Budher, North India’s oldest forest rest house : उत्तर भारत का सबसे पुराना वन विश्राम गृह है बुधेर..! जिसके आस-पास रहस्यमयी जीव व बनस्पति, तांत्रिक अनुभूति व 150 किमी. लम्बी गुफा व खूबसूरत बुग्याल मोइला टिम्मा…!
मुझे लगता है कि वन विभाग के आईएफएस या पूरा विभाग अगर पूरी ईमानदारी के साथ कुछ तथ्य और जुटा पाता तो अल्पाइन पहाड़ियों के इस रहस्यमय अद्भुत आलोकिक लोक के दर्शन करने वाले वाइल्ड लाइफ प्रेमी या प्रकृति के चितेरे सचमुच यहाँ आकर अपने को भाग्यवान महसूस करते. बस मेरी तरह एक ईमानदार सोच विकसित करने की जरुरत थी और वे आंकड़े सामने आ जाते जो बन विभाग के पास भी नहीं हैं. शुक्रिया क्षेत्रीय विधायक व प्रदेश के काबीना मंत्री प्रीतम सिंह व उनके मुख्य निजी सचिव विक्रम सिंह चौहान का जिनकी बदौलत हमें प्रकृति के बीच बसे इतने खूबसूरत बंगले में रुकने का अवसर प्राप्त हुआ. मैं मुख्यत: विक्रम सिंह चौहान (मुख्य निजी सचिव प्रीतम सिंह काबीना मंत्री उत्तराखंड सरकार) का इसलिए भी शुक्रगुजार हूँ कि जब भी उन्हें किसी क्षेत्र में जाने के लिए कहूँ वह बेहद बिनम्र भाव से कहते हैं इष्टवाल जी आप जा रहे हैं तो मंत्री जी के कार्यों का फीड बैक जरुर लेते आईये ताकि जहाँ कमी या गुंजाइश हो वहां हम सुधार की कोशिश करने के लिए माननीय मंत्री जी का ध्यानाकर्षण करवा सकें.
जौनसार बावर के चकराता से लगभग 26 किमी दूरी पर देवदार, कैल, सुरई के घनघोर जंगल के बीच बने एक खूबसूरत बंगले में जब हमारी टीम जिसमें दिनेश कंडवाल (सम्पादक देहरादून डिस्कवर), शिब प्रसाद सती (सम्पादक शंखनाद), सुमन डोभाल काला (सोशलिस्ट), मैं स्वयं व नवीन (ड्राईवर) ने कदम रखा तो एक साथ सबके मुंह से निकल पड़ा वाह…! चकराता से लोहखन्डी तक 23 किमी. का सफ़र इसलिए भी सुखदायी लगता है क्योंकि यह क्षेत्र पूर्णरूप से प्रदुषणमुक्त है और एक सीधे लेकिन सांप की तरह रेंगती हॉटमिक्स सड़क आपको प्रकृति के भरपूर प्यार से रूबरू करवाती यहाँ तक पहुंचाती है. लोहखंडी टॉप से एक यु टर्न लेती बड़ी सड़क जहाँ सीधे त्यूनी होकर हिमाचल निकल जाती है वही बांयी ओर मुड़ते ही हम लोहखंडी के छोटे से बाजार में प्रवेश करते हैं जहाँ बन विभाग का वायरलेस सिस्टम या बीट चौकी है. यहीं आप श्याम सिंह चौकीदार के बारे में पूछेंगे तो एक छरहरे बदन का भोली सूरत का युवा आपके सामने खड़ा मिलेगा और अपनी बाइक पर किक मारकर बंगले तक अगुवाई करेगा. यहाँ से बुधेर बन बिश्राम गृह का सफ़र लगभग 3.5 किमी, है अगर आपके पास फॉर-बाय-फॉर वाहन है तब आप लगभग 25 मिनट में और छोटी गाडी है तो लगभग 40 मिनट में बंगले तक का सफ़र तय करते हैं. हैरत इस बात की है कि बन विभाग ने 148 साल पुरानी इस सड़क पर कभी दुबारा गैंती-फावड़ा चलाया भी होगा या नहीं यह कहना मुश्किल है. क्योंकि मात्र 3.5 किमी. का यह सफ़र बरसाती मौसम में छोटे दिल वालों का दिल मुंह तक ले आता है. यहाँ जहाँ पर बरसात का पानी ठहर जाय वहां गाडी रपटेगी जरुर. जहाँ बड़ा पत्थर सडक के बीच में उगा दिखे वह चट्टान का ही भाग होता है जिस पर गाडी का निचला हिस्सा ठुकेगा जरुर. समुद्र तल से 2310 मीटर जीपीएस -72 व 30”.45.’51” उत्तरी व 71”.47’.19” पूर्वी अक्षांश पर स्थित इस बंगले का निर्माण ब्रिटिश काल में सन 1868 में हुआ था इसे किसने बनवाया था इसका रिकॉर्ड बन विभाग के पास भी नहीं है लेकिन 148 साल पुराना यह बंगला उत्तर भारत में बना बन विभाग का सबसे पुराना बंगला माना जाता है. एक जर्मन मित्र मिओला के साथ बोथर नामक ब्रिटिश वाइल्ड लाइफ प्रेमी ने सबसे पहले इस जगह को वन्य जीव जंतु के चारागाह के रूप में ढूँढा जिसके टॉप तक बेहद खूबसूरत बुग्याल व चारापत्ती के वृक्ष थे! बाद में सर्वे के दौरान यह क्षेत्र उन्हीं के नाम से जाना गया सिर्फ अंतर इतना आया कि नाम अपभ्रंश हुआ बोथर बुधेर हो गया और मिओला मोइला हो गया! जिनके नाम से बुधेर गुफा (बोथर केव), व मोइला टिम्मा या मोइला टॉप प्रसिद्ध हुआ. कहा तो ये भी जाता है कि मोइला या मिओला एक लेडी थी व बोथर उसका प्रेमी! लेकिन यह कहाँ तक सत्य है इसकी अभी भी पड़ताल होनी आवश्यक है, इनकी प्रेम गाथा के सुर आज भी परियों की तरह हवा में बहते सुनाई देते हैं. जिसे हम मन का बहम समझते हैं. मोइला टिम्मा के नाम से प्रसिद्ध खूबसूरत बुग्याल जोकि बंगले से 3.5 किमी. दूरी पर है में बना एक मंदिर नुम्माघर इन्हीं का बताया जाता है जबकि इसे लोग मोइला = महासू से भी जोड़ते हैं. कई इसे शिब मंदिर भी कहते हैं जो तर्क सही नहीं लगते. हां यह शिलगुर, आंछरी मंदिर जरुर कहा जा सकता है. यहाँ आज भी पुराने मृद भांड मिलते हैं व जंगली जीवों के आखेट के बाद उनकी सीन्घें दरवाजे की लकड़ियों पर टंगे हुए. बहरहाल मोइला टॉप के से मंदिरनुमा घर जिसे हम मंदिर समझकर नमन करते हैं में कोई भी देवमूर्ति नहीं है. हाँ पहरेदार के रूप में एक लकड़ी की मूर्ती जरुर निर्मित दिखाई देती है जिसका काल पुरातत्व विभाग के पुरातत्ववैता ही बता पायेंगे. इस मूर्ती को लोग इस मंदिर का द्वारपाल मानते हैं. मोइला टिम्मा से लगभग आधा किमी. दूरी पर एक गुफा है जिसे बुधेर गुफा कहते हैं. जन मानस के इस गुफा से सम्बन्धित दो मत हैं जिनमें एक यह कि यह लाक्षागृह (लाखामंडल) से पांडवों को निकालने वाली सुरंग है तो कोई कहता है यह बुधेर ने ढूंढी है जो कनासर देवता का द्वारपाल था. और उसी ने इसे बनाया है ताकि महाभारत काल के पांडव यहाँ से सुरक्षित निकल पाएं. यह गुफा किस काल में बनी और कैसे बनी लेकिन इसका इतिहास अस्पष्ट है फिर भी इस रहस्यमयी गुफा में कई बार कई लोग खजाने की तलाश में लगभग 20 किमी तक गए हैं. बन विभाग के पास इसके परिणाम के तौर पर आज भी ब्रिटिश काल के वे लम्बे-लम्बे रस्से मौजूद हैं जिनके सहारे ब्रिटिश कई मील इसमें घुसे हैं. उनका मानना है कि लगभग 3 किमी. के बाद इसका रास्ता गहराई में उतरता है इसलिए कोई इसमें आगे बढ़ने का रिस्क नहीं लेता. आम धारणा को आधार मानकर अगर बात की जाय तो यह गुफा लगभग 150 से 200 किमी. लम्बी है. अब जिसका आदि न अंत हो उसके मानक कुछ भी तय किये जा सकते हैं कोई इसे द्वापर युग की सुरंग से जोड़कर यमुना या तमसा नदी में उतरने का मार्ग कहते हैं तो कोई इसे ऐसा छेड़ जो पहाड़ी ताल के पानी की निकासी का काम करता है जो सत्य प्रतीत नहीं होता. पास ही मोइला टॉप के बुग्याल में एक छोटा सा ताल नही है जिसे मोइला ताल के नाम से ही पुकारा जाता है. इसमें बिशेषत: सर्दियों में बर्फ़ जमीं रहती है और गर्मियों में इसका पानी वन्य जीव जंतु व भेड़ बकरियां तथा गुजरों की भैंसों के काम आता है. लगभग 2523 मीटर की उंचाई पर स्थित मोइला टॉप के हरित बुग्यालों में सर्दियों में जमकर बर्फ़ पड़ती हैं. एक अनुमान के आधार पर यहाँ 7-8 फिट बर्फ़ पड़ती है. जो कई महीनों तक नहीं पिघलती. जून-जुलाई में जब आप इन बुग्यालों की सैर पर निकले और आनायास ही आपके कानों में पास से हवा के साथ तैरती हंसी सुनाई दे, बांसुरी सुनाई दे या सरसराहट सुनाई दे या फिर आहट महसूस हो तो समझिएगा या तो परियां आपके करीब से विचरण कर रही हैं या फिर मोइला और बुधेर की आत्मा या फिर देवगण ? आप श्रधा से नमन करें आपके मनोरथ जरुर हल होंगे.
*मनोज इष्टवालCopyright: Youth icon Yi National Media, 17.08.2016
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मनोज इष्टवाल जी आपका कथन रोचक पूर्ण है।