A Leopard : एक तेंदुये की मौत और जिंदगी का पहला वाकथ्रू …!
( सुबह सबेरे में ग्राउंड रिपोर्ट )
भोपाल, से रायसेन के रास्ते में बिलखिरिया के बाद आता है खरबई गांव। इस गांव की बसाहट के पहले एक ओर उंचा पहाड है तो दूसरी ओर हरे भरे खेत। मैं जब भी भोपाल से रायसेन की ओर जाता हूं तो इस गांव के पहले ही मेरी नजरें तलाशने लगतीं हैं उस मंझोले कद के तेंदू के पेड को जिससे मेरी बेहद पुरानी यादें जुडी हुयीं हैं। इस बार भी मैं जा तो रहा था रायसेन में बाढ की कवरेज के लिये मगर खरबई गांव पास आते ही तेजी से निकलते पेडों के बीच मेरी निगाहें ढूंढने लगीं वहीं पेड जिसमें फंसे हुये तेंदुयें की तस्वीर मेरी आंखों के सामने याद आते ही झूल जाती है।
ये घटना तकरीबन ग्यारह साल पुरानी है। तीन फरवरी 2005। रोज की तरह दिन खत्म होने को था तभी किसी ने खबर की कि भोपाल के आगे खरबई गांव में एक तेंदुआ पेड पर लटका हुआ है जिसे निकालने की कोशिश की जा रही है। उस जगह पर बेतहाशा भीड भाड मौजूद है जिससे तेंदुआ घबडाया हुआ है और वन विहार की टीम को उसे बचाने में बहुत दिक्कत आ रही है। बस फिर क्या था निकल पडे रायसेन के रास्ते में। दूर से देखा तो खरबई गांव के पहले ही लोगों का हुजूम जमा था। वहां पर एक पेड पर मुंह के बल तेंदुआ लटका हुआ था। जिसके पास जाने की कोशिश वन विहार के लोग कर रहे हैं। लंबे समय से पेड से लटके होने के कारण तेंदुआ की ताकत जबाव दे रही थी। उसकी गुर्राहट लगातार कम होती जा रही थी। वन विभाग के लोगों ने अपने रेस्क्यू वाहन का आगे का हिस्सा उसके पास कर दिया था जिस पर तेदुअें ने अपने सामने के पैर टिकाकर रख लिये थे जिससे उसे थोडी राहत मिल रही थी। आस पास के लोगों से बात करने पर पता चला कि ये[quote by=”Author Name”]आस पास के लोगों से बात करने पर पता चला कि ये तेंदुआ पास के पहाड से उतर कर किसी जानवर की तलाष में खेत में गया था मगर लौटते में ये खेतों में अवैध तरीके से लगे फंदे की चपेट में आ गया था। आमतौर पर लोहे के तार के ये फंदे किसान अपने खेतों में सुअर पकडने के लिये लगा देते हैं जिससे उनकी फसल को बर्बाद करने सुअर आये तो उसमें फंस जाये मगर यहां तो सुअर नहीं तेदुआ आ फंसा था। तेंदुये ने पूरी ताकत लगाकर तार के फंदे को उखाड लिया था मगर फंदे के साथ लगी लकडी का डंडा भी उखडकर आ गया था। फिर जब तार में फंसा तेंदुआ उस लकडी के डंडे को लेकर भागा तो खेत के बाद सडक पार की और पहाड पर चढने के पहले जब उसने अपने पसंदीदा पेड पर छलांग लगायी तो पेड की डाल से ये कमबख्त डंडा फंस गया। जिससे तेंदुआ के पेट में फंसा तार के दम पर वो लटक गया।[/quote]तेंदुआ पास के पहाड से उतर कर किसी जानवर की तलाष में खेत में गया था मगर लौटते में ये खेतों में अवैध तरीके से लगे फंदे की चपेट में आ गया था। आमतौर पर लोहे के तार के ये फंदे किसान अपने खेतों में सुअर पकडने के लिये लगा देते हैं जिससे उनकी फसल को बर्बाद करने सुअर आये तो उसमें फंस जाये मगर यहां तो सुअर नहीं तेदुआ आ फंसा था। तेंदुये ने पूरी ताकत लगाकर तार के फंदे को उखाड लिया था मगर फंदे के साथ लगी लकडी का डंडा भी उखडकर आ गया था। फिर जब तार में फंसा तेंदुआ उस लकडी के डंडे को लेकर भागा तो खेत के बाद सडक पार की और पहाड पर चढने के पहले जब उसने अपने पसंदीदा पेड पर छलांग लगायी तो पेड की डाल से ये कमबख्त डंडा फंस गया। जिससे तेंदुआ के पेट में फंसा तार के दम पर वो लटक गया। सुबह जब इस अजीबो गरीब हाल में लटके तेंदुये को गांव के लोगों ने देखा तो पुलिस को खबर की और अब दोपहर तक वन विहार की टीम उसे निकालने आयी है मगर कई घंटे तक लटके रहने के बाद ये वयस्क तेंदुआ अब तकरीबन अधमरा हो गया था। तेदुआ आमतौर पर बडा षर्मीला जानवर होता है बहुत कम ही वो दिखता है मगर यहां तो बेचारा तेंदुआ कई घंटे से लटका है और सैंकडों लोगों की भीड को बर्दाष्त कर रहा था। कई घंटों तक तो तेंदुये ने किसी को अपने पास ही नहीं आने दिया वो पेड पर लटका लटका ही गुर्रा रहा था और अपने पैने दांत दिखा कर डरा रहा था। तेंदुआ जब थक गया तो फिर वन विभाग के लोगांे ने उसे जाल में फंसाया और गाडी में डाल कर वन विहार ले गये। हमने वो विजुअल्स षूट किये और कहानी लिखकर भेजी। कहानी के विजुअल्स इतने ताकतवर थे कि तेदुआ तुरंत हेडलाइन में जगह पा गया। रात सात बजे जब वो कहानी फिर से एडिट होने लगी तो हमसे तेंदुयें की हालत जानी गयी हमने बडे उत्साह से वन विहार के अफसरों को फोन लगाया तो दुखद खबर मिली कि तेंदुये ने दम तोड दिया। लंबे समय तक पेड से लटके रहने के कारण उसकी कमर टूट गयी थी और देर तक भीड का सामना करने के कारण तेदुआ षाक में था ऐसे में वो वन विहार आने के बाद ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रहा सका और इलाज के दौरान ही वो बेजुवान जानवर चल बसा। खेतों में सुअर और हिरण पकडने के लिये लगाया गया फंदा तेंदुये के लिये जानलेवा साबित हुआ। उधर जैसे ही ये खबर हमने डेस्क पर बतायी तो उधर से भी चीख पुकार षुरू हो गयी अरे क्यों कैसे मर गया। थोडी देर बाद हमें बताया गया कि तेंदुये पर नये तरीके से कहानी बन रही है और अब संपादक जी आपसे बात करेंगे। उधर से धीर गंभीर आवाज आयी ब्रजेष ये जंगल कहां है जहां तेंदुआ पाया गया। मैंने बताया कि सर वो भोपाल से तीस पैंतीस किलोमीटर दूर है। आप अभी वहंा जा सकते हैं मैंने कहा सर अब तो रात हो गयी है अभी तो जाना मुष्किल होगा सुबह चला जाउंगा। उधर से जबाव आया ये कहानी सुबह के लिये तैयार हो रही है आप अभी जाइये उस पेड को तलाषिये और पूरी कहानी बताइये कि कहां से तेदुआ आया कहां फंदा लगा था कैसे पेड में फंसा और कैसे उसकी जान पर बन आयी। रात में जंगल जाने के नाम पर मेरे हाथ पैर फूल रहे थे मैंने फिर निवेदन किया कि सर ये कहानी सुबह चलनी है यदि आप इजाजत दें तो मैं तडके सुबह उठकर मुंह अंधेरे में जंगल चला जाउंगा और सुबह की रोषनी में ये खबर शूट कर दे दूंगा। थोडी बहुत किंतु परंतु के साथ मुझे तडके सुबह जाने की इजाजत मिल गयी। बस फिर क्या था अपने कैमरामेन अरविंद साहू को अलर्ट किया गाडी के डाईवर को भी तैयार रहने को कहा और सुबह मुंह अंधेरे में हम खरबई के जंगलों में उस पेड को तलाष रहे थे जहां तेदुआ लटका था। थोडी देर की मषक्कत के बाद वो पेड मिला और जैसा कहा गया था उस पेड के इर्द गिर्द खडे होकर हमने तेंदुये की कहानी कही। टीवी रिपोर्टिंग में इस तरीके से कहानी कहने को वाकथू्र कहते है। अब तो ऐसा वाकथ्रू रोज करना पडता है मगर वो षायद मेरी जिंदगी का पहला वाकथ्रू होगा। जल्दी से दफतर लौटकर खबर भेजी और एक घंटे बाद वो खबर एक तेंदुये की मौत शीर्षक के साथ चैनल पर चल रही थी। आज भी मेरी आंखें खरबई के आसपास तेदुये और उस पेड को तलाशती हैं।
*ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज भोपाल .
Copyright: Youth icon Yi National Media, 29.08.2016
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