Atal Bihari Bajpai : अटल सख्शियत : भारतीय राजनीति और साहित्य के सजग प्रहरी अटल बिहारी बाजपेयी ।
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता ही जाता हूँ……. जैसीे कविताओं से सभी के ह्रदय को जीतने वाले एक महान भारतरत्न रूपी आत्मा के सजग प्रहरी अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय परिपेक्ष में हुए, जिन्होंने राजनीति के साथ साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी चलाकर भारतीय साहित्य को समृदि बनाया, और पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुटकर देश को आगे ले जाने में अपना बहुमूल्य योगदान देना शुरू किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित
दीनदयाल उपाध्याय से राजनीति का ककहरा सिखनेवाला यह योगीपुरुष आज के समय में अपने आपमें भारतीय राजनीति के समक्ष राजनीति का योगगुरु बनाकर खड़ा प्रतीत होता हैं, जो भावी भाविष्य के युवाओं को सही दिशा और दशा प्रदानकर स्वच्छ राजनितिक वातावरण निर्माण का सन्देश दे रहा हैं। अटल जी ने पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों को भी संपादित कर पत्रकारिता के क्षेत्र को भी राह दिखाने का काम किया, क्योंकि आज के दौर की हमारी पत्रकारिता अपने विस्तृत उद्देश्यों से भटकती नजर आ रहीं हैं, जो जनता को सच्चाई से रूबरू न कराकर सत्ता के तलवे में रहना पसन्द करना चाह रहीं हैं उसमें भी सुधार की आवश्यकता हैं।
अटल सरकार ने 11और 13 मई 1998 में पोखरण नामक स्थान पर भूमिगत परमाणु परीक्षण करके भारत को रक्षा के क्षेत्र में सक्षम बनाया, जिससे भयभीत होकर यही पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊचाईयों को छुआ, जो अटल जी को एक कुशल शासक साबित करती हैं। उन्होंने देश के विकास को ही सर्वोच्च स्थान दिया। पड़ोसी देश से संबंध सुधारने के लिए इन्होंने 19 फ़रवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की। जो कि विश्व में लगभग पहली बार लोगों को देखने को मिली।
बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाए
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा ऐसी अयोजस्वीपूर्ण कविता लिखने वाले वर्तमान भारतीय राजनीति के समक्ष आभामण्डित होता हुआ एक ऐसी सख्शियत जो अपने राजनीति जीवन की सरलता और निश्छलता की बदौलत भारत ही नहीं विश्व पटल की राजनीति पर उभरकर सामने आया। उससे वर्तमान भारतीय राजनीतिकों को सिखने की जरूरत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व को सिखने की जरूरत हैं। ये गुण जो उनकी राजनीतिक पारी में थे, और भावी भाविष्य में भी काम आने वाला हैं।
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं।
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं, उनकी लेखनी की यह चार पंक्तियाँ भारत की राजनीति के परिवेश में सटीक मेल खाती हैं, जिस तरीके का लांछन और आरोप-प्रत्यारोप की सियासी बिसात आज के राजनीतिक परिवेश में दीखती हैं, उससे राष्ट्र नायक अटल जी का ह्रदय मचल उठता हैं। उनकी सियासी जिन्दगी सादगीपूर्ण, स्वच्छ और साफ-सुथरी रही। उनके जैसा व्यक्तित्व धनी पुरष भारतीय राजनीति में कभी कभी जन्म लेते हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता का पता इसी बात से चलता हैं, या यूँ कहे उनकी राजनीतिक कार्यकुशलता इतनी सक्षम थी, कि उन्होंने ने 24 दलों को साथ लेकर भी अपने पांच वर्ष का कार्यकाल को पूरा किया। अटल जी एक अद्वभुत प्रतिभा के धनी थे, उनके राजनीति जीवन में कभी कोई दाग़ के छीटें तक नहीं आये। उन्होंने भारतीय राजनीतिक वातावरण में मिसाल पेश की, जब उनके समकालीन नेताओं के द्वारा स्वहित और परिवारवाद की राजनीति हाबी हो रही थी, फिर भी वे अपने सफल राजनितिक जीवन के प्रति समर्पित रहें। उन्होंने संसद के समक्ष ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, क़ि लोकतंत्र की व्यवस्था में संसद की गरिमा को कैसे बनाए रखा जाएं। अटल जी ने प्रधान मन्त्री के पद पर रहते हुए, और प्रतिपक्ष नेता होते हुए बेबाकी से देश हितों की बात की, जो कि उनके एक सफल विचारक और राष्ट्रप्रेमी होनें का सबूत पेश करती हैं। आज के संसद के परिवेश में जब नो वर्क नो पे की बात चल रहीं हैं, तब के अटल जी से संसद में उपस्थित रहने का गुण सिखने की आवश्यकता हैं, जो संसद को ही अपनी कार्यस्थली मानते थे, जब वे संसद के सदस्य थे। उन्होंने एक बार कहा क़ि भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है, क़ि एक ऐसे भारत का उदय होना चाहिए, जो क़ि भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। उनका यह वाक्य साबित करता हैं, क़ि उनके अंदर राष्ट्रवादी छवि का व्यक्ति कूट कूटकर भरा हैं। वे वर्तमान राजनीति के सापेक्ष एक ऐसी ज्वाला के सामान दीप्तमान हैं, जो की किसी भी तरह के लांछन से मुक्त हैं, और एक साफ सुथरी राजनीति करने का प्रेरणास्रोत हैं। अटल जी अपनी भाषणकला की उद्बोधनशैली, मधुर मुस्कान, वाणी के ओज और चेहरे की तेजपूर्ण लालिमा, स्वतंत्र लेखन व विचारधारा के प्रति गहरी निष्ठा और फैसले लेने के लिए ठोस इरादा रखने की वजह से संपूर्ण विश्व पर अपनी एक अलग पैठ बनाई, जो उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन को एक एक अलग तरीके के साथ भारतीय राजनीति में प्रस्तुत करता हैं। बाजपेयी जी का राजनीतिक जीवन आज की परिवारवाद और क्षेत्रवाद की बढ़ती राजनीति के दौर में आदर्श प्रस्तुत करती हैं, की पूरा देश एक हैं, और उसकी राजनीति में आने का हक सबका हैं। बाजपेयी जी को ही भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है, क्योंकि इनके सार्थक प्रयासों के कारण ही वह बीजेपी के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं. कांग्रेस से इतर किसी दूसरी पार्टी के देश के सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर बीजेपी का उदारवादी चेहरा कहा जाता है. हालांकि उनके आलोचक उन्हें आरएसएस का ऐसा मुखौटा बताते रहे हैं, जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदूवादी समूहों के साथ संबंधों को छुपाए रखती हैं। भारत में भारी जन भावना थी कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक कि वो आतंकवाद का प्रयोग अपनी विदेशी नीति के एक साधन के रूप में करना नहीं छोड़ देता। उस वक्त अटल जी ने अपनी राजनीतिक और कूटनीतिक दिमाग का प्रयोग करते हुए कहा की हम मित्र बदल सकते हैं पर पडोसी नहीं। अटल जी ने अपने कार्यकाल के दौरान देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से पोखरण में परमाणु परीक्षण करवाया, जिसके बाद उन्होंने विश्व के सामने कहा की हमें विशुद्ध रूप से किसी विरोधी के परमाणु हमले को हतोत्साहित करने के लिए हैं, ऐसा विचार हमारे युग पुरूष नेता के थे। अटल जी को उनकी प्रतिभा के बल पर पद्म विभूषण, डी लिट की उपाधि, संसद की जब आज के समय में गारिमा ताक पर पहुँच गई हैं, तब उनके समय उनको संसद का सम्मान करने के लिए श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार का पुरस्कार प्रदान किया गया था। अटल जी की राजनीतिक विरासत को देखते हुए, उन्हें 2015 में तत्कालीन सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया, और उनके विश्वव्यापी छवि की वजह से 2015 में उन्हें ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड’ भी मिला।
वर्तमान भारतीय राजनीति जिस विषमता से पीड़ित नज़र आ रहा हैं, उसे अटल जी की इस कविता से प्रेरित होकर देशहित, जनता की भलाई, देश को विकसित देशों के बराबर ले जाने के लिए सभी दलों को मिलकर आगे आना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा। इसके साथ युवा पीढ़ी को भी राजनीति में आकर अपनी सार्थक उपस्थित दर्ज कराना होगा। अटल जी सच्चे अर्थों में भारतीय राजनीति के साधक हैं, जिससे वर्तमान राजनीति को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता हैं।
अढ्भुत,व्यक्तित्व विलिक्षिन प्रतिभा,अपने विरोधी पार्टियों मै भी सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले श्री अटल जी को सादर नमन !!