Trouble for BJP : भाजपा के फिसड्डी अध्यक्ष बने अजय भट्ट …!
जब से अजय भट्ट ने उत्तराखंड में भाजपा की कमान संभाली है उसके बाद वह एक के बाद एक मोर्चे पर विपक्षी खेमे के सामने औंधे मुंह गिरते-पड़ते नजर आ रहे हैं । मजेदार बात तो यह कि वह अपनी मुख्य प्रतिद्वंधि पार्टी कांग्रेस के सामने अपने ही बुने जाल में बार-बार फँसते जा रहे हैं । और ताजा मामला राज्यसभा चुनाव का ही देख लीजिए । जानकार तो कहते हैं यह चुनाव अजय भट्ट की राजनीतिक होशियारी की पोल पट्टी भी खोल गया है । अब सवाल यह कि क्या भाजपा अध्यक्ष अपनी अन्तरात्मा की मर्जी से पार्टी चला रहे हैं या वह किसी के हांकने पर ही चल रहे हैं । दोनों ही परिस्थितियों में अजय भट्ट भाजपा में अभी तक के पहले दर्जे के फिसड्डी अध्यक्ष माने जाएंगे । जो कांग्रेस की राजनीतिक बीशातों से बार-बार पटखनी खाते जा रहे हैं । और यह किसी भी दल के मुखिया की राजनीतिक अपरिपक्व कार्यशैली को दर्शाने के लिए काफी है ।
राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी , एवं राष्ट्रीय संगठन के नेता शिव प्रकाश के खासमखास माने जाने वाले अजय भट्ट 98 वोटों के बूते भाजपा प्रमुख की कुर्सी कबजाने में कामयाब जरूर रहे पर, अब दबी जुबान में भाजपाइयों के मुंह से निकलने ही लगा है की उत्तराखंड में पार्टी अजय भट्ट की नाकामियां व कोशयारी की कमजोर रणनीतियों को ढो रही है । जिसका नुकसान अब 2017 के चुनावों में भी मिलना पक्का है ।
अजय भट्ट जब नेता प्रतिपक्ष थे तो तब भी उन पर मित्र विपक्ष का ठप्पा लगता रहा । हरीश रावत के आने के बाद तो वह तब उनके सुर में सुर मिलाने लगे थे । जिसके बाद सत्ता और विपक्ष के प्रमुखों की गलबहियों से जनता के बीच बातों के बतोले भी खूब फेंटे जाने लगे थे । फिर भी अजय भट्ट अपने कद काठी और बोलने की कला से प्रभावी तो लगते ही हैं, इसी के चलते उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने पर एक बार लगा कि तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व मे सुसुप्त पड़ी भाजपा पुन: जीवित हो जाएगी । लेकिन कुछ ही दिनो बाद पता चला कि वे उच्च कोटी के कैमरा और छ्पास प्रेमी भी हैं । बिना किसी गंभीर रणनीति के ही उन्होने गढ़वाल और कुमायूं के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर तूफानी दौरा कहें या रोड शो करने शुरू कर दिये थे, तब भले ही प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उनकी बड़ी-बड़ी फोटो के साथ खबरे भी प्रमुखता से छपने लगी थीं पर तब अजय भट्ट जनता को यह ठीक से नहीं समझा पाए कि अचानक से रोड शो का मकसद क्या है ?
कुछ ही दिनों के बाद से तुरंत ही वे भाजपा के अब तक के सबसे चर्चित संगठन मंत्री संजय कुमार गुप्ता कि गोद मे नजर आने लगे और उनकी पसंद नापसंद पर एक जाती और क्षेत्र विशेष के लोगों की संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर काबिल होने कि प्रक्रिया लाचार होते देखते रहे । जिसकी वजह से कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं में भी गाहे बगाहे गुस्सा देखने को मिलता रहा है । भले ही वह फिलहाल मीडिया या संगठन के सामने खुलकर अभी अपनी बात या शिकायत दर्ज नहीं कर पा रहे हैं ।
भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख होने के बाबजूद, इस बीच अजय भट्ट, भगत सिंह कोशयारी के शिष्य होने की छवि से भी बाहर नहीं आ पाए । चर्चा होने लगी कि पहले नेता प्रतिपक्ष, फिर अध्यक्ष के बाद अब आने वाने वाले समय में मुख्यमंत्री बनने की ईच्छा भी अजय भट्ट के मन में हिलोरे मारने लगी हैं, इसके लिए उन्होने राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री शिवप्रकाश को भी साधना शुरू किया शिवप्रकाश उत्तराखंड की राजनीति मे ख़ासी दिलचस्पी भी रखते हैं । उनकी पसंद के अनेक चहेते संगठन मे काबिज भी हैं । एक तरफ अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को परवान चढ़ाने के लिए जोरदार मशक्कत जारी रही जबकि दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का सूबे की सियासत मे पछाड़ खाने का दौर भी जारी रहा, जो आज भी जारी है । और अगर यही स्थिति लगातार बनी रही तो, भले ही देश मोदी… मोदी… करता रहे, लेकिन अजय भट्ट की कृपा से भाजपा के कांग्रेसमुक्त अभियान को उत्तराखंड मे पलीता लगता भी तय माना जा रहा है ।
आज हम आपको सबको गौर करने की जरूरत है कि हरक सिंह रावत के विरोध पर राजनीति करने वाले किसी जमाने में Y श्रेणी सुरक्षा पाने वाले अजय भट्ट एक झटके मे प्रदेश अध्यक्ष होते हुए भी प्रभामण्डल के हिसाब से अब अपने पूर्व विरोधी हरक सिंह रावत से भी छोटे नेता हो चुके हैं । क्योंकि भाजपा के भीतर अजय भट्ट इस तरह का शक्ति केंद्र अपने इर्द-गिर्द खड़ा नहीं कर पाए, जिसकी वजह से आज भी उनकी गिनती कोशयारी के शिष्य के रूप में ही होती है ।
अजय भट्ट के पार्टी अध्यक्ष रहते पहले भीमलाल, और भीमताल हाथ से जिस तरह से निकले उससे भाजपा बेहाल है । पार्टी में दमदार और मजबूत दलित महिला चेहरा गीता ठाकुर को अजय भट्ट नहीं संभाल पाए । गीता ठाकुर भी भाजपा में दलितों उपेक्षा का आरोप लगाकर भाजपा को अचानक से यह कहकर बाई-बाई कर गई कि वह घर वापसी कर रही हैं ।
मजेदार बात यह भी रही कि अजय भट्ट कहें या बीजेपी गीता ठाकुर को आप इस लिए लाए कि मुख्यमंत्री हरीश रावत के दलित कार्ड को ध्वस्त कर सकें और अंत तक पार्टी को इसी एजेंडे मे रहना चाहिए था । लेकिन एन मौके पर पार्टी ने बिना जनाधार के बिना आधार के जो केवल कुछ केंद्रीय नेताओं के कृपा पात्र हैं, अनिल गोयल को मैदान मे उतार दिया । अनिल को पार्टी पहले भी राज्यसभा प्रत्याशी बना चुकी है । लेकिन इस बार जिस तरह से राज्यसभा के लिए नामांकन के बाबजूद अंतिम समय पर अचानक से दलित नेता गीता ठाकुर को पार्टी ने किनारे खड़े होने का फरमान सुनाया तो इससे स्वाभाविक है कि किसी के भी मान सम्मान को ठेस पहुंचेगी । और आखिर गीता को हटाकर पार्टी अध्यक्ष अजय भट्ट ने क्या संदेश प्रदेश कि जनता के बीच देना चाहा …? जबकि गीता ठाकुर सही मौके पर भाजपा के गाल पर करारा तमाँचा मारकर उनके अवसरवादी नकली दलित प्रेम का चेहरा सबको दिखा गई । वाकही भाजपा की अगर दलित वोटों मे पकड़ मजबूत होती तो वह कांग्रेस के दलित नेता व सरकार में वरिष्ठ मंत्री यशपाल आर्य की नाराजगी को मुद्दा बना सकती थी । कुलमिलाकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट यहाँ भी मौके से चुके और हरीश रावत के द्वारा हर अवसर पर मात खाने वाली भाजपा चारों खाने चित पड़ी है ।
दूसरी हरीश रावत भी 9 बागियों के जाने का जश्न मना रहे हैं जिन्हें अजय भट्ट अपनी ताकत बता कर घूम रहे हैं । हरीश रावत खुद मन ही मन भाजपा का आभर प्रकट कर रहे होंगे कि उनके सभी विरोधी एक झटके मे बाहर हो गए और वे निष्कंटक होकर खुशियाँ माना रहे हैं ।
बहरहाल भाजपा का कार्यकर्ता वर्तमान में पार्टी के अंदर के इन सब घटनाकर्मो से आहत है, क्योंकि 2017 में कार्यकर्ता को ही हर बूथ जिताने का जिम्मा सौंपा जाएगा । लेकिन गौर करने वाली बात यह भी होगी कि आलीशान होटलों में आराम फरमाने वाले इन नेताओं की भाजपा कार्यकर्ता कितनी सुनेगे यह तो अब 2017 ही बताएगा । दूसरी ओर भाजपा के वरिष्ठ नेता मोहन सिंह गांववाशी का कुछ दिन पहले अजय भट्ट को मुख्यमंत्री का उपयुक्त उम्मीदवार बताना भी एक कटाक्ष ही माना जा रहा है ।
फिलहाल अब अनेक भाजपाई सोच रहे हैं कि बीजेपी मे बदलाव के बजाय प्रदेश नेतृत्व का ही बदलाव कर दिया तो बेहत्तर होगा ।
*शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’
Copyright: Youth icon Yi National Media, 12.06.2016
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शशि जी,, बीजेपी सामूहिक निर्णय और विचार की पार्टी है। राजनीति में कभी परिस्थितियां या निर्णय अनुकूल नहीं दिखते , इसका मतलब केवल अध्यक्ष ही जिम्मेदार हैं ऐसा नहीं। प्रतीक्षा कीजिये कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में 2017 में उत्तराखण्ड की जनता बढ़-चढ़ कर भाग लेगी।