Azad Bharat ki ek Tasveer : यह कैसी आजादी है साहब जहां ‘छत’ तो छोड़िए ‘छाता’ पर भी मेरा अधिकार नहीं है ।
हिंदुस्तान का हर नागरिक स्वतंत्रता दिवस की 71 वीं वर्ष गांठ मना रहा है । प्रधानमंत्री ने एतिहासिक लाल किले की प्राचीर से देश वासियों को गाली और गोली दागने के बजाय गले लगाने की नसीहत दी है । गौरखपुर में करीब 5 दर्जन से भी ज्यादा बच्चों की दर्दनाक मौत को देश के सवा सौ करोड़ लोगों का दर्द बताया । साथ ही प्रधानमंत्री 2022 तक देश वासियों को ‘न्यू इण्डिया’ का सपना दिखा रहे हैं, तो ऐसे में अगर में आज आजाद भारत के एक प्रतिष्ठित व शिक्षित शहर देहरादून की इस आंखों देखी घटना का जिक्र न किया जाय तो यह बेहद नाइंसाफी होगी ।
आज आपको मेरे द्वारा लिखे जा रहे शब्दों से ज्यादा इस लेख के साथ जोड़ी गई कुछ तस्वीरों को देखने की सख्त जरूरत है । ये तस्वीरें ही हैं जो अपने आप में आजाद भारत के 70 वर्षों की बुलन्द कहानी खूब बयां कर रही हैं ।
चलिये अब देश की 71वीं आजादी के जश्न से इतर एक नजर हम-आप सब मिलकर इन तस्वीरों पर भी गढ़ा लेते हैं और मनन करें कि क्या वाकही हम आजाद भारत में हैं । जहां आज भी सबल व्यक्ति दुर्बल व्यक्ति को दबाने व कुचलने में कोई कोर कसर नहीं छोडता है । यह तस्वीर हैं 13 अगस्त की रात ठीक 9 बजकर 2 मिनट की । और स्थान है उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून स्थित आराघर चौक की । गुमसुम आसमान दिनभर से बरसा नहीं था और नहीं किसी को तुरन्त बरसने की उम्मीद थी । मै भी बलबीर रोड़ स्थित अपने अस्थाई आवास से पैदल ही आराघर की ओर टहलने की मंशा से बिना छाता लिए चल पड़ा । अब जैसे ही आरघर चौक पर पहुंचा तो आसमान से जोरदार जलधारा फूट पड़ी जिसकी वजह से अफरा-तफरी मच गई जिसको जहां जगह मिल रही थी वो वहीं बारिश से बचने का सहारा ढूंढ रहा था । मैं भी रावत पान भंडार और सोनू की मसाला चक्की में जगह तलाशने लगा तभी ई0सी0 रोड़ की तरफ से एक रिक्शा चालक आता है वह भी पानी से लबालब सड़क के किनारे मसाला चक्की के पास रिक्शा लगा देता है । रिक्शे के पीछे पीले रंग के त्रिपाल से कुछ ढका हुआ था मुझे लगा कुछ सामान होगा । कुछ देर बाद देखा तो उसके अंदर से हलचल हो रही थी, रिक्शा वाला छाता लेकर त्रिपाल के ऊपर जमा पानी को बार बार बाहर उड़ेल रहा था इसी बीच पास में ही खड़े एक पुलिस कर्मी ने कहा कि अबे रिक्शा साईड कर …. जी साहब करता हूँ ….!
वह रिक्शा किनारे लगाता है तो पुलिस वाला उसका छाता लेकर ड्यूटी बजाने निकल पड़ा । छाता भी एकदम नया और फौजी रंग का (चितकबरा) सा था तो मुझे लगा ये उसी पुलिस वाले का होगा । बारिश और तेज शुरू हो गई अब पीले रंग के त्रिपाल में कई लीटर पानी जमा हो गया था । रिक्शा वाला इस कदर भीग गया था कि उसके सारे कपड़े तरबतर हो गए जो उसने उतार दिये थे । तभी रिक्शे के पिछले हिस्से से पीले रंग का त्रिपाल एक किनारे से ऊपर हुआ तो एक महिला ने हल्की सी गर्दन निकाली चिल्लाई, तभी देखा तो दो छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी पानी से इस कदर भीग चुके थे कि वह रिक्शे से अलग होकर एक दुकान में लगे शटर की ओट में जा खड़े हो गए थे ।
अभी तक मैंने भी बहुत ध्यान नहीं दिया था, लेकिन जब रिक्शे में सवार एक बेहद गरीब का पूरा परिवार देखा जो चौराहे पर मौसम की मार से बचने की जद्दोजहद में लगा था । और इस सबके बीच एक निर्दयी पुलिसकर्मी का व्यवहार भी समझ में आने लगा । मैंने भी तुरंत मोबाईल से कुछ फोटो क्लिक किए ।
अब आप फोटो में खुद देखिये बारिश में ये व्यक्ति किस कदर भीग चुका है कि इसने अब अपने शरीर से कपड़ों को हटाने में ही भलाई समझी । फिर भी वह अपने फर्ज से पीछे नहीं हट रहा है । गौर से देखिए तस्वीरों में इसी रिक्शे के पीछे त्रिपाल के नीचे ढकी बैठी है उसकी बीमार पत्नी जो हल्का से त्रिपाल उठाकर कर अब बाहर झांक रही है, और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर यह कहती है कि ये दोनों बच्चे बारिश में भीग गए हैं इन्हें भी या तो त्रिपाल के अंदर उसके साथ बैठा दो या फिर छाते के नीचे रखो ! थोड़ा इधर-उधर देखते हुए महिला कहती है अरे तुम भी तो पूरे भीग गए हो छाता कहाँ गया ? तभी उसका पति बोला छाता साहब जी ले गए हैं वो ड्यूटी दे रहे हैं ! बीमार महिला बड़बड़ाती हुई गुस्से में (शायद वह मन ही मन निर्दयी पुलिसकर्मी को बददुआ दे रही थी)बच्चों को अपने साथ आने को कहती है क्योंकि वह बार-बार इस बात की चिंता कर रही थी कि उसके ये दोनों बच्चे भीगने के बाद अब बीमार हो जाएंगे इन्हे बुखार भी आ जाएगा । लेकिन रिक्शे वाले की इतनी हिम्मत कहां थी कि वह वर्दी वाले साहब से अपना छाता भी मांग सके ।
लेकिन जैसे ही मैने कुछ फोटो अपने मोबाईल से क्लिक किए तो चौक पर ड्यूटी दे रहे सिपाही की नजर भी लग गई वह तुरंत आता है और छाता रिक्शे वाले को पकड़ा देता है । उसके बाद पता नहीं उसने उस गरीब परिवार के कान में क्या फुस-फुसाया कि रिक्शा चालक उसी तेज बारिश के बीच अपने बीबी बच्चों को लेकर धर्मपुर की तरफ को चल दिया और पुलिस वाला भी गायब ।
बताता चलूँ कि इसी बीच हरीद्वार की ओर से एस0 एस0 पी0 ने देहरादून कार से आना था तो पुलिस कर्मी भी उन्हीं की अगुवानी के लिए आरघर चौक पर तब भारी बारिश के बीच ट्रेफिक को नियंत्रित कर रहा था । जैसे ही कप्तान साहिबा की कार आरघर से पार हुई तो जनाब भी खिसक लिए जिसके बाद ट्रेफिक काफी अस्तव्यस्त भी हो गया था ।
कुछ पाठकों को यह घटना बेहद छोटी लग सकती है लेकिन संवेदनशील लोगों के लिए यह बहुत बड़ी घटना है ।
आँखों देखी इस घटना ने मुझे बार-बार सोचने पर मजबूर किया कि, आखिर… यह कैसी आजादी है ? एक गरीब आदमी जो अपने परिवार को अपने ही छाते से बचाने की कोशिस कर रहा था उसके हाथ से एक वर्दी वाला आकर छाता छीन ले जाता है ! आखिर क्यों …?
किस हक से खाकी वर्दी वाले ने एक गरीब के हाथों से उसका हक छीन लिया ?
क्या कसूर था उस बेचारे का ?
ऐसी घटनाएं बताती हैं कि कहीं न कहीं आज भी गुलाम बनाने की मानसिकता इस देश में कायम हैं । फिर आजादी किस बात की ? तो सोचिए जब आजाद भारत में खाकी इतनी खौफजदा है तो गुलामी के वक़्त क्या हाल रहा होगा ?
आजादी का जश्न मनाने से पहले मानसिकता बदलने की है हमें जरूरत ।
जय हिन्द ! वंदे मातरम !
- शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ 9756838527, 7060214681
मैथानी जी, इसकी तह में जाना चाहिए। शर्मनाक।
सच लिखा है आपने ये है अपने कर्तव्यों को छोड़ अधिकारों की बात का असर अगर हर व्यक्ति पहले कर्तव्य फिर अधिकार सौचने लगे तो व्यवस्था सुचारू हो सकती है परंतु अभी रास्ता बहुत कठिन है और बहुत दूर चलना बाकी है
These policemen only care for safety of Liquor Shops. On 13th Aug, I was in Pauri. I just left the hotel for a evening walk to the city. I surprise to note that Authorised Wine Shop was closed that time and there was huge rush at adjoining shop. People were purchasing liquor from that shop at black market price. Policeman was standing across the road and just managing the things.
Nobody cares about Pauri. Politician, Police even public is just taking the things as granted. All wants to earn only money, whether by selling liquor in black or guarding unauthorised liquor shop.
अगर ऐसा है तो बहुत ही घटिया काम किया, नाम बडे और दर्शन बहुत छोटे,
अगर ऐसा है तो शर्मनाक
आप जेसे जिम्मेदार पत्रकार की नजर ही थी जो आपने इअ घटना को कैद कर लिया वरना आज भी भारत गुलाम है सरकारी मुलाजिमो का जो खुद को जनता का सेवक नही राजा समझते है उम्मीद है की इस कुकर्मी पुलिस वाले को सजा जरूर मिलेगी।
वाह यके हुई जनसरोकारों से जुड़ी हुई पत्रकारिता । बहुत केखूब