youth icon Yi national Awardee mushroom lady Ranjana Rawat Dehradun Uttrakhand
Muskarane ki wajah : मुस्कराने की वजह बनी इस लड़की ने दिल की सुनी और वापस लौट आई । पर क्यों …!
शहरी माहौल में पूरी तरह से ढल चुकी यह लड़की बेहद मॉडर्न खयालातों वाली है । बड़े-बड़े मॉल में शॉपिंग करना, फर्राटेदार अंग्रेजी में चटर-पटर कर बातें करना, दोस्तों के साथ अलग-अलग रेस्टोरेन्ट में कभी फास्ट फूड तो कभी कॉफी पीने जाना इसकी दिनचर्या बन चुकी थी । वीकेण्ड पर सहेलियों के साथ स्कूटी से सैर पर निकल जाना तो इस लड़की की एक आदत सी बन गई थी । लेकिन एक दिन उसने ऐसा कदम उठाया जिसने उसके माता-पिता सहित दोस्तों तक को हैरान परेशान कर दिया था । लेकिन अपने धुन की पक्की इस लड़की ने तब किसी की नहीं सुनी और फिर सब कुछ छोड़-छाड़ लौट आई । जिन हाथों को कभी सिर्फ मोबाईल, लेपटाप, आता था उन हाथों ने कुदाल , गैंती , फावड़े , मिट्टी , और केंचुवों से दोस्ती कर ली है । रंजना अब एक नए अवतार में चल पड़ी है फ़ार्मिंग करने ।
ना चिंतन से, ना आंदोलन से और ना ही रेलियां निकालने से,
पहाडों का पलायन अगर रुकेगा तो सिर्फ और सिर्फ गाँवों में काम करने से !!
“आओ स्वरोजगार अपनायें, उत्तराखंड को पलायन मुक्त बनायें”
– रंजना रावत ‘पहाड़ की बेटी’
मै बात कर रहा हूँ रुद्रप्रयाग जनपद में भीरी गाँव की रहने वाली रंजना रावत की । दरअसल अच्छे दोस्त एक अच्छी नौकरी और शानदार करियर का सपना हर युवा की आंखों मे होता है और ऐसा ही कुछ भीरी गांव की रंजना रावत ने भी सोचा था मगर कहीं न कहीं मन मे कुछ और भी चल रहा था । 24 साल की उम्र में जहां अधिसंख्य युवा अपने भविष्य को चमकाने की तैयारी कर रहे होते हैं ,वहां यह ‘पहाड़ की बेटी ‘ एक प्रतिष्ठित फार्मा कंपनी की शानदार व्हाइट कालर जॉब छोड़कर गांव की महिलाओं के बीच रहकर स्थानीय स्तर पर ही रोजगार सृजन का काम कर रही है । खुद को कनवेंस करना सबसे मुश्किल था, मगर फिर एक दिन दिल की सुनी और गांव वाली बस पकड़ ली। पांरपरिक खेती को व्यवसायिक खेती में बदलना उसने अपना मुख्य मकसद बना दिया था। रंजना अभी तक यह देखते आ रही थी कि पहाड़ों में जितना गेंहू होता है उतना ही बीज के लिए रख लिया जाता है। साल भर की जी तोड़ मेहनत के बाद लोागों ने अपने लिए कमाया क्या ? ये किस बात की खेती। बस इसी बात को लेकर उसने ठान ली थी कि अब उसे उसमें परिवर्तन लाना है । रंजना बताती है कि उसका फोकस था कि कैसे लोगों के रोजगार और आमदनी को बढाया जा सके । तब सबसे पहले पारंपरिक खेती को व्यवसायिक खेती से जोडऩा और व्यवसायिक दृष्टिकोण से खेती को करने का मन बनाया । फिर रंजना बताती है कि इसके लिए मुझे मशरूम सबसे सही लगा । लेकिन रंजना यह भी बताती है कि उसका उद्देश्य सिर्फ मशरूम को ही बढ़ावा देना नहीं है वह कहती है कि अगर सभी लोग एक साथ मशरूम ही उगाने लगेंगे तो फिर उसके लिए बाजार भी उतने ही बड़े स्तर पर चाहिए इसलिए उसने स्टार्टिंग में मशरूम से काम की शुरुआत की और डबल्यूएच भी चलता रहेगा लेकिन रंजना रावत का मुख्य उद्देश्य है पहाड़ में ओर्गेनिक फ़ार्मिंग को बढ़ावा देकर उसे रोजगार परक बनाना ,…. इसके साथ ही कई अन्य मुददों पर बात की मैंने रंजना रावत से , फिर क्या कुछ कहा रंजना ने आगे आप भी पढि़ए ।
पहाड़ की नारी के इरादे भी पहाड़ जैसे बुलंद :
Yi शशि पारस :रंजना :आज पूरे उत्तराखण्ड में पहाड़ के लोग आपको अब ‘पहाड़ की बेटी’ नाम से पुकारने लगे हैं कैसा लगता है लोगों का यह प्यार दुलार पाकर ?
रंजना : अगर जब कोई भी इंसान अपने समाज में अपने लोगों के बीच उनकी पीड़ा और उनकी समस्याओं से खुद को जोड़कर उसके समाधान के लिए स्वत: प्रयास करने लगे फिर लोगों को उसके द्वारा किए जा रहे प्रयासों में स्वयम के लिए सुरक्षा महसूस होने लगती है तो लोग मुस्कराने भी लगते हैं, और उसी मुस्कराहट के बीच से मिलता है तब आत्मीय प्यार और शायद मेरे साथ भी यही हुआ । मैं जब लोगों के बीच गई तो अकेली थी और आज मेरे साथ पूरे पहाड़ का कारवां जुड़ चला है । और सबसे बड़ी बात कि मुझे सब अपनी बेटी कहकर पुकारते हैं तो अच्छा लगता है । लेकिन लोगों के द्वारा दिया गया पहाड़ कि बेटी नाम का टाइटल मेरे लिए सिर्फ खुश होने की वजह मात्र नहीं है बल्कि इन दो शब्दों ने मुझे बहुत ज्यादा ज़िम्मेदारी दी जिसे मुझे पूरा करना है और हर माँ के सपनों को साकार करने में उनके साथ चलना है ।
Yi शशि पारस :चलिए आप खुद से आज ‘पहाड़ की बेटी’ का परिचय हमारे पाठकों को बताएं ?
रंजना : मैं रुद्रप्रयाग जनपद के भीरी गांव की रहने वाली हूं। पिता श्री डीएस रावत, जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग के कार्यालय में कार्यरत हैं । मां श्रीमती अनीता रावत ग्रहणी हैं। मेरे मम्मी पापा की सोच थी कि बेटी को सबसे पहले अच्छी शिक्षा देनी है । मैंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से 2013 में बीफ फार्मा की डिग्री लेने के बाद देहरादून की प्रतिष्ठित शैरोन बायो मेडिसिन कंपनी में जॉब शुरू कर ली थी । मै देहारादून में नौकरी कर रही थी उसी बीच मुझे अपने कुछ दोस्तों के साथ
पहाड़ से बढ़ते पलायन को लेकर एक दो उन सेमिनारों में जाने का मौका मिला जहां लोग सिर्फ पहाड़ के पलायन पर भाषण देते थे और खुद को देहारादून छोड़ना नहीं चाहते थे । मुझे पलायन पर चिंता करने वालों का यह दोगला व्यवहार कुछ अटपटा लगा मैंने कुछ दिनों तक काफी सोच विचार किया फिर एक दिन इस नतीजे पर पहुंची कि अगर मैंने पलायन जैसे विषय पर कुछ सवाल उठाने हैं तो उसके लिए सबसे पहले मुझे स्वयं से समाज मे आगे आकर उदाहरण पेश करना होगा । और फिर एक दिन शहर की अच्छी ख़ासी नौकरी छोड़ लौट आई अपने गाँव की महिलावों के बीच और युवाओं के बीच । कालेज टाईम से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी पर तब न कुछ पता था, और न ही कोई रास्ता समझ आता था । आरोह फाउंडेशन कालेज के दिनों मे ही शुरू किया था लेकिन स्वयंसेवी संस्था के काम करने के तौर तरीके मालूम नही थे । डेढ़ साल नौकरी करते हुए ही जहां से संभव हुआ संस्थाओं के काम करने का तरीका सीखा । और चली आई अपने गांव, आगे आप देख ही रहे हैं ।
Yi शशि पारस : रंजना सब कुछ इतनी आसानी से कैसे हो गया ?
रंजना : नहीं आसान नहीं था सर ! खुद को कनवेंस करना सबसे मुश्किल था, चुनौती इस बात की थी कि गांवो में रोजगार सृजन किस तरह किया जाए। इस बात को ध्यान में रखकर काफी माथापच्ची की । परंपरागत खेती में व्यावसायिक लाभ न के बराबर है इसलिए मशरूम का विकल्प चुना गया । खेती की शुरूआत अपने से शुरू की और लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया । पहले खुद किया तब बोला अब आप लोग भी कर सकते हैं । ग्वालियर से प्रशिक्षक निहाल चौहान व कुलदीप तोमर को बुलाकर मशरूम उगाने की ट्रेनिंग ली और अपने साथ 35 अन्य साथियों को भी ट्रेनिंग दी । खुद मशरूम उगाई और दूसरों को भी सिखाया । फरवरी महीने में मुंबई मे आयोजित गढ़ कौथिग में हिस्सा लेना एक टर्निंग प्वाईंट रहा। अब तक लोग नाक भौं सिकोड़ रहे थे, मेरे नौकरी छोडऩे के फैसले पर ताने मार रहे थे और डिस्करेज कर रहे थे पर अब शायद कुछ प्रेरणा हमें मिलने लगी थी ।
Yi शशि पारस :मशरूम को ही विकल्प क्यों चुना ?
रंजना : पांरपरिक खेती को व्यवसायिक खेती में बदलना मेरा मुख्य मकसद था और है । अभी तक देखते आ रही थी कि पहाड़ों में जितना गेंहू होता है उतना ही बीज के लिए रख लिया जाता है । साल भर की जी तोड़ मेहनत के बाद लोगों ने अपने लिए कमाया क्या ? ये किस बात की खेती। मुझे उसमें परिवर्तन लाना है। मेरा फोकस था कैसे लोगों के रोजगार और आमदनी को बढाया जाये । इसके लिए सबसे पहले पारंपरिक खेती को व्यवसायिक खेती से जोडऩा और व्यवसायिक दृष्टिकोण से खेती को करना है । इसके लिए मुझे मशरूम सबसे सही लगा । आप महज 2 से 3 हजार रूपये से आप मशरूम का काम शुरू कर सकते हैं। यही रूपये आपके एक महीने में 7 हजार से 10 हजार रूपये दे देंगे । और इस काम को कोई भी एक छोटे से कमरे या घास-फूस की झोपड़ी से शुरू कर सकता है, साथ ही 28 डिग्री तक या उससे कम टेम्परेचर चाहिए और इसके लिए हमारे उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र सबसे उपयुक्त है जहां अधिकांश क्षेत्रों का नेचुरल टेम्परेचर इसी तरह का होता है ।
Yi शशि पारस :अभी तक कितनी सफलता मिली है आपको अपने अभियान में ?
रंजना :हमारा नारा है ‘चलो गांव की ओर’ और यह तभी संभव है जब महिलाओं की स्थिति सुधरे, मुहिम धीरे-धीरे रंग ला रही है। हमारी संस्था अब तक 800 से अधिक लोगों को मशरूम उगाने का प्रशिक्षण दे चुकी है जिनमें से अधिकतर लोग व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर चुके हैं। शुरुआत अच्छी है लेकिन चुनौतियां अभी बाकी हैं। मशरूम खरीदने के लिए अभी मार्केट डेवलप करना है।
Yi शशि पारस :आस-पड़ोस के गांवों में भी कुछ जागरूकता आई है मशरूम उत्पादन को लेकर ?
रंजना : बिल्कुल आस-पड़ोस नहीं पूरे रूद्रप्रयाग जनपद के दूर दराज के गांवों में भी जागरूकता देखने को मिल रही है। दूर-दराज के गांवों के लोग हमें मशरूम उगाने की ट्रेनिंग देने के लिए बुलाते हैं, क्योंकि उन्हें बेहद कम फीस में यह प्रशिक्षण मिल जाता है। और आज मुझे खुशी होती है कि विभिन्न NGO संचालकों द्वारा आमंत्रित किया जा रहा है और मै अलग-अलग जनपदों में जाकर भी ट्रेनिंग दे रही हूँ । और कई समूह दूर-दूर से हमारे गाँव भीरी में आकर बड़ी संख्या में ट्रेनिंग प्राप्त करने पहुँच रहे हैं । और मुझे अपने उस उद्देश्य पर युद्ध स्तर पर काम करना है जो सोच कर आई हूँ । मुझे अपने पहाड़ की पारंपरिक खेती को नई तकनीकी के साथ रोजगार से जोड़ना है ।
Yi शशि पारस :आगे किन योजनाओं पर आप काम कर रही हैं ?
रंजना : मशरूम, फ्लोरिकल्चर, फलों की खेती, हर्बल प्लांट, एलोवीरा, लेमन ग्रास पर मेरा ज्यादा फोकस है। इनमें विपणन की व्यवस्था भी है और रोजगार की ज्यादा संभावनाएं भी हैं। इसके साथ ही गांव की सब महिलाओं को साक्षर करना है, अब सड़कें भी गांवों तक पंहुच गई है तो महिलाओं को साईकल चलाना भी सिखाना है। गोबर के उपलों को भी कमर्शियल किया जा सकता है, बस सही मार्गदर्शन मिलता रहे। पहाड़ की नारी के इरादे भी पहाड़ जैसे बुलंद हैं, बस जरूरत है तो थोड़ी सी हौसला अफजाई की। आखिर हर बड़े सफर की शुरुआत एक छोटे कदम से ही होती है।
Yi शशि पारस :आपकी मुहिमचलो गांव की ओरको काफी सराहना मिल रही है, उम्मीद है रिवर्स पलायन होगा ?
रंजना : पलायन पलायन बहुत सुन रही थी जिस भी जगह जा रही थी पलायन की बातें, मै जब देहरादून में जॉब कर रही थी तो तमाम पलायन के सेमिनार होते थे।आए दिन होटलों में पलायन को लेकर चिंता और चिंतन हो रहा है । फेसबुक सोशल मीडिया में पलायन की बड़ी-बड़ी बातें करना तो अब कुछ लोगों के लिए लाईक और कमेंट्स बटोरने का सबसे सस्ता माध्यम हो गया है । मै तो यह कहूँगी कि पलायन पर बड़ी बड़ी बातें करना व फेसबुक पर पहाड़ की चिंता करना तो एक फैशन सा बन गया है । मुझे कभी कभी हंसी भी आती है पलायन जैसे गंभीर मुद्दे पर बातें वो लोग कर रहें हैं जो सक्षम थे और अपने एशो-आराम के लिए पहाड़ छोड़कर बे-वजह देहारादून, हल्द्वानी, हरिद्वार और कोटद्वार आदि शहरों में बस गए हैं । ताज्जुब होता है कि उन लोगों को कैसे पहाड़ के पलायन की चिंता सता रही है । इसलिए मैने निश्चय किया कि इनके सामने उदाहरण प्रस्तुत करूंगी । और मै चाहती हूँ कि पलायन जैसे मुद्दे का समाधान निकालने के बजाय अगर कुछ लोग देहरादून में बसकर चिंता करते हैं तो उन्हें भी चिन्हित किया जाना चाहिए और सबसे पहले उन लोगों की भूमिका पर सवाल खड़े कर उन्ही को सबसे पहले पहाड़ पर बसाने की लड़ाई भी हम युवाओं को लड़नी होगी ।
Yi शशि पारस :जब आपने शहर छोड़कर गांव जाने का निर्णय लिया आपके घर वाले नाराज नहीं हुए ?
रंजना : अरे सर पूछो मत बहुत बबाल हुआ …. ! साल 2015 में जब नौकरी छोड़कर गांव जाने का निर्णय लिया तो घर वाले बहुत परेशान हो गए थे। दीदी, जीजा जी के अलावा मेरे दोस्तों के पास मेरे मम्मी- पापा गए और मुझे समझाने के लिए कहा कि, इसे समझाओ कि सुनहरा भविष्य छोड़कर ऐसा न करे। तब सबसे ज्यादा परेशान मेरे पापा हुए थे उन्हे इस बात की सबसे ज्यादा चिंता संता रही थी कि जवान बेटी अब कैसे अपना भविष्य बर्बाद करने पर तुली है तब उन्होने मेरी इस जिद्द को मेरी सनक बताया । मुझे भी पापा को परेशान देख अच्छा नहीं लग रहा था फिर तब मैंने मम्मी से कहा कि वह पापा को मेरी ओर से प्रोमिश करे कि अगर रंजना अगले चार महीनों में अपने मिशन में सफल नहीं हुई तो वह वापस शहर लौट जाएगी । फिर पापा मान गए अब मैने खुद ही पापा से कहा मुझे सिर्फ 4 महीने का समय दे दो नहीं हुआ तो मैं वापस अपनी जॉब पर चली जाउंगी । सर … मेरे पापा की चिंता भी जायज़ थी कि इतने पैसे खर्च करने के बाद उनकी उम्मीदों पर बेटी ने एक झटके में पानी फेर दिया । पापा और मम्मी बहुत परेशान थे मेरे भविष्य के प्रति, 4 साल के बीफार्मा में 2 लाख खर्च हुआ। लगभग ढाई साल जॉब की और उसके बाद ठीकठाक सेलरी भी मिलने लगी थी , और तब अचानक से लिया गया मेरा यह फैसला किसी को रास नहीं आ रहा था।
लेकिन घीरे-धीरे अब सब ठीक हो गया ।
Yi शशि पारस :तो क्या आपने अपना टास्क 4 महीनों में ही पूरा कर लिया था ? मम्मी पापा अब खुश हैं ?
रंजना : बिल्कुल सर । पूरा होम वर्क करके गई थी 4 महीनों का तो मैंने समय लिया था परंतु मेरी मेहनत दो से तीन महीनों में ही रंग लाने लगी थी । जिससे ग्रामीण लोग खुश हुए उनके चेहरों पर रौनक आई सब मुझे बेटी बेटी कर प्यार देने लगे । अपनी बेटी के लिए लोगों के मन में इतना प्यार और आशीर्वाद देखकर मम्मी पापा खुश भी हुए और अब सभी दोस्त , रिश्तेदार मेरे फैसले को सराहने लगे सब खुश हैं । मैने एक सीढ़ी पार कर ली है, मैं सिर्फ पलायन को लेकर गांव लौटी ही नहीं बल्कि कि मैं अपने मम्मी पापा सबको अपने साथ गांव के पैतृक घर में वापस बसाने में सफल भी हो गई, और अब बहुत लोग गाँव लौटना चाहते हैं । मां पिताजी भी कभी गांव में नहीं रहे थे। मेरी मम्मी मेरे अभियान को आगे बढाने में मेरा पूरा सहयोग कर रही है। और पापा भी छुट्टी के दिन गांव आ रहें है और वो भी बहुत खुश हैं। पिताजी को लगता है कि उनकी बेटी सिर्फ उनकी नहीं सैकड़ो परिवारों की उम्मीद बन गई है।
Yi शशि पारस : बहुत-बहुत धन्यवाद रंजना यूथ आइकॉन की इस विशेष प्रेरणादायी कड़ी में हमारे साथ जुडने के लिए । और आपकी इनहि सब खूबियों व जज्बे को देखते हुए यूथ आइकॉन Yi नेशनल अवार्ड कमेटी ने भी आपको इस वर्ष यूथ आइकॉन का सर्वोच्च सम्मान देने का निर्णय लिया उसके लिए भी आपको व आपकी पूरी टीम को बधाई ।
तो यह थीं मेरे साथ ‘पहाड़ की बेटी ‘ रंजना जिसने आज पूरे पर्वतीय समाज में अपनी खास पहचान स्थापित कर ली है । वाकही रंजना का यह बेहद साहसिक कदम था कि वह पलायन जैसे मुद्दे पर कोरी भाषण बाजी करने के बजाय अपने करिअर को ही दांव पर लगाकर गाँव वापस लौट गई और बंजर पड़ें खेतों में हरियाली लाकर पहाडवासियों में उम्मीद की एक नई किरण जगा गई । रंजना यहीं रुकने या थमने वाली नहीं है । वह आज पहाड़ में हर किसी के चेहरे पर खुशी व मुस्कान देने की वजह बन गई है ।वह कहती है कि मै एक नहीं अनेक गांवों की रौनक लौटते देखना चाहती हूँ जिसके लिए उसे युवाओं का भी साथ जरूरी है । और इसी कड़ी में अब उसके रिवर्स पलायन की मूहीम को आगे बढ़ाने मे उसके साथ जुड़ चुके हैं मुम्बई से वापस लौटे टिहरी धारकोट निवासी जितेंद्र नेगी , दिल्ली से वापस लौटे टिहरी प्रतापनगर वासी विपिन पँवार, व मलेथा निवासी विजयवीर सिंह के अलावा देहरादून से वापस लौटी चमोली निवासी नंदा नौटियाल । यूथ आइकॉन परिवार भी रंजना व उसकी पूरी टीम के साथ हमेशा मौजूद रहेगा । अंत में पहाड़वीरों की इस पूरी टीम के हौसले व जज़्बे को हम सबका सलाम ।
अगली कड़ी में मेरे साथ होगी एक और नई सख्सियत तब तक के लिए नमस्कार ।
Copyright: Youth icon Yi National Media, 07.01.2017
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यूथ आइकॉन : हम न किसी से आगे हैं,और न ही किसी से पीछे ।
4 thoughts on “Muskarane ki wajah : मुस्कराने की वजह बनी इस लड़की ने दिल की सुनी और वापस लौट आई । पर क्यों …!”
बहुत खूब, रंजना जी का कार्य युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है ।
It is a matter of pride that when people think of city comforts. Ranjana has chosen hard life. Undoubtedly, to prove that when the goings get tough, toughs get going.
Ranjana, is a member of DU3 (Dharatalpar Uttrakhand Uthaan Abhiyan ). Like Ranjana, there are so many Uttrakhandies those who are workingin different parts of UK, in different fields altogether and have gotten together under the banner of DU3, to continue doing their bit. DU3 provides them a platform to converse with each other and share the technical know how.
DU3, believes and always insists to do ones own bit for Uttrakhand rather than holding Govt or other groups responsible for underdevelopment, failure, corruption, migration etc. The DU3 is an apolitical, non profiteering, and supporter of all such multiferous independent units. Ranjana Rawat is one of the constituents of DU3. There are many more jewels like her in DU3. DU3 members overseas do assure of marketing support.
DU3 wishes all the best of luck to Ms. Ranjana and many other silent working units. The units associated with DU3 does not have infirmity to name, fame and greed.
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I salute to Ranjana Rawat