Violation of ethics and discipline : फेसबुक (सोशल मीडिया) पर हो रहा है नैतिकता और अनुशासन का हनन ।

  • दूसरों की निजता और मर्यादा पर लांछन लगाना एक आम बात सी हो गयी है । 

  • फेसबुक  भड़ास निकालने का अड्डा मात्र बनकर रह गया ।

  • धर्म और समाजसेवा के नाम पर तथाकथित ठेकेदार एवं चिंतक भी कर रहे हैं भाषाई मर्यादा को तार-तार । 

सोशल  मीडिया पब्लिक प्लेटफॉर्म पर सभी लोग  अपने परिवार के साथ फ़ोटो डालते आ रहें हैं, फ़िर इनके फ़ोटो डालने पर समाज के एक वर्ग द्वारा भद्दे कमेंट्स आना किस प्रगतिशील और सभ्यता के विकसित समाज का हिस्सा हैं। इस तरीक़े के दुर्व्यवहार को निजता पर हमला माना जाना चाहिए, और सभ्य समाज की दृष्टि से उचित भी नहीं कहा जा सकता हैं। जब  तक धर्म के ठेकेदार इस तरह का अनुचित और समाज की मर्यादा को तार-तार कर देने वाली हरकतों को अंजाम देते रहेंगे, फिर देश के धर्मनिरपेक्षता पर ही सवालिया निशान उठते रहेंगे। एक बात गौर करने वाली यह भी हैं, क़ि सोशल मीडिया का उपयोग काफी बढ़ रहा हैं, लेकिन नैतिकता और अनुशासन का हनन भी सोशल मीडिया पर उतने ही तेज़ी से पाँव पसार रहा हैं, दूसरों की निजता और मर्यादा पर लांछन लगाना एक आम बात ही गयी हैं, जो एक तुच्छ और सामाजिक उपदेयता की कमी को बयां करता हैं।

atal bihari baajpai
लेख : महेश तिवारी

भारत के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता प्रात हैं, और 14 के  अनुसार  क्या खाना है, क्या  पहनना हैं, इसकी स्वतंत्रता लोगों को दी गई हैं, फिर मोहम्मद शमी ने सोशल मीडिया पर अपने परिवार के साथ फोटो शेयर की, फिर उसके खिलाफ भद्दे कमेंट्स को लोगों की तुच्छ और भद्दी मानसिक सोच करार दी जा सकती हैं। आज इकीसवीं सदी में जब मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल आम बात हो चली हैं। विकास और उन्निति के ढेर सारे राग अलापे जा रहें हैं, उस काल और परिस्थिति में भारत के परिप्रेक्ष्य में ऐसी घटनाएं निंदनीय और स्वस्थ समाज के अनुकूल नहीं कहीं जा सकती हैं। पब्लिक प्लेटफॉर्म पर सभी लोग  अपने परिवार के साथ फ़ोटो डालते आ रहें हैं, फ़िर इनके फ़ोटो डालने पर समाज के एक वर्ग द्वारा भद्दे कमेंट्स आना किस प्रगतिशील और सभ्यता के विकसित समाज का हिस्सा हैं। इस तरीक़े के दुर्व्यवहार को निजता पर हमला माना जाना चाहिए, और सभ्य समाज की दृष्टि से उचित भी नहीं कहा जा सकता हैं। जब  तक धर्म के ठेकेदार इस तरह का अनुचित और समाज की मर्यादा को तार-तार कर देने वाली हरकतों को अंजाम देते रहेंगे, फिर देश के धर्मनिरपेक्षता पर ही सवालिया निशान उठते रहेंगे। एक बात गौर करने वाली यह भी हैं, क़ि सोशल मीडिया का उपयोग काफी बढ़ रहा हैं, लेकिन नैतिकता और अनुशासन का हनन भी सोशल मीडिया पर उतने ही तेज़ी से पाँव पसार रहा हैं, दूसरों की निजता और मर्यादा पर लांछन लगाना एक आम बात ही गयी हैं, जो एक तुच्छ और सामाजिक उपदेयता की कमी को बयां करता हैं। विकासपथ पर अग्रसर और आधुनिकता की चोली में लिपटा हमारा देश अपनी आत्मगौरव और पुरातन सांस्कृतिक विरासत को भूलकर आधुनिकतम परिवेश में जकड़ता जा रहा हैं, जहाँ पर वह अपनी समाज के प्रति निर्धारित सीमाएं भूल चूका हैं, और अपनी सामाजिक सरोकारिता की जिम्मेदारी को ताक पर रखकर अपनी आधुनिकता को अपनाने के पीछे समाज के प्रति निर्धारित जिम्मेदारियों की अवहेलना कर रहा हैं। 

मोहम्मद शमी के  पारिवारिक जिंदगी से जुड़े फ़ोटो पर कमेंट्स और भद्दी बातों का जिक्र यहीं सबूत की बानगी हाज़िर करते हैं। इसके पहले भी सानिया मिर्जा के खिलाफ फ़तवे जारी किए जा चुके हैं। जिसे सानिया के परिवार वालों ने ध्यान न देते हुए आगे बढ़ गए थे, लेकिन जिस तरीके से सोशल मीडिया पर लोग अपनी सीमाएं लाँघ रहें हैं, उसे देखते हुए,  मोहम्मद शमी द्वारा जवाब देना उचित कहा जाना चाहिए, क्योंकि इन शरारती तत्वों को उनकी जगह याद कराना बेहद जरूरी हैं। सामाजिक परिवेश में जिस तरीके की अफवाहों और झूठी बातों का दौर चलता हैं, उस पर रोक लगाना बहुत आवश्यक हैं, समाज की निजता और स्वस्थ्य सामाजिक वातावरण को निर्मित करने के लिए। धर्म और उसके ठेकेदारों का दायरा सीमित करने का यह उचित समय हैं, क्योंकि समाज में जिस तरीके की अफवाहें फ़ैलाने वालों की संख्या बढ़ रहीं हैं, उसे देखते हुए इन सोशल मीडिया पर समाज हित के परे जाने वाले शरारती तत्वों के पर कतरना एक सभ्य और स्वस्थ समाज के लिए नितांत आवश्यक हो गया हैं।

मोहम्मद शमी द्वारा सोशल मीडिया में अपने ऊपर हुए, हमले का जवाब देना काबिलेतारीफ हैं। साइबर क्षेत्र में बढ़ती असामाजिक भावना और लोगों की निजता से खिलवाड़ समाज के दृष्टिकोण के लिहाज से किसी भी अर्थों में सही नहीं हो सकती हैं। सोशल मीडिया का दायरा सीमित करना जरूरी हो गया हैं, क्योंकि इसके नियंता अपनी नैतिकता का दायरा भूलने में देर नहीं लगाते हैं, जो सामाजिक और निजी जिंदगी पर हमला साबित होते हैं। एक तरफ महिलाओं को बराबरी का स्थान दिए जाने की बात क़ि जाती हैं, और दूसरी तरफ महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचार को लेकर उनके रहन- सहन और कपड़े आदि का हवाला दिया जाता रहा हैं, जो क़ि हमारे समाज और देश के कुछ लोगों की सीमित और तुच्छ नीति  और मानसिक असंतुलन कहा जा सकता हैं, जिससे सामाजिक वातावरण में आज भी भारतीय महिलाएं अपने आप को महफूज नहीं पाती। धार्मिक, पुरुष प्रधान समाज का नेतृत्व करने वाले लोगों को लगता है कि अपनी सोच को दूसरों, खासकर महिलाओं पर लादना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन यह एक अच्छे सामाजिक ताने- बाने के लिए ठीक नहीं हैं। अगर समाज में कोई पुरूष स्लीवलेस तस्वीर डालता तो सामाजिक परिदृश्य में  ऐसी बातें  सामने नहीं आती, फिर महिलाओं के खिलाफ लोगों की सोच क्यों नहीं बदल रही हैं। संविधान ने लोगों को केवल अधिकार ही नहीं दिए हैं, उसके साथ कुछ कर्तव्यों को भी जोड़ा हैं, उसको ध्यान देते हुए समाज में महिला और सभी की अस्मिता की इज्जत करना लोगों का संवेधानिक और नैतिक कर्तव्य होना चाहिए। कपड़े को लेकर किसी मज़हब पर सवाल उठाना गलत हैं, और ये सवाल किसी मर्द की वेशभूषा पर क्यों नहीं उठाये जाते हैं। यह भी सोचनीय विषय हैं। संविधान ने जब खाने, पहनने की आज़ादी दे रखी हैं, फिर समाज में महिलाओं के खिलाफ ऐसे व्यहार का क्या औचित्य हैं। पूरी दुनिया में महिलाओं को लेकर मॉरल पुलिसिंग आम है। अगर किसी लड़की के साथ यौन दुर्व्यवहार होता है तो ये कोई नहीं पूछता है कि आदमी क्या कर रहा था। 

सवाल यही उठाए जाते हैं कि लड़की ने क्या कपड़े पहने थे, मामला कितनी रात में हुआ, उसका आचार विचार कैसा था, यह एक पुरूषप्रधान सामाजिक परिवेश की गंदी और तुच्छ मानसिक परिस्थिति का घोतक हैं। जिस आधी आबादी के अधिकारों की बात होती हो, उसके साथ चले आ रहें दोहरे रवैये से समाज को मुक्त कराना होगा, और सरकार को सोशल मीडिया, जैसे इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक और वॉट्सएप्प पर भद्दे, और अमर्यादित शब्दों के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए कदम उठाना होगा, तथा इन सोशल साइट्स पर बेजा हरकतों को करने वालों के खिलाफ सज़ा का प्रावधान करना चाहिए, और शब्दों की गरिमा तय करनी होगी,कि ये शब्द इस्तेमाल नहीं किए जा सकते हैं। समाज को भी अपने आप में सरकार और न्यायपालिका के हस्ताक्षेप के बिना सुधार करना चाहिए, अपने सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा, महिलाओं के प्रति पुरुषों को अपनी धारणा बदलनी, समय मांग के साथ महिलाओं की निजता का सम्मान होगा, क्योंकि इसी तरीके के शब्दों और बयानों से स्त्री समाज को काफ़ी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता हैं। महिलाओं का सम्मान करना और समाज में बराबरी का हक मिलना उनका अधिकार हैं, जिससे  भारतीय समाज ज्यादा समय तक मुँह नहीं फेर सकता हैं। महिलाओं के प्रति नजरिए में  पुरुष समाज को बदलाव लाना होगा।

Mahesh Tiwari  ,  

Copyright: Youth icon Yi National Media, 30.12.2016

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