Anupam Triwedi – Journalist of the week : डिजिटल मीडिया बना प्रिंट और टीवी के लिए बड़ा खतरा ! अनुपम त्रिवेदी
17 साल पहले देश की राजधानी दिल्ली से पत्रकारिता का सफर शुरू करने वाले अनुपम आज उत्तराखण्ड पत्रकारिता जगत के चर्चित चेहरों में से एक हैं, साथ ही
आईडियल हैं उन युवा पत्रकारों के जो प्रिंट, इलैक्ट्रॉनिक या डिजिटल मीडिया में काम कर रहे हैं। उत्तराखण्ड की सरोवर नगरी नैनीताल में पले-बढे अनुपम के अंदर लेखनी का हुनर बचपन से ही था। पत्रकारिता की सभी विधाओं में निपुण अनुपम वर्तमान में हिन्दुस्तान टाईम्स उत्तराखण्ड में ब्यूरो चीफ के पद पर तैनात हैं। जितना खूबसूरत अनुपम अंग्रेजी में लिखते हैं उतनी ही पैनी धार उनकी हिन्दी की लेखनी में भी है। पत्रकारिता के क्षेत्र में वरिष्ठ पत्रकार अनुपम त्रिवेदी के विशेष योगदान के लिए उन्हे 19 मई 2013 देहारादून में यूथ आइकॉन Yi नेशनल मीडिया अवार्ड से नवोदित पत्रकारों के लिए आइडियल बन चुके अनुपम त्रिवेदी को हमने खास बातचीत के लिए आमंत्रित किया यूथ आइकॉन कार्यालय में , इस दरमियान मैंने उनसे की खास बातचीत आगे जो कि आपके साथ भी हम साझा कर रहे हैं –
आगे अनुपम के साथ बातचीत :
Yi शशि ‘पारस’ : पत्रकारिता में आने के लिए किसने प्रोत्साहित किया आपको ?
अनुपम त्रिवेदी : मुझे लिखने का शौक बचपन से था, साथ ही मेरी परिवारिक पृष्ठभूमि से भी मुझे कॉफी मदद मिली। हिन्दी-अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में लिखकर आर्टिकल विभिन्न अखबारों को लिखकर भेजता रहता था जो समय-समय पर छपते रहते थे। पत्रकारिता में आना एक संयोग कह सकते हैं, दरसअल छात्र राजनीति के दौरान मेरा बनाया हुआ प्रेस नोट अमर उजाला में उमेश जोशी जी को बहुत पंसद आया, उन्होंने मुझे पत्रकारिता करने के लिए प्रोत्साहित किया। पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद में दिल्ली चला गया। वहां स्वतंत्र रूप से हिन्दी-अंग्रेजी के सभी अखबारों के लिए लिखता था। इस दौरान मैने पार्लियामेन्ट्री रिपोर्टर एक अखबार ज्वाइन किया, यह अखबार केवल संसद सत्र के दौरान ही चलता था तथा लीक से हटकर रिपोर्ट तैयार करता था। यहां मैने प्रिंट पत्रकारिता की बारीकियां सीखी। इस दौरान एक दिन पीटीआई से ब्रेक मिला ट्रेनी जर्नलिस्ट का, उसमें मेरी ज्वाइनिंग नहीं हो पाई, लेकिन उसी दौरान पीटीआई से स्ट्रिंगरशिप का भी ब्रेक मिल गया अल्मोड़ा व बागेश्वर के लिए। मैने खुशी-खुशी ज्वाइन कर लिया। साथ ही में तेलगू के बड़े अखबार इनाडू के लिए भी अंग्रेजी में लिखता था। इसी बीच इनाडू ग्रुप ने ईटीवी चैनल लांच किया। उसमें मैने भी इन्टरव्यू दिया, जिसमें मेरा चयन हो गया। यहां से मेरी इलेक्ट्रानिक मीडिया में शुरूआत हो गई। 2007 तक में ईटीवी के साथ जुड़ा रहा। यहां मैं चैनल का इनपुट इंचार्ज भी रहा। कुछ समय में इंडिया टीवी मैं भी रहा। इसके साथ जब आईनेक्स्ट उत्तराखण्ड में लांच हुआ तो में उसकी लांचिग टीम का हिस्सा रहा। वहां भी सीखने को कुछ नया मिला, नया आईडिया था नया प्रोडक्ट था, ऑफ बीट जर्नलिज्म को बढावा देने का काम करता था। इसके बाद जब हिन्दुस्तान टाईम्स का उत्तराखण्ड एडीसन लांच हुआ तो में हिन्दुस्तान से जुड़ गया। आज लगभग 17 साल हो गए हैं मेरी पत्रकारिता को, लगभग सभी तरह की जर्नलिज्म सीखने को मिली। अपने काम से आज संतुष्ट हूं आज।
Yi शशि ‘पारस’ : इन 16 सालों में कितना बदलाव देखने को मिला पत्रकारिता के क्षेत्र में आपको ?
अनुपम त्रिवेदी : 16 सालों में राष्ट्र और राज्य दोनों की पत्रकारिता में कॉफी अंतर देखने को मिला है। यह बदलाव खासतौर से इलेक्ट्रानिक मीडिया के आने के बाद काफी देखने को मिला पत्रकारिता में, खबरों को ब्रेक करने की होड़ के साथ टीवी मीडिया में गलाकाट प्रतियोगिता का दौर शुरू हुआ उससे कॉफी नुकसान हुआ। जिसके बाद प्रिंट में खबरों की प्रजेन्टेशन और पैकेजिंग कॉफी डिफरेन्ट करनी पड़ती थी, ताकि वह अलग लगे। वहीं अब इन दोनों के बाद डिजिटल मीडिया ने दस्तक दे दी है। डिजिटल मीडिया में जिस तेजी से लोग जुड़ रहें हैं, उसके बाद डिजिटल मीडिया प्रिंट और टीवी के लिए बड़ा खतरा बन रहा है।
Yi शशि ‘पारस’ : डिजिटल मीडिया के आने से जनता को किस तरह का फायदा देखते हैं ?
अनुपम त्रिवेदी : अक्सर देखने और सुनने में आता था कि खबरों को लेकर कई मीडिया हाउस मैनेज हो जाते हैं। आरोप लगते हैं कि चंद पैसों के लालच में जनता की आवाज को दबा दिया जाता था। ऐसे में जनता और पत्रकार खुद को ठगा महसूस करते थे, लेकिन मुझे लगता है कि डिजिटल मीडिया के आने से अब आवाज नहीं दबेगी। कहां-कहां तक कोई खबर मैनेज हो पायेगी। सोशल मीडिया की पकड़ सीधे आम-आदमी तक है। टैक्नालाजी के आने से फायदा हुआ है।
Yi शशि ‘पारस’ : अक्सर देखने में आ रहा है कि सोशल मीडिया भडा़स निकालने का साधन भी बनता जा रहा है ?
अनुपम त्रिवेदी : देखिए अच्छे के साथ बुरा भी होता है। कुछ लोग बिल्कुल करते हैं इस तरह की हरकत जो नहीं होनी चाहिए, लोगों को अगर अपने मन की बात लिखने के लिए स्पेस मिला है तो उन्हें उसका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। लोग पहले संपादक के नाम चिट्ठी लिखते थे, महज एक कॉलम होता था, बमुश्किल अखबारों में दो-तीन चिट्ठी ही छपती थी, बाकी लोगों को मायूस होना पड़ता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया में हर कोई अपने मन की बात रख पाता है।
Yi शशि ‘पारस’ : आपको नहीं लगता कि सोशल मीडिया के लिए भी कोई गाईडलाइन्स होनी चाहिए ?
अनुपम त्रिवेदी : बिल्कुल सोशल मीडिया के लिए भी सीमाएं तय होनी चाहिए, ताकि अराजक तत्व इसका दुरूपयोग न करें। मेरा मानना है कि इसके लिए कोई ऑटोनोमस बॉडी होनी चाहिए, जो इस तरह के मामलों की देखरेख करे। आप देखते हैं कि अगर बड़े नेताओं या लोगों को लेकर कोई सोशल मीडिया का दुरूपयोग करता है तो ऐसें मामले में तुरंत केस दर्ज हो जाते हैं, लेकिन एक आम आदमी के मामले में ऐसा नहीं होता है। इसलिए कुछ गाईडलान्इस होना तो जरूरी है।
Yi शशि ‘पारस’ : समय के साथ आपको पत्रकारिता की पढ़ाई के पैर्टन में बदलाव की जरूरत महसूस नहीं होती ?
अनुपम त्रिवेदी : पत्रकारिता की पढाई के स्तर में भी सुधार की जरूरत है। अभी तक पुराने ढरे पर ही पढाई हो रही है। यह बहुत बड़ी समस्या है। मेरे देखने में आया है कि विभिन्न इस्ट्यिूटों से पत्रकारिता की पढ़ाई करके आ रहे युवाओं को पत्रकारिता की सही जानकारी नहीं है। मुझे लगता है कि महज 5 प्रतिशत युवा कमिटेड होंगे पत्रकारिता के लिए, फार्मेट और मीडियम अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उचित ज्ञान बहुत जरूरी है। आजकल अधकचरा जर्नलिज्म बहुत आ रहा है, साथ ही अधकचरे चैनलों की बाढ़ सी आ गई है। जिससे पत्रकारिता के स्तर में गिरावट आ रही है।
Yi शशि ‘पारस’ : मीडिया में स्ट्रिंगरों के शोषण को लेकर क्या कुछ कहना है आपका ?
अनुपम त्रिवेदी : स्ट्रिंगरसिप बहुत पहले से चली आ रही है मीडिया में, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। जिनको बहुत शौक है वहीं पत्रकारिता में आते थे, लेकिन आजकल देखा देखी ज्यादा हो रही है। स्ट्रिंगरों की हालत खराब है। 800 सौ रूपये महीना से लेकर 1500 रूपये महीना तक में लोग काम कर रहें हैं। अखबारों और चैनलों को ऐसे लोग सूट करते हैं जिनको कम पैंसे देने पड़े। एक अजब सा दौर चल पड़ा है शोषण का जो बिल्कुल भी ठीक नही है।
Yi शशि ‘पारस’ : उत्तराखण्ड में पत्रकारिता के गिरते स्तर का क्या कारण है ?
अनुपम त्रिवेदी : उत्तराखण्ड की पत्रकारिता में पिछले कुछ समय में गिरावट आई है। दरसअल छोटे राज्यों के साथ ज्यादा दिक्कत है, कारण नई पीढी के पत्रकारों को एक्सपोजर नहीं मिल पाता है। पत्रकारिता में लिखने-पढने का दौर खत्म सा हो गया है। बहुत से ऐसे लोग आ गए हैं जिनको पत्रकारिता की एबीसीडी का पता नहीं है। ऐसे लोग किसी संस्थान से जुड़ते ही हाथ में माईक आईडी और कलम के आते ही पत्रकार सोचने लगा है कि मैं ही सबसे बड़ा पत्रकार हूं मुझे तो सब आता है। सीनियर पत्रकारों से भी मेरा निवेदन वह नए पत्रकारों को जब भी समय मिले गाइड करें, साथ ही अपने अनुभव को उनसे साझा करें। पत्रकारिता में कोई छोटा बड़ा नहीं होता है। पत्रकार बड़ा इसलिए नहीं होता कि वह बड़े संस्थान में काम कर रहा है बल्कि पत्रकारिता में अपने योगदान के आधार पर पत्रकार बड़ा होता है।
Yi शशि ‘पारस’ : पत्रकारिता में बढते राजनीतिक दखल को लेकर आपका क्या कहना है ?
अनुपम त्रिवेदी : पत्रकारिता में बढते राजनीतिक दखल की वजह बड़ी साफ है रेवन्यू। राजनेता हो या सरकारें विभिन्न मीडिया सस्थानों को यहीं से पैंसा आता है, अब यह तय मीडिया संस्थानों को करना है कि आप राजनेताओं की किस हद तक सुनेंगे। बहुत सारे संस्थान ऐसे भी हैं, जहां राजनेताओं की सिफारिश को नियुक्ति में प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन हद से ज्यादा राजनीतिक दखल पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं है।
Yi शशि ‘पारस’ : उत्तराखण्ड राज्य की दशा और दिशा में किस तरह बेहत्तर सुधार हो सकता है ?
अनुपम त्रिवेदी : मुझे यह लगता है कि पत्रकार ही इस राज्य की दशा और दिशा सुधार सकते हैं। राजनीतिक मुद्दों के साथ अगर जनहित से जुड़े मुद्दों को बेवाक तरीके से उठाया जायेगा तो धीरे-धीरे कॉफी बदलाव देखने को मिलेगा।
Copyright: Youth icon Yi National Media, 13.01.2017
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यूथ आइकॉन : हम न किसी से आगे हैं, और न ही किसी से पीछे ।
पत्रकारिता से आपने बहुत सही यूथ आईकन चुना है ,शशि जी । अनुपम से पत्रकारिता काफी आशा कर सकती है । वे वास्तव में हमारे प्रदेश के उन गंंभीर पत्रकारों में से हैं जिनके लिखे को गंभीरता से लिया जाता है ।वे आगे भी सार्थक लिखते रहें,यह आशा की जा सकती है ।