Bhuli Bisari yaden : उत्तराखंड की बाढ और छह घंटे सफर हैलीकाप्टर का …!
वो तीन साल पहले 19 जून का ही दिन था जब विजय राघौगढ के विधायक संजय पाठक का फोन आया। क्या हो रहा है भाई। कुछ नहीं उत्तराखंड में बाढ आयी है और हम यहां हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं। तो बोलो चलना है उत्तराखंड। क्यों मजाक करते हो सारे रास्ते बंद हैं और वहां जाना कठिन है। चलना हो तो बताओ, अपनी विधानसभा के लोगों को निकालने के लिये हैलीकाप्टर का इंतजाम किया है, ये हैलीकाप्टर भोपाल में खडा है और थोडी देर में उडने वाला है। ऐसा लगा जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गयी हो। आफिस को बताया और थोडी देर बाद ही हम कैमरामेन साथी होमेंद्र के साथ भोपाल हवाई अडडे पर थे। मगर ये क्या यहाँ पर आईबीएन सेवन के मनोज शर्मा पहले से ही अपनी टीम के साथ मौजूद थे। संजय ने उनको भी जाने के लिये तैयार कर लिया था। अब हम एक से भले दो और दो से भले चार थे। सबकी मंजिल उत्तराखंड थी संजय को दिल्ली से देहरादून पहुंचना था और हमें इस सिंगल इंजन वाले हैलीकाप्टर से। भोपाल से बरसते पानी में हैलीकाप्टर उडा और दो घंटे की उडान के बाद जयपुर पहंुचा। यहां थोडी देर रूकने और प्यूल लेने के बाद ये नन्हा हैलीकाप्टर फिर उडा और दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा। अब तक दोपहर हो गयी थी ये हैलीकाप्टर तपने लगा था। नीची उडान के कारण नीचे के दृश्य दिख रहे थे जिनको देखकर डर भी लग रहा था। दिल्ली से फिर हैलीकाप्टर देहरादून की ओर उड चला। आखिर दो घंटे के बाद हम देहरादून के जोली ग्रांट हवाईअडडे के उपर थे बताया गया कि हैलीकाप्टर यहंा नहीं स्टेट हैंगर पर उतरेगा। नीचे उतरने की तैयारी कर रहा हैलीकाप्टर अचानक फिर उंचाई पर था। यहंा लगातार उंचाई पर सफर कर हम जमीन पर उतरने को बेकरार थे। स्टेट हैंगर पर ढेरों हैलीकाप्टर खडे थे। प्राइवेंट कंपनियों के अलावा राज्य सरकारों ने अपने हैलीकाप्टर भेजे थे उपर घाटियांे में फंसे अपने लोगों को निकालने के लिये। हमारी एमपी सरकार का हैलीकाप्टर भी दो दिन से खडा था मगर अपने बडे आकार और छोटे हैलीकाप्टरों की भीड के कारण उसे उडने की इजाजत नहीं मिल रही थी और वो शोभा की वस्तु बनकर खडा था।
हवाईअडडे पर उतरते ही हमें बाढ की विभीषिका का अंदाजा हो गया। 16 जून को हुयी भीषण बारिश और बादल फटने से केदारनाथ, बद्रीनाथ और उपर के पहाडों पर भूस्खलन हुआ था। जिससे चारधाम की यात्रा पर आये देश भर के तकरीबन एक लाख लोग फंस गये थे। पहाडों पर जाने के रास्ते टूट गये थे ऐसे में तीर्थयात्रियों को निकालना अपने आपमें बडी चुनौती थी। हैलीकाप्टर ही एक तरीका था लोगों को निकालने के लिये मगर लगातार खराब मौसम में पहाडों के बीच हैलीकाप्टर उडाना जोखिम का काम था। फिर हैलीकाप्टर में जगह भी कम होती थी तीन चार घंटे की उडान के बाद पांच छह लोग ही निकाले जा सकते थे। सेना भी हैलीकाप्टर की मदद से ही बचाव और राहत के काम कर रही थी। पहाडों में जगह जगह पर अस्थायी हैलीपेड बनाये गये थे जहां से लोगों को सुरक्षित निकाल कर लाया जा रहा था। जिनके परिजन पहाडों में फंस गये थे वो देहरादून के स्टेट हैंगर पर ही डेरा डालकर बैठे थे। किसी भी हैलीकाप्टर के उतरते ही उसे अपने लोगों के लौटने की उम्मीद में घेर लिया जाता था। उतरने वाले पायलटों और तीर्थयात्रियों को फोटो दिखाकर पूछा जाता था कि क्या ये आपको कहीं दिखे। स्टेट हैंगर पर बने पंडालों की दीवारों पर लोगों ने अपने स्वजनों के फोटो और अपने फोन नंबर लिख कर टांग दिये थे। इस उम्मीद में कि यदि किसी ने उनको देखा हो तो बताये। मगर अचानक आयी बाढ की विभीषिका में सबको अपनी जान की सलामती की पडी थी जो बच गये वो किस्मत वाले थे। जो लौट कर नहीं आये उनके लिये सिर्फ प्रार्थनाएं ही की जा सकती थीं। प्रशासन के अफसर भी बहुत ज्यादा मदद नहीं कर पा रहे थे कुल मिलाकर अराजकता सरीखे हालात थे। और ऐसे हालातों में हमने अगले दिन उडने की सोची। केदारनाथ जाना तकरीबन असंभव सा था तब हम बद्रीनाथ की ओर उडे। चार सीटों वाले हैलीकाप्टर में अब संजय भी सवार थे इसलिये मनोज के कैमरामेन मुकेश को उतार दिया गया। हैलीकाप्टर उत्तराखंड की पहाडियों के बीच से उडा जा रहा था। आते जाते में कई हैलीकाप्टर दिख रहे थे। नीचे उफनती नदी और मकानों पर फंसे लोग भी दिख रहे थे। मन में आया कि लोग पहाडों से सुरक्षित जगहों पर भाग रहे हैं और हम उन जगहों पर जा रहे हैं जहां से निकलने की होड लगी है। यही है पत्रकारिता। अपनी जान जोखिम में डालकर उन जगहों के हाल बताना जहां पहुंचना ही कठिन हो रहा था। गर्व और डर दोनांे की अनुभूति एकसाथ हो रही थी। हमारा हैलीकाप्टर जब बद्रीनाथ उतरा तो हैलीपेड के आसपास हजारों लोगों की कतारें लगी हुयीं थीं। सेना के हैलीकाप्टरों से लोगों को निकाला जा रहा था उसमें भी पहले बुजुर्ग, बीमार और बच्चोें को प्राथमिकता दी जा रही थी। लोग होटल छोड रात भर से लाइनों में खडे हैं। लोग लक्जरी गाडियों से आये थे मगर हैलीकाप्टरों से आनन फानन में सब कुछ भगवान भरोसे छोडकर निकलना पड रहा था। वापस जाने के लिये लोग गिडगिडा रहे थे। कोई अपनी बीमारी तो कोई बच्चों का हवाला देकर हमें साथ ले चलने की जिद कर रहा था और हमारे पास उनको धीरज देने और उनके इस दर्द की कहानी के कवरेज के अलावा कोई उपाय नहीं था। संजय के चार लोगों को लेकर हैलीकाप्टर उड चला। तब तक हमने बद्रीनाथ में जाकर भगवान बद्रीविशाल के दर्शन किये और शहर के लोगों का हाल जाना। बाढ की विभीषिका में भी सहयोग और सद्भाव की ढेरों कहानियां मिलीं। यहंा से निकलना मुश्किल था मगर रहना नहीं। किसी ने अपने होटल के दरवाजे सबके लिये खोल दिये थे तो मंदिर और आश्रमों में भंडारे शुरू हो गये थे। करीब चार घंटे बाद हमारा हैलीकाप्टर भी वापस आ गया था। इस विभीषिका से जुडी कई कहानियां हमने कैमरे में कैद कर लीं थीं। बस जल्दी जाने और इनके आन एयर होने की बेताबी थी मगर ये क्या बद्रीनाथ से वापस जाने की खुशी हमारे पायलट ने ये कहकर उडा दी कि हैलीकाप्टर में फयूल कम है और पहाड की उंचाई ज्यादा है इसलिये चार सवारियां ले जाना कठिन है किसी एक को रूकना पडेगा। अब हम चारों यानिकी मैं मनोज संजय और होमेंद्र एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। कौन रूकेगा बद्रीनाथ में। पायलट ने फिर कहा जल्दी तय करिए कौन चलेगा ?
(फिर कौन रूका बद्रीनाथ में और कैसे गुजरे आपदा मे वो दिन ये किस्सा अगली बार)
*ब्रजेश राजपूत
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ऐसी त्रासदी ईश्वर कभी किसी को न दिखाए न जाने कितने घरो के ताले आज तक नहीं खुले ।प्रसाशन चाहे जो कहे हालात अभी भी कुछ अच्छे नहीं है