Dangerous : बादल फटा ! बादल फटा ! बादल फटा !
मैं उस बादल, बिजली और बारिश की बात कर रहां हूँ, जिनका सामना हमें इन दिनों करना ही पड़ रहा है। 8 मई’16 , रविवार का दिन था, यानि मौज-मस्ती और छुट्टी का दिन! सुबह का समय था , दूर क्षितिज में अलसाया सा सूरज अपनी किरणों के साथ झुलसाती ज्वाला बिखेरने की तैयारी कर ही रहा था , अचानक आकाश में बादल घिर आए। सूरज बादलों में छिप गया। चारों ओर घना अंधकार छा गया, ऐसा लगने लगा, मानों शाम हो गई हो। बच्चे घर के अहाते में ही खेल रहे थे, कि मैने आवाज लगाई, अंदर आ जाओ, अभी बारिश शुरू हो जाएगी। देखो, कैसे काले बादल घिर आए हैं।
इतने में बौछारें शुरू हो गई। छोटी-छोटी बूँदों ने बड़ी बूँदों का रूप ले लिया। थोड़ी देर में ही मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। साथ ही आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट भी होने लगी। ऐसी तेज आवाज मानों आकाश अभी फट पड़ेगा।
घड़ घड़ धड़ाम धम्म! धड़ाम धम्म!
आकाश में खुली ऑंखों से देखना मुश्किल हो गया। कुछ देर पहले जो खुला व नीले अम्बर का आकर्षण था, वही अब पानी का प्रपात बना हुआ था। बिजली का चमकना ऐसे लग रहा था मानों आकाश में हजारों वॉट के अनेक बल्ब जल गए हों। साथ ही बादलों की तेज गड़गड़ाहट! मानों आकाश फट कर अभी धरती पर गिर पडेग़ा!कुछ देर पहले जिस नदी के मधुर संगीत का मैं आनंद ले रहा था उसका रूप अब विकराल हो चला था और संगीत , शोर में तबदील हो गया। सामने के पहाड़ से चट्टानों के टूटने व गिरने की भयानक आवाज़ें आ रही थी , हालाँकि दिखाई कुछ नहीं दे रहा था क्योंकि कोहरे ने पूरी घाटी को अपने आगोश में लपेटा था । कुछ देर बाद धीरे-धीरे बरसात रुकी , थोड़ी ही देर में चारों ओर सन्नाटा छा गया। एक अजीब- सा भय मुझे बेचैन किये जा रहा था , तभी मेरे मोबाइल की घंटी घनघनायी , अचानक से मेरी तन्द्रा भंग हुई , मन डरा सहमा सा था। देखा तो विनय डिमरी का फ़ोन आया था ” हैलो : भाईसाहब सुनने में आ रहा है कि cmp बैंड की तरफ ऊपर पहाड़ से पानी आ गया है ” मैंने स्थित से
अनभिज्ञता जताते हुए फ़ोन रख दिया व जल्दी से घर की ही भेष-भूषा में निकल पड़ा । जैसे ही सड़क में पहुंचा तो एक गुरूजी ने बताया की सामने बहुत नुकसान हो गया है लोगों के घरों में पानी घुस गया । तुरंत अपनी मोटरबाइक का इंजन स्टार्ट किया और मैं भी निकल पड़ा उस ही ओर जहाँ नुकसान की सुचना थी, तभी डिमरी ददा का फ़ोन आया, उनकी बहन के घर में पहाड़ी मलबा व पानी घुस गया था तुरंत बाजार से कुछ नेपाली मूल के साथियों को ले मैं भी पहुँच गया मौके पर। दोस्तों सामने जो मंजर था वह बहुत ही भयावह था, बदहवास व घबराये से लोग इधर से उधर मदद की बाट जोह रहे थे, घरों में मलबा पटा पड़ा था कहीं रास्ता बहा, किसी की छत तो किसी की गौशाला बह गयी थी । नीचे मंडी परिषद् का परिसर भी लबालब था। उस वीभत्स मंजर व दुःख को शब्दों में बयां करना संभव नहीं है।घटाएं ढल गयी थी, सूरज भी मेघयानों द्वारा बरपाये कहर का हवाई सर्वेक्षण करने पहुँच चूका था। इसी बीच शाशन- प्रशाशन के पहुँचने से पहले शहर के प्रबुद्धजनों के सहयोगी हाथ भी मदद के लिए आगे आये । साँझ होने को आई बोझिल मन से मैं भी अपने घोंसले की ओर चल पड़ा रास्ते में होटल व्यवसायी व व्यापारी मिले जो की निराश ,उदास से थे, बद्री-केदार के कपाट खुलने ही वाले हैं ,अगर मीडिया ने 24×7 यह समाचार चला दिया तो धंधा भी चौपट होने की
आशंका से परेशान थे, उधर मीडिया कर्मियों की अपनी मजबूरी। मन दुखी था लेकिन खुद को भाग्यशाली मान रहा था क्योंकि मैं अपने कुनुबे के साथ नदी के उस पार था, परंतु विचिलित था की आज जो मंजर इस पार है ,क्या भरोसा यही मंजर कल उस पार पसर जाय!
साथियों क्या हमें मालूम नहीं कि जब से उत्तराखंड अस्तित्व में आया, विकास के नाम पर किस तरह जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी देकर पहाड़ों का लगातार दोहन किया गया। डांडी- कांठियों (पहाड़ व उसकी चोटियों) में बिना अर्थिंग किये ही गगन चुम्बी खम्बे गाढ़ दिए गए, जो की आकाशीय बिजली को आकर्षित कर आपदाओं को न्योता दे रहे हैं ।हमें भ्रम था कि पहाड़ बोलते नहीं, वे अपने दर्द का इजहार नहीं करेंगे, उन्हें गुस्सा नहीं आएगा, लेकिन इस तबाही से समझा जा सकता है कि हम कितने बड़े मुगालते में थे। विकास के
नाम पर हम विनाश को आमंत्रित कर रहे हैं। यही कारण है कि अब मेघस्फ़ोट! बारिश का पर्यायवाची हो चले हैं । उम्र चालीसा को हम भी पार कर चुके हैं लेकिन पिछले पांच- सात सालों से जितनी आपदायें आयीं है उतनी पहले न देखि थी न सुनी थी , लेकिन अब तो हर दिन कहीं न कहीं से मेघस्फोट की खबर आ जाती है।
क्या अवैज्ञानिक विकास व लालची मानव प्रवृति ही इस प्रलयंकारी आपदा का मुख्य कारण है ?
*आलोक नौटियाल (शिक्षक)
Copyright: Youth icon Yi National Media, 05 .07.2016
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Grate effort sir. You put the actual picture of uttaraknad..
Appreciate your grate effort.