तो क्या केजरीवाल होंगे अब देवभूमि में राजनीतिक विकल्प !
भाजपा और कांग्रेस को क्या पछाड़ पाएंगे पहाड़ पर केजरीवाल ?
क्या कहते हैं आप अपनी राय दीजिये जरूर सबसे नीचे कॉमेंट में ।
अगर अरविंद केजरीवाल की आप AAP पार्टी शुरुआती दौर में दिल्ली की तरह ही उत्तराखंड व हिमांचल में भी दस्तक दे जाती तो वह यहां हमेशा विकल्प के रूप मज़बूती खड़ी रहती । लेकिन अब काफी देर कर दी हुजूर आते.. आते ।
फिर भी केजरीवाल और उनके सिपहसालारों ने स्पष्ट किया है कि इस बार वह देवभूमि के चुनावी संग्राम का हिस्सा बनेंगे , लड़ेंगे और वह भी 70 की 70 विधानसभा सीटों पर । तो इसमें मेरा अपना व्यक्तिगत आंकलन यह कहता है कि “आप” भाजपा से ज्यादा कांग्रेस का नुकसान करेगी । ज्यादातर सीटों पर भिड़ंत त्रिकोणीय होगी जिसमें भाजपा बाजी मार सकती है । यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि भाजपा का अपना कैडर वोटर नाराजगी के बाबजूद भी बहुत कम खिसकता है, और नरेंद्र मोदी के आने बाद से इस पार्टी में कांग्रेस से पृथक होकर बड़ी संख्या में देशभर के लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है, इसे भी नक्कारा नहीं जा सकता है ।
कांग्रेस की स्थिति बेशक मजबूत होती बशर्ते कि वहां आन्तरिक कलह और अहम का टकराव न होता । कांग्रेस में आज हरीश रावत भले ही एक हारे हुए नेता हैं, लेकिन कांग्रेस में आज भी उनसे बड़ा कद किसी और का नहीं है । परन्तु समस्या यह है कि आज उनके बोए बीज, उनकी रोपी पौधें ही उन्हें छांव देने में कन्नी काटने लगे हैं । ऐसे में कांग्रेस के भीतर का यह कलह केजरीवाल की आप पार्टी को कुछ सीटों में सम्मानजनक स्थिति में जरूर ला सकता है । लेकिन छप्पर फाड़ जीत की बात करना थोड़ी सी जल्दबाजी होगी । आगर आम आदमी पार्टी के लिए सीटों को जीतने की बात करें तो फिलहाल 4 से 5 के बीच में बेशक AAP पार्टी जीत हासिल कर सकती है ।
दूसरी बात यह कि आप पार्टी के जनक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि हमने उत्तराखंड में सर्वे किया जिसमें 62 फीसदी लोग उनके साथ हैं । यह बात इसलिए गले नहीं उतर पा रही है क्योंकि इस पार्टी का अभी तक उत्तराखंड में संगठन के पाए ही ठीक से खड़े नहीं हैं ।
उत्तराखंड में पार्टी की स्थोति एकदम नए घर के लिंटर पड़ने से पहले बांधे जाने वाले लकड़ी का ढोले व लोहे के जाले जैसी है ।
चुनाव जीतने के लिए किसी भी दल को संगठनात्मक रूपी मजबूत छत की सबसे पहली जरूरत होती है जो यहां अभी है ही नहीं । ऐसे में ANI के रिपोर्टर ने जब अरविंद केजरीवाल से यह सवाल किया कि, बिना मजबूत संगठन के आप उत्तराखंड में कैसे चुनाव लड़ेंगे तो दिल्ली के CM बोले.. चुनाव लड़ने के लिए संगठन से ज्यादा आम लोगों का भरोषा चाहिए । यहां गौर करें और समझें पत्रकार के सवाल के जवाब में पार्टी मुखिया का जो उत्तर मिला वह स्पष्ट करता है कि यह केजरीवाल ने भी स्वीकार किया कि उत्तराखंड में पार्टी का अभी तक कोई विधिवत अथवा प्रभावी संगठनात्मक ढांचा खड़ा नहीं है ।
अब डेढ़ साल का जो वक़्त है उसमें आम आदमी पार्टी को सबसे पहले संगठन का स्वरूप आम लोगों को दिखाना होगा ।
फिर जनता देखेगी कि आप संगठन में शामिल चेहरे कितने प्रभावी हैं । बाकी संगठन के पदों व राज्य की एक-एक विधानसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतारे जाने वाले संभावित प्रत्याशियों के चेहरे भी तो पार्टी के भाग्य का फैसला करेगी ।
आम आदमी पार्टी के दिल्ली संगठन की तुलना कल्पना उत्तराखंड से तब तक नही की जा सकती, जब तक केजरीवाल जैसा चेहरा पहाड़ की जनता के सामने न हों ।
अगर इस पार्टी संगठन में भाजपा, कांग्रेस के प्रताड़ित व इन दोनों पार्टियों में मलाई न मिलने से कुंठित लोग अथवा अपनी व्यक्तिगत भड़ास को पूरी करने की लालसा इच्छाधारी लोगों के चेहरे शामिल होंगे तो भी सारी की सारी उम्मीदों पर पानी फिर सकता है ।
अरविंद केजरीवाल ने अपनी बातचीत में स्पष्ट संकेत यह भी दिया कि दिल्ली में असंख्य उत्तराखंड के लोग हैं जो उनसे बराबर मिलने आते हैं । तो क्या आम आदमी पार्टी में उत्तराखंड के लिए वो चेहरे महत्वपूर्ण होंगे जो सालों – साल पहले ही पहाड़ से पलायन कर गए थे । चुनाव हमेशा चेहरे, मोहरे की बिसात पर ही लड़े जाते हैं । अभी डेढ़ साल का वक़्त है धीरे-धीरे बहुत सी चीजें स्पष्ट होती जाएगी ।
इसलिए यह कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी कि पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरेगी ।
क्या पता कल मजबूरी में “आप” को ही देवभूमि में उक्रांद जैसे छोटे-छोटे किसी न किसी दल से एक्का करना पड़ जाए ।
या फिर कांग्रेस ही संभल जाए ।
बाकी तो भविष्य के गर्त में है । राजनीति कब क्या करबट ले, ले यह तो राजनीतिक धुरंधरों को भी मालूम नहीं होता है ।
◆ शशि भूषण मैठाणी “पारस”