Book release : विशेष कविता-संग्रह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि साहित्य के सामान्य फीडर्स यथा शिक्षक, पत्रकार की कलम से न निकल कर एक विशिष्ट क्षेत्र से निकला है ।
सर्वाधिक विकसित मस्तिष्क वाले वैज्ञानिक आइंस्टीन को कुछ किशोरों ने एक दिन छेड़ा कि क्या आप हमें भी अपना प्रसिद्ध सापेक्षिकता का सिद्धांत अभी समझा सकते हैं तो आइंस्टीन ने मुस्करा कर कहा क्यों नहीं। बस ये समझ लो कि तुम्हें बीस मिनट धूप में खड़े रहने को कहा जाए तो तुम्हें लगेगा कि दो घंटे हो गए पर जब तुम दो घंटे तक अपनी प्रेमिका से बात करते हो तो तुम्हें लगता है कि अभी तो दो मिनट भी नहीं हुए। कर्म से वैज्ञानिक, विचारों से दार्शनिक और मन से कवि आइंस्टीन जानते थे कि कुछ गुत्थियों का हल सूत्रों-समीकरणों से सम्भव नहीं उनके लिए प्रेम जैसी कोमल भावनाओं की दरकार होती है।
डॉ. ईशान पुरोहित, उत्तराखंड की माटी में जन्मे, हमारे हिस्से के आइंस्टीन ही हैं। भौतिकीविद्, विचारक, लेखक,समाजसेवी। और अब एक कवि के रूप में भी वे अवतरित हुए हैं। जीवन तो चलता रहता है, उनका सद्य-प्रकाशित कविता संग्रह है। ईशान पुरोहित को साहित्यिक संस्कार पारिवारिक विरासत में मिले हैं। उनके भाषा-शिक्षक पिता और पुस्तक के भूमिका-लेखक की प्रगतिशीलता का आभास उनकी एक ही पंक्ति से हो जाता है कि रामचरित मानस, मध्यकालीन अत्याचारों की प्रतिक्रिया थी (जाहिर है अंधभक्ति का परिणाम नहीं)।
ये कविता-संग्रह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि साहित्य के सामान्य फीडर्स यथा शिक्षक, पत्रकार की कलम से न निकल कर एक विशिष्ट क्षेत्र से निकला है। एक सफल वैकल्पिक ऊर्जा वैज्ञानिक, ईशान ने अपना साहित्य का विकल्प भी खुला रखा है। संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए उनकी समृद्ध शब्दावली और विस्तृत भावश्रृंखला का परिचय तो पहली नज़र में ही मिल जाता है साथ ही लय पर उनकी अद्भुत पकड़ का भी दर्शन होता है।
दिन के 18 घंटे अपनी जॉब को समर्पित करने वाले ईशान की इन रचनाओं में समयाभाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। इस संग्रह में 21 सशक्त गीत मिल जाएंगे इतनी ही उर्दू शब्द प्रधान रचनाएं। दोहों,ग़ज़लों जैसे मुक्तकों में तो परफैक्शन दिखता है, अपार संभावनाएं भी। ईशान के साहित्यकार चाचाजी ने उचित ही परामर्श दिया है कि उन्हें इन सबको पृथक-पृथक ही प्रस्तुत करना चाहिए।
ईशान पुरोहित की रचनाओं की केंद्रीय अनुभूति और संप्रेष्य प्रेम है। प्रेम रचनाऐं उन्हें सृजन-सुख तो प्रदान करती ही हैं साथ ही उनकी व्यस्त यांत्रिक दिनचर्या में तनाव को रिलीज़ करने के लिए सेफ्टी-वॉल्व का भी काम करती हैं। प्रेम उनके लिए प्लेटॉनिक लव है देह-केंद्रित आवेशित प्रतिक्रिया नहीं। ये उनकी स्पष्ट काव्यदृष्टि और प्रेम के उन्नत पक्ष की दार्शनिक समझ ही है जिससे वे अपने माता-पिता से न सिर्फ अपनी प्रेम कविताओं को शेयर करते हैं बल्कि उन्हीं की गरिमामय उपस्थिति में अपने प्रेम कविता संग्रह का लोकार्पण भी करवाते हैं।
रेक्टिफिकेशन का अपने भौतिकीय शोधपत्रों में सैकड़ो बार प्रयोग करने वाले डॉ पुरोहित को इसका प्रयोग अपनी काव्य रचनाओं में भी करना चाहिए। किसी भी कवि की कविता के अंतिम ड्रॉफ्ट की सूरत उसके पहले ड्रॉफ्ट से नहीं मिलती। बहुत कुछ छोड़ना भी पड़ता है। छंद के बंधन तोड़कर भी कुछ प्रयोग करने चाहिए। लय तो छंदमुक्त कविताओं में भी होती है। ब्लैंक वर्स तक पूरी तरह ब्लैंक नहीं होता। मुझे पूर्ण विश्वास है कि, उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध का रोमांटिसिज़्म और बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में उसकी भारतीय प्रतिध्वनि छायावाद, ईशान के लिए क्षणिक आश्रय ही होगा जो आगे चलकर उन्हें बिंबों में जटिल भाव-विचार को प्रतिबिम्बित करने का कौशल देगा।
ईशान से उनके विशिष्ट कार्यक्षेत्र की अनुभूतियों को काव्य में अनूदित होते देखना भी उनके प्रशंसकों की अपेक्षा है। यथा सूरज की किरणों को इतने गौर से उनके अलावा, शायद ही किसी और कवि ने देखा हो। प्रेम, सूरज का भी अपने परिक्रमार्थियों के प्रति कम नहीं है जो अपनी किरणों को किसी माध्यम की अनुपस्थिति में ही सूदूर भेजता रहता है।
अगर आपको लगता है कि किसी वैज्ञानिक के दिमाग में सिर्फ सूत्र और समीकरणों से भरा आंकड़ों का अन्तर्जाल ही होता है तो आपको ईशान पुरोहित का ये संग्रह अवश्य पढ़ना चाहिए। विशुद्ध भारतीय से लेकर अरबी-फारसी तक हर रूमानी रंग उनकी कविताओं मे मौजूद है। आपके किसी प्रियजन को ये उपहार में मिले तो वो आपकी दृष्टि का कायल हुए बिना नहीं रह सकता।
सही मायने में, इस संग्रह के द्वारा डॉ ईशान पुरोहित ने अपने काव्य-सामर्थ्य की वैरायटी और रेंज का प्रस्तुतीकरण किया है जिन्हें वो आगामी कृतियों में Genre specific होकर बेहतरीन उपस्थिति साहित्याकाश में कर सकते हैं और अपने नाम के अनुरूप स्वयं को साहित्य के ईशान कोण में स्थापित कर सकते हैं।
डॉ ईशान पुरोहित का यह काव्य संग्रह, प्रतिष्ठित लोकभाषा पत्रिका, धाद के संपादक गणेश खुगशाल गणी के निर्देशन में, विनसर देहरादून द्वारा प्रकाशित किया गया है। संग्रह का भव्य लोकार्पण, जीएमएस रोड देहरादून स्थित कमला पैलेस हॉटेल में किया गया। लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी द्वारा की गयी और विशिष्ट अतिथि पद्मश्री एएन पुरोहित व संस्कृतिकर्मी प्रोफेसर डीआर पुरोहित रहे। संग्रह की समीक्षा बीना बेंजवाल व डॉनन्दकिशोर हटवाल द्वारा प्रस्तुत की गयी जबकि समारोह का सफल संचालन गणेश खुगशाल गणी द्वारा किया गया।
वाहह बेहतरीन समीक्षा ,पाठक तक शीघ्र पहुंचाने में दमदार हुई आपकी कलम के माध्यम से आदरणीय देवेश सर जी । ईशान जी को हार्दिक बधाई ।