बल , ऐसा हुआ ठैरा … गढ़वाल में बात चीत के दौरान वाक्य में “बल ” और कुमांऊ में “ठैरा ” अक्सर लगाया जाता है । ऐसा क्यों होता है ? इसका संबंध भूगोल से है ।
इस समय कुमाऊं और गढ़वाल की सीमा पर स्थित ग्वालदम (समुद्रतल से ऊंचाई -1948 मीटर ) में सुबह की फीकी चाय के साथ कुदरत का मीठा आनंद ले रहा था तो ये बात याद आ गयी और अब आपको भी बता रहा हूँ ।
लेकिन इनसे पहले कि मैं आपको ठैरा और बल का भूगोल समझाऊं , आप सुनिये इसका इतिहास ।
सन 2005 के जून महीने की बात है ,जब मैं अपने कुछ मित्रों के साथ नेपाल सीमा पर महाकाली नदी के किनारे स्थित पंचेश्वर से टिहरी में भिलंगना नदी के किनारे स्थित फलिंडा तक पद यात्रा पर निकला था । उस समय कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्र की कुछ छोटी -बड़ी सदानीरा नदियों के किनारे चलने का अवसर भी मिला था , तभी हमें ज्ञात हुआ ” ठैरा ” और ” बल ” का रहस्य ।
ये तो ठैरा जी इतिहास , अब आपको भूगोल समझाना हुआ बल ।
ग्वालदम के पास किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जब आप उत्तर दिशा में देखेंगे तो आपको त्रिशूल शिखर दिखाई देगा । इस शिखर से बायीं तरफ गढ़वाल हिमालय की तथा दायीं तरफ कुमाऊँ हिमालय की बर्फीली चोटियां दिखाई देंगी (इनकी तस्वीरे देखने के लिए आप मेरी अल्बम में “हिमालय एक जीवंत विरासत ” देखिए ) ,जहां के हिमनदों से कई नदियां निकलती हैं ।
गढ़वाल हिमालय से निकलने वाली नदियां तो गढ़वाल के मुख्य आबादी क्षेत्र से गुजरती हैं ,किंतु कुमाऊं हिमालय से निकलने वाली नदियां ऐसा नहीं करती ( पूर्वी रामगंगा को छोड़कर ) । वे या तो पिंडर में मिल गढ़वाल की तरफ चल देती हैं या नेपाल की तरफ जा कर काली में मिल जाती है ( काली नदी भारत – नेपाल सीमा का निर्धारण भी करती है । अपने प्रचण्ड प्रवाह के कारण इसे महाकाली भी कहते हैं , टनकपुर के पास यह भारत में प्रवेश करती है और शारदा के नाम से भी पुकारी जाती है । आगे यह गंगा में मिल जाती है ) । नदियों के प्रवाह का यह रुख हिमालयी क्षेत्र की ढलानों के कारण होता है ।
कुमाऊं के मुख्य आबादी क्षेत्र में बहने वाली नदियां वनों से निकलने वाली नदियां है , जिनमें हिमनदों से निकलने वाली नदियों की तुलना में पानी की मात्रा कम होती है । चौड़ी घाटियां होने के कारण इनका वेग कम होता है ,अक्सर ठहर ठहर कर चलती हुई प्रतीत होती हैं।
जबकि गढ़वाल के मुख्य आबादी वाले क्षेत्र में बहने वाली नदियां हिमनदों से निकलती हैं अतः इनमें पानी की मात्रा अधिक है और संकरी तथा तेज ढलान वाली घाटियों के कारण ये अत्यंत तेज बहती हैं ।
नदियों के प्रवाह में बल अधिक होने के कारण गढ़वाल में “बल” लगाया जाता है और ठहर ठहर कर बहने के कारण कुमाऊं में “ठैरा ” का प्रयोग किया जाता है ।
अब कुछ सदा शंकालु मितरोँ के मन में शंका होगी कि नेपाल में क्या कहते होंगे ? तो ऐसा है कि कुछ सालों में सारे नेपाली उत्तराखंड में आ जाएंगे ,तब उन्ही से पूछ लेना , मेरे पास फालतू टैम नहीं शाब ।
बल ,ठीक ही तो लिखा ठैरा होगा मैंने जी ?
बल हर हर ठैरा ,बल घर घर ठैरा ।
नहीं ऐसा तो नहीं , हाँ कहा जा सकता है कि एक औपचारिक तथ्य मात्र है !
Kuchh bhi ho… Jaankaari laajvab hai… Itihas bhi aur bhugol bhi. Sadhanyavaad!