उत्तराखंड में बे-लगाम बदरीनाथ समिति की तानाशाही पर कौन कसेगा लगाम ?
* नृसिंह मंदिर के बाद अब नव निर्माण के लिए खण्डर में तब्दील किया पौराणिक बिनसर मंदिर ।
उत्तराखंड में निस्तनाबूत हुई फिर एक धरोहर । उत्तराखंड एकमात्र ऐसा एक राज्य है जहाँ पर धरोहरों के साथ छेड़-छाड़ की खुली छूट बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को प्राप्त है ।
जोशीमठ में प्राचीन नृसिंह बदरीनाथ मंदिर परिसर के सफाए के बाद अब प्राचीन बिनसर मंदिर की बारी है । अपनी पीड़ा आगे बताने से पहले मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि मैं कभी भी दर्शनीय स्थलों के जीर्णोद्धार या सौंदर्यीकरण के खिलाफ नहीं हूँ परन्तु सौंदर्यीकरण या जीर्णोद्धार के नाम पर इतिहास को ही ढहा देना कहाँ तक उचित है ।
अगर जिन लोगों ने जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर के ढेपुरे मैन्जुले व कोठरियों के किस्से कहानियां को सुना हो तो वो अब वहां पर नवनिर्माण के बाद सब समाप्त कर दिया गया है । अब न वहां पर रहस्यमयी किस्से कहानियों में पनपने वाला कौतुहल कभी नहीं जगेगा और नहीं कोई शोध का विषय वहां पर रह गया है । हालांकि विशाल नवनिर्मित भव्य मंदिर का निर्माण अवश्य कर दिया गया है और ऐसे निर्माण देशभर में कहीं भी कभी भी देखे जा सकते हैं । अब वह देवदार की अद्भुत नक्काशीदार खोली, द्वार व पत्थरों को तराशकर बनाए गए छज्जे कभी नहीं दिखेंगे । जोशीमठ में मंदिर के अहाते में विशाल पत्थर बिछा होता था जिस पर कई कोण में यन्त्र बना था, उसकी भी एक कहानी थी श्रद्धावान लोग उस पत्थर वाली जगह को बड़ी तरजीह देते थे । और उसके आसपास पैर न पड़े इसके लिए बहुत ही संभलकर चलते थे । लेकिन अब उस यन्त्र को गायब कर दिया है और वहां पर चमचमाते देशी पत्थर बिछा दिए गए हैं । आस्था को गायब कर दिया है । धन्य हैं नियोजनकर्ता । नृसिंह मंदिर के विशाल भवन के सबसे ऊपरी मंजिल (ढेपुरे) में बड़ी बड़ी कढ़ाई, परात व अन्य बर्तन आदि के अलावा मुखौटे होने की बात की जाती थी जो कई सैकड़ों वर्षों से उल्टे रखे हुए थे इस आशंका के साथ की अगर उन्हें छेड़ा गया तो पूरे क्षेत्र में महामारी या अनहोनी हो सकती है । वो एक रिकार्ड था ! एक परम्परा का हिस्सा था ! शोधार्थियों के लिए शोध का विषय था ! सुनने व देखेने वालों के लिए रहस्य और रोमांच से ओत प्रोत करने वाले किस्से थे लेकिन अब महान समिति के कर्ताधर्ताओं ने उन सब पर पानी फेर दिया है । या यूँ कहें कि बनते इतिहास को अपनी जिद्द से हमेशा-हमेशा के लिए उजाड़ दिया ! उखाड़ दिया ।
अब कुछ इसी तरह बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति ने एक और प्राचीन धरोहर को हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तनाबूत कर दिया है । जी हाँ … इतिहास को कर्ताधर्ताओं ने अपने हाथों से उखाड़ दिया है ।
मैं अभी गुजरात में हूँ और अनेक ऐतिहासिक व पौराणिक स्थानों का भ्रमण कर रहा हूँ यहाँ की सरकार ने प्रान्त की धार्मिक, सांस्कृतिक व पारंपरिक धरोहरों को जीर्ण शीर्ण हाल में भी सँभालने की भरसक कोशिश की है । प्राचीन स्थलों व धरोहरों के साथ किसी भी तरह की अनैतिक छेड़छाड़ नहीं की जा रही है । बल्कि कहीं पर कोई धरोहर खंडित हो रही है तो उसके खंडित हिस्से को बड़े ही करीने व साफ़ सफाई के साथ संरक्षित किया जा रहा है । और यही कारण है कि इन धरोहरों के इतिहास को पढ़ने के बाद देश और दुनियां से लोग बड़ी संख्या में गुजरात इन्हें देखने पहुँचते हैं । जिस जिस प्रान्त ने अपनी धरोहरों को संरक्षित किया है उन प्रदेशों ने पूरी दुनियां में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है और उन राज्यों का राजस्व भी बढ़ा है ।
लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तराखंड में हर कोई मनमाफिक तरीके धरोहरों के साथ छेड़छाड़ कर रहा है जिन पर कार्रवाई तो दूर सरकारें संज्ञान तक नहीं ले रहीं हैं ।
आज सुबह-सुबह मोहन बुलानी जी की फेसबुक पोस्ट पढ़ी यह फोटो देखी तो मन को भारी पीड़ा हुई । फोटो में जिस निर्ममता के साथ प्राचीन पौराणिक बिनसर महादेव के मंदिर को ढहाया गया है उससे हर संस्कृति प्रेमी का दिल पसीजेगा ।
मोहन बुलानी जी ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बताया कि पौराणिक बिनसर मंदिर राठ क्षेत्र के थलीसैण विकास खंड तथा गैरसैण विकास खंड के मध्य दूधातोली पर्वत श्रृंखला में स्थित है ।
यहाँ आजकल बिनसर मंदिर का जीर्णोद्धार के नाम पर नव-निर्माण जोरो पर चल रहा है । और यह महान कार्य हो रहा है श्री बद्रीनाथ केदार नाथ मंदिर समिति के संयोजन में । समिति द्वारा प्राचीन बिनसर मंदिर को पूर्ण रूप से ध्वस्त कर दिया गया है और अब उसी स्थान पर नया मंदिर बनाया जाएगा ऐसा बताया जा रहा है । लेकिन असल सवाल यह कि बदरीनाथ मंदिर समिति अब वो प्राचीनता व इतिहास नए मंदिर में कैसे स्थापित करेगी । आस्था का प्रश्न – क्या पौराणिक मंदिर की तरह नए मंदिर के प्रति भी उतनी ही आस्था जगेगी या फिर यह अब सिर्फ और सिर्फ पिकनिक स्पॉट बन कर रह जायेगा ।
हो सकता है मोहन बुलानी की पीड़ा के इतर बिनसर में भीड़ बढ़ेगी और निश्चित तौर पर प्रसिद्धि भी बढ़ेगी लेकिन इस सबके बीच उनकी पीड़ा व चिंता को भी हम आप नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं ।
* शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ Shashi Bhushan Maithani Paras
धन्यवाद बड़े भाई मैठाणी जी। आपके द्वारा मेरी फेसबुक वाल से पौराणिक बिनसर मन्दिर की पीड़ा को अपने न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से संज्ञान लेने के लिए।
Badri vishal jako dini taki buddhi har lini..
इस तरह की बेहुदा हरकत आखिरकार कब तक बर्दाश्त की जायेगी। जब जीणोद्धार की जिम्मेदारी नहीं निभा सकते तो मन्दिर का जीर्ण शीर्ण अवस्था में रहना ही बेहतर था।
मैं आप से पूरी तरह से सहमत हूं बद्रीनाथ की पूजा कौन से मंदिर छीन कर आज तक इस मंदिर मैं आज तक उत्तराखंड को कुछ नहीं दिया मंदिर के कर्मचारी लूट-खसोट और शराब पीकर मंदिर में आते हैं यह बहुत शर्मनाक है आपके विचारों से मैं पूर्णतया सहमत हूं इस संबंध में मैंने लगातार बहुत आवाज उठाई लेकिन वह बंद हो गई