने को थी और उधर सामने के घाट पर जूना अखाडे के नागाओं का जत्था चला आ रहा था। अब ऐसे में फिर एक चुनौती घाट के पार जाने की थी। क्षिप्रा के घाट पर बने रपटा को सजा कर पुल का रूप दिया गया था। पुलिस का पुल पर पहरा था ऐसे में थोडी बहुत रोका टोकी के बाद अब हम दत्त घाट पर थे और हमारे सामने सैंकडों नागा सन्यासी अपनी लंबी लंबी जटाएं खोलकर मस्ती में क्षिप्रा में स्नान कर रहे थे। नागाओं की टोलियां आ रहीं थी और जा रही थीं कुछ कैमरे पर बात कर रहे थे तो कुछ डंडा दिखाकर धमका रहे थे। तडके शुरू हुआ ये सिलसिला करीब दो बजे तक चलता रहा। शाही स्नान के ये रंग हम बिना कुछ खाये पिये दोपहर तक दिखाते रहे। आखिर में काम खत्म कर क्षिप्रा में हमने भी डुबकी लगायी और जब होटल पहुंचे तो चार बज रहे थे। शरीर की सारी उर्जा खत्म हो गयी थी। एक एक कदम मुश्किल से उठ रहा था। आधी अधूरी नींद, भूख प्यास और तेज धूप ने शरीर तोड दिया था। ऐसे में दर्द निवारक गोली खाकर सोने के अलावा कोई चारा नहीं दिख रहा था। उधर आफिस था कि उसे एमपी के जिलों से सस्ती बिक रही प्याज और दाल की स्टोरी करवानी थी। शाही स्नान का खेल सुबह के तीन घंटे चलकर खत्म हो गया था अब तो रात के बुलेटिन के लिये दाल और प्याज चाहिये। उधर मैं कह रहा था मुझे थोडा आराम चाहिये।
ब्रजेश राजपूत
(लेखक ABP न्यूज के वरिष्ठ संवाददाता हैं ।)
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