Back to Pavilion : घर वापसी के मूड में हरक सिंह रावत …!
राजनीति में घाट-घाट का पानी पी चुके हरक सिंह रावत के राजनीतिक सफ़र को लगभग तीन दशक
पूरे हो चुके हैं । तकरीबन 26 साल पहले हरक सिंह रावत छात्र राजनीति से आगे बढ़कर सीधे प्रदेश स्तर की राजनीति (तब अविभाजित उत्तर प्रदेश) में सक्रीय हो गए थे । वर्ष 1989 में हरक सिंह रावत को पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मिला था । उस वक़्त भले ही उन्हें लखनऊ विधानसभा तक पहुँचने में सफलता हासिल नहीं हुई परन्तु एक राष्ट्रिय दल में अपनी तेज तर्रार युवा तुर्क की छवि से वह देखते ही देखते बीजेपी के प्रभावी नेताओं में शुमार हो गए थे । पूर्व के लगभग दो दशकों के भीतर हरक सिंह रावत कभी भाजपा, बसपा, उत्तराखंड जनक्रांति पार्टी, कांग्रेस में राजनीति करते देखे गए । और अब फिर से वह भाजपा के पाले में वापस आ गए है ।
डॉ0 हरक सिंह रावत के बारे में कहा जाता है कि वह पार्टी लाईन वाले नेता के बजाय व्यक्तिगत कद्दावर नेता की पहचान व रसूख के बूते जाने व पहचाने जाते हैं । और इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि लगातार एक के बाद एक राजनीतिक दलों को छोड़कर तुरंत दूसरे दल में शामिल होना और फिर वहां पर भी स्वयं को प्रथम पंक्ति में रखना व अधिकतर चुनाव में अच्छी-खासी जीत हासिल कर लेना तो यह उनका व्यक्तिगत प्रभाव ही माना जाता है ।
अब एक बार फिर से डेढ़ दशक बाद डॉ0 हरक सिंह रावत भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं , और वह अपने स्तर से अपने लिए सबसे सुरक्षित सीट की जुगत में अभी से लग भी गए हैं । पूर्व में छपी कुछ अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर जब मैंने स्वयं पूर्व में कांग्रेस व वर्तमान में भाजपा नेता हरक सिंह रावत से बात की तो उन्होंने लैंसडाउन, यमकेश्वर, आदि क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की संभावनाओं को दरकिनार कर दिया है । और कहा कि वह धर्मपुर, कोटद्वार, और श्रीनगर से चुनाव जरूर लड़ना चाहते हैं ।
जब मैंने उनसे कहा कि आपका मतलब है कि श्रीनगर सीट से भी आप चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं… ! इसका अर्थ यह हुआ कि आप घर वापसी करना कहते हैं ? तो इसके जवाब में डॉ0 रावत ने कहा कि घर जाने की सोचनी क्या, वहां तो कभी भी जा सकते हैं । बाकी पार्टी का जो आदेश होगा उसे माना जाएगा ।
दूसरी ओर हरक सिंह रावत से अब तक सबसे ज्यादा दुखी रहे मुख्यमंत्री हरीश रावत भी हरक सिंह रावत की एक एक गतिविधि पर नजर गढ़ाए हुए हैं । माना जा रहा है कि जिस भी क्षेत्र से हरक सिंह रावत की दावेदारी पक्की हो जाएगी तो उसके बाद ही हरीश रावत अपना दांव चलेंगे ।
एक ओर हरक सिंह रावत को अपनी साख बचाने के लिए हर हाल में 2017 का चुनाव जीतना जरूरी है तो वहीँ दूसरी ओर यह भी चर्चा है कि मुख्यमन्त्री हरीश रावत का पहला लक्ष्य हर हाल में हरक सिंह रावत को 2017 में विधानसभा तक आने से रोकना भी है ।
कुल मिलाकर 2017 के चुनाव को प्रदेश की जनता दो दिग्गज रावत नेताओं के लिए वर्चस्व का चुनाव भी मानकर देख रही हैं । ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि हरक सिंह रावत अपने घर वापसी कर श्रीनगर से ही चुनाव लड़ने की संभावनाओं को तलाश रहे हैं और इसके लिए उन्होंने अपने समर्थकों के मन की टोह लेनी भी शुरू कर दी है ।
हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर एक नजर :
*वर्ष 1989 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर पौड़ी से विधानसभा चुनाव लड़ा – मिली हार ।
* वर्ष 1991 दूसरी बार बीजेपी से टिकट मिला और पौड़ी से जीत हासिल कर उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे व तब कल्याण सिंह सरकार में पर्यटन राज्य मंत्री का दर्जा मिला ।
* वर्ष 1993 में तीसरी बार बीजेपी से टिकट मिला और इस बार वह पौड़ी से हार गए ।
* वर्ष 1996 आते-आते भाजपा से मोह भंग हुआ और फिर अपनी ही पार्टी बनाई उत्तराखंड जनता मोर्चा तब फिर पौड़ी से अपने दम पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत के बजाय हार मिली ।
* वर्ष 1997 में अपनी ही पार्टी को समाप्त कर मायावती के साथ चले गए थे तब बसपा से एमएलसी का चुनाव भी लड़ा । उस दरमियान रुद्रप्रयाग और ऊधमसिंह नगर दो नए जिले बनाए गए जो कि हरक सिंह रावत की बड़ी उपलब्धि मानी जाती है ।
* वर्ष 1998 में पौड़ी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से बसपा के टिकट पर लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा ।
* वर्ष 2002 तक मायावती के हाथी की सवारी छोड़ कांग्रेस के हाथ को पकड़कर लिया और 2002 में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडाऊन से चुनाव जीता ।
* वर्ष 2007 में फिर कांग्रेस के टिकट पर जीते ।
* वर्ष 2012 में केदारभूमि रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और लगातार तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल कर उत्तराखंड विधानसभा तक पहुंचे ।
* वर्ष 2014 में दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ने का मौक़ा पौड़ी से मिला । इससे पहले पहली बार 1998 में बसपा से लोकसभा चुनाव लड़े थे और अब दूसरी बार कांग्रेस से ।
* वर्ष 2016 में कांग्रेस छोड़ एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए ।
*शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’
Copyright: Youth icon Yi National Media, 19.06.2016
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इन नेताओ का कोई घर नहीं जहां देखी तवा परात वही गुजारी सारी रात की मिसालपर चलते है अपने घर भरते है जनता जाये गर्त में उन्हें कोई मतलब नहीं
हाथ भी बस इलेक्शन से पहले ही जुड़ने शुरू होते है वर्ना तो उठ कर हिलते ही नजर आते है
ईशवर ही मालिक है इस देश का
लौट के ——-घर को आयें
इसमें इतनी हैरान होने की कोई बात नही… जिस व्यक्ति के पार्टी बदलने से उसके अपने सिद्धान्त भी बदल जाते है वो किसी भी पार्टी मैं रहे क्या फर्क पड़ता है!! मुझे नही लगता की किसी भी दल मैं उनका कोई व्यक्तित्व प्रभाव होगा।
Yeh #Neta nhi sudhrenge
Some of them are exceptional case?
वैसे तो नेताओं ने पूरे देश मे अपनी छवि खराब की है लिकिं उत्तराखण्ड के नेताओं ने इस मामले मे रिकार्ड बनाया है। और गलती हमारी भी है जो हम इन जैसे नेताओं को हाथों हाथ लेते हैं। लेकिन अब भी वक्त है 2017 मे इन भ्रष्ट नेताओं को आईना दिखाने का वक़्त है।
घर वापसी का मतलब पार्टी से नहीं है । ध्यान से पढें
I think he has a big misunderstanding that he is using party but the reality is party is using him for their own benifits
मैठाणी जी आपका विश्लेषण पत्रकार के चश्मे से सही है लेकिन मैं आम बोटर के व्यु से कहूँ तो इन महाशय का 2017 में जितना जनता द्वारा सरासर लोकतंत्र का अपमान होगा , क्योंकि जनता अभी भी नहीं समझी तो ये मुश्किल है
1993 ka chunav me pauri se harak singh rawat ko jeet mile thi………..
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