ग्राउंड रिपोर्ट का एक साल बेमिसाल और एक जोखिम भरी कहानी…..

Written by : Brajesh Rajput  Bhopal . MP. 

पता ही नहीं चला और आपको ग्राउंड रिपोर्ट बताते बताते एक साल गुजर गये। ठीक एक साल पहले सात अगस्त को ही हरदा टेन हादसे की रिपोर्ट सुबह सबेरे के लिये लिखी थी। मकसद ये था कि न्यूज चैनल का रिपोर्टर मौके पर जाता है और वहां बहुत सारी बातें देखता है जो वो अपनी कुछ सेकेंड या मिनिट की स्टोरी में दिखा नहीं पाता। उन सारी बातों को पढने वालों के सामने ऐसे लाया जाये कि पढते हुये दिखने का अहसास हो। उमेश जी और गिरीश जी के तय पैमानों पर उतरना आसान नही था उस पर मेरी भागादौडी वाली ऐसी व्यस्तता जिसमें ये तय नहीं होता कल आप कहां होंगे। रास्ता निकाला पंकज ने कि आप तो यदि बोलकर भी लिखायेंगे तो हम उसे छापेंगे। सच में कम से कम चार या पांच बार ऐसा हुआ कि लोकेशन से ही बोलकर लिखवाना पडा ये कालम। पत्रकारिता के शिखर पुरूष प्रभाष जोशी की भाषा में कहूं तो सुबह सबेरे में पिछले एक साल से कागद कारे करते करते बहुत सारे नये लोगों से संपर्क हुआ जो पढने के बाद एसएमएस और मेल से और कभी कभी मिलने पर इस कालम में लिखे को सराहते हैं। इस अवर्णनीय सुकून के अलावा लिखने का सिलसिला सा चल पडा जो भागादौडी और ओढी हुयी व्यस्तता से बंद पडा था। इस कालम को पढने के बाद बहुतों को ये भी पता चला कि टेलीविजन की न्यूज रिपोर्टिंग कितनी मुश्किल चुनौतीपूर्ण और कभी कभी जोखिम से भरी है। चमकदमक से भरी पत्रकारिता के इस पहलू को भी सामने लाना था।
तो इस बार एक जोखिम भरी कहानी। पन्ना जिले में फ़र्ज़ी पत्थरों के अवैध उत्खनन की बड़ी ख़बरें आ रहीं थीं। जिसका हम कवरेज तो करना चाहते थे मगर जब तक उसमें किसी प्रभावशाली व्यक्ति का जुड़ाव ना हो कहानी हमारे चैनल लायक बनती नहीं। हमारे पास पन्ना से कुछ काग़ज़ आये जिनसे साबित हो रहा था कि इलाके के बीजेपी के नेता विधायक और तत्कालीन मंत्री के परिवार के लोगों ने दलितों और पिछड़ो के नाम पर पन्ना के पास कलदा पठार पर पत्थर की खदानें ले रखीं हैं जिन ग़रीबों के नाम पर खदानें हैं वो एक तरफ़ तो ग़रीबी रेखा के नीचे वालों की सूची में हैं और दूसरी तरफ़ उनकी खदानों से बेतहाशा पत्थर भी निकल रहा है जिससे उनके कमाई भी हो रही है। असल कहानी ये थी कि इन ग़रीबों के नाम पर खेल बड़े लोग कर रहे थे। आरक्षण की आड़ में खदानें तो अलाट करवा दी गयीं थी मगर खदानें चला बड़े लोग ही रहे थे। अब चूँकि ग़रीब अपने गाँव के ही हैं तो उनको साल का थोड़ा बहुत पैसा दे दिया जाता था। बाक़ी पूरा लेनदेन और मुनाफ़ा खदान चलाने वाले बड़े लोग ही कर रहे थे। पहली नजर में ही कहानी जम गयी। हम पन्ना के अपने सहयोगी शिवकुमार त्रिपाठी और कैमरामैन साथी होमेंन्द्र के साथ पहले तो कलदा पहाड़ी पर चढ़े जहाँ खदानों में पत्थरों की मशीनों से खुदाई चल रही थी। कहीं से नहीं लग रहा था कि गाँव के ग़रीब इतने बड़े पैमाने पर खदानें चला रहे होंगें। थोड़ा बहुत छिपते छिपाते शूट करने के बाद अब हम पहुँचे उस गाँव में जहाँ के लोगों के नाम पर खदानें थीं। हमनें गाँव में पहुँचते ही उस ग़रीब का घर वहाँ खड़े किसान से पूछा तो वह हम नहीं जानते कहकर साइकिल उठाकर निकल गया। वही नाम हमने जब दूसरे आदमी से पूछा तो उसने हैरान करने वाला जबाव दिया कहा जिससे आप पता पूछ रहे थे वही वो किसान है। अब हमारा माथा ठनका। हम अपरिचितों को झाँसा देकर वो अपने असल मालिकों को खबर करने निकल गया है। हमने थोड़ी हिम्मत की और उस खदान वाले ग़रीब आदमी का घर पहुँचकर जब उसका घर शूट करने लगे तो परिवार के बेटों ने बाहर आकर झगडने लगे। हमारे कैमरामैन होमेंन्द्र ने सतर्क किया कहा सर अब गाँव से निकलिये वरना यहीं घिर जायेंगे। एक दो पीटीसी करते हुये थोड़ा वक्त और लग गया मगर ये क्या गाँव से थोड़ी दूर चलते ही हमारी गाड़ी को दो गाड़ियों ने ओवरटेक कर रोक लिया। पाँच छह लोग उतरकर हमसे कौन हो कहाँ से आये हो जैसी पूछताछ करने लगे मगर ग़नीमत ये रही वो शिवकुमार को जानते थे और बात बिगड़ी नहीं। उन्होंने हमसे कहा अंदर क्रेशर पर चलिये और बात करिये थोड़ा हौसला हमने भी दिखाया और कहा जिससे भी बात करानी हो पास में रेस्टहाउस है वहाँ पर चलो जिसे बुलाना हो बुलाओ और बात करो। थोड़ी देर बाद हम सब रेस्टहाउस में थे और तत्कालीन मंत्री जी के भाई बात कर रहे थे। वो शख़्स अपने काम को पाक साफ बता रहे थे और यहाँ ऐसा ही होता है कि रट लगाये थे मगर हमारा कहना था कि जब सब ठीक है तो फिर इतना डरना क्या बुलाओ और मिलवाओ उन ग़रीबों से। ख़ैर काफ़ी देर की तनातनी के बाद सौहार्द से बात ख़त्म हुयी इस शर्त पर कि सबका पक्ष बराबर दिखाया जायेगा। इधर हमको घेरने की बात पन्ना से लेकर भोपाल तक फैल गयी थी दोस्तों के और पुलिस के फ़ोन आने लगे थे और हम सबको कह रहे थे कुछ नहीं हुआ छोटी सी बात है मगर कहानी हमारे हाथ बड़ी लगी थी जो हमारे चैनल ने धूमधाम से चलायी। वो कहानी उसके छोटे बड़े किरदार और वो घटनाक्रम आज भी सिहरा देते है।

ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज,
भोपाल

By Editor