Deadly Race : गुड बॉय, बाय करके चला गया ! आखिर कब तक थमेगी यह जानलेवा दौड़ …?
दृश्य एक : भोपाल के जवाहर लाल नेहरू विद्यालय में दसवीं परीक्षा का रिजल्ट खुला है। अधिकतर बच्चे अच्छे नंबरों से पास हुये हैं इसलिये वो सारे चहक रहे हैं। मगर एक रिजल्ट जानने की उत्सुकता सभी में थी वो था आयुष का। मगर ये क्या आयुष परिहार बहुत अच्छे नंबरों से पास हुआ था उसे दस में से नौ सीजीपीए मिले थे। दुख इस बात का था कि आयुष अपना रिजल्ट जानने यहां नहीं था।आयुष रिजल्ट आने से चार दिन पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुका था। उसके दोस्त धीमे स्वरों में एक दूसरे से उसका रिजल्ट पूछते और जानते ही सिर पकड कर बैठ जाते। उनके रिजल्ट की खुषी काफूर हो जाती और उनका चेहरा यही कहता कि आयुष ये तूने क्या किया।
दृश्य दो : पिपलानी के डी सेक्टर में वीरेंद्र सिंह परिहार का क्वार्टर। यही रहता था आयुष घर के बाहर छोटी मोटी भीड जमी है। जिसमें आयुष के दोस्त के साथ ही कुछ पारिवारिक मित्र हैं। सब चुप और गमगीन हैं बस इस सन्नाटे में अंदर से आयुष की मां प्रतिभा सिंह की रोने की आवाज कलेजे को चीर सी जाती हैं। कोई आयुष को बता दे वो पास हो गया। आयुष बेटा ये तूने क्या किया। आयुष की मां अपने बेटे की तस्वीर हाथ में थाम कर आंखों में आंसू भरकर सुबक रहीं है। कह रहीं हैं इस पास फेल की दौड ने मेरा बेटा मुझसे छीन लिया।
दृश्य तीन : फेसबुक के पन्ने रंगे पडे हैं। मेरे बेटे ने दसवीं की परीक्षा में दस में से दस सीजीपीए हासिल किये हैं आप आशीर्वाद दीजिये। मेरी बेटी ने दस में से नौ दशमलव नौ अंक पाये हैं। कमाल कर दिया है उसने। कहीं मम्मी पापा के साथ बच्चों की मिठाई खाते की तस्वीर है तो कहीं खुशी से चहकते हुये बच्चे की फोटो हैं। यानिकी खुशियाँ ही खुशियाँ बिखरी पडी हैं फेसबुक के पन्ने पर। मगर ये खुशियाँ उन्हीं के परिजनों ने बांटी हैं जिनके बच्चों को दस या फिर नौ सीजीपीए मिले हैं। बाकी के बच्चों के परिजन शायद फेसबुक पर अपने बच्चों को खुशियाँ शेयर करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। दस में से दस नंबरों का आतंक ही इस कदर है।
सच है नंबरों के इस आतंक ने ही आयुष की जान ले ली। दरअसल आयुष अपने स्कूल और क्लास का होनहार छात्र था मगर रिजल्ट आने के चार दिन पहले ही उसे नंबरों का आतंक सताने लगा। उसे फेल होने का डर लगने लगा था। जैसे जैसे रिजल्ट की तारीख करीब आ रही थी वो अपने दोस्तों से भी चुप चुप रहने लगा था। कुछ दिन पहले उसकी दादी नहीं रहीं थीं वो अपनी दादी से भी गहरे से जुडा था। घर के लोग
आयुष के इस बदलाव को देख तो रहे थे मगर वो इसे दादी की मौत से जोडकर रहे थे वो नहीं समझ पाये कि आयुष के अंदर क्या चल रहा है। आयुष घबडा रहा था। उसे लग रहा था कि इस बार वो अच्छे नंबर नहीं ला पायेगा। जबकि वो अपने स्कूल और क्लास का अच्छा छात्र था। कक्षा के टाप टेन में उसकी गिनती होती थी। वो सोचने लगा था कि अच्छे नंबर नहीं आयेगे तो वो क्या मुंह दिखायेगा अपने माता पिता और स्कूल के शिक्षकों को जिन्होने उससे खूब मेहनत कर अच्छे नंबर लाने को कहकर जाने अंजाने में उसपर बहुत सारा दबाव बना दिया था। उसे अपने कोचिंग जाने वाले दोस्तों से भी डर लगने लगा था जो बहुत अच्छे नंबर लाने का दावा करने लगे थे। दादी के निधन के चलते वो कुछ दिन कोचिंग नहीं जा पाया था।आयुष ने खुदकुशी अचानक ही नहीं की। उसके लिये उसने बहुत मन बनाया जब वो सब जगह से हार गया तो उसने मौत को गले लगाने का गलत कदम उठाया। मौत से पहले लिखे सुसाइड लेटर में उसने ये लिखा है कि माना कि मैं गलत हूं। मगर मैं अपनी असफलताओं से थक चुका हूं। हो सकता हैं मैं पढाई में अच्छा हूं मगर मेरे फाइनल एक्जाम डरावने बीते हैं। मैं इसे और आगे नहीं ले जा सकता। जानता हूं मैं एक अच्छा बच्चा नहीं बन पाया। आई लव यू माम डैड। मेरे जाने के बाद नहीं रोना मैं किसी भी तरह अच्छा नहीं हूं। गुड बाय
मगर कोई गुड ब्वाय इस तरीके से गुड बाय नहीं कहता। इस तरह से चार लाइन की चिटठी लिखकर कोई चला जाता है क्या। आयुष तुम ये क्यों भूल गये कि तुम अच्छे छात्र थे। तुमने परीक्षा के लिये अच्छी मेहनत भी की थी। फिर क्यों तुमको अपने पर अपनी पढाई पर भरोसा नहीं रहा। हिंदी के पेपर में कम नंबर आने का तुमको डर था। मगर बाकी विषयों पर तुम्हारी अच्छी पकड थी। क्यों तुम इतने जल्दी घबडा गये। घर और स्कूल में सभी तुमको इतना प्यार करते थे। कुछ नंबर कम आ जाते तो भला क्या हो जाता। और हां आयुष ये एक्जाम कोई तुम्हारा आखिरी एक्जाम भी तो नहीं था। ये हम तुम्हें नहीं बता पाये। तुमको नहीं बता सके कि पेपर बिगडने से जिंदगी नहीं खराब हो जाती। दसवीं की परीक्षा भला होती क्या है। तुम तो जिंदगी में दूसरी बडी परीक्षाओं के लिये बने थे। भला इतनी सी परीक्षा से घबडा गये। आमतौर पर दुनिया में आत्महत्या की दर किशोरों में ही ज्यादा होती है। ये कच्चा मन कब क्या कर बैठे कोई समझ नहीं सकता। मगर हम अपने बच्चों से ज्यादा उम्मीदें करने लगते हैं। ये उम्मीद हम छिपाते भी नहीं है। जाने अंजाने में हम उनके सामने ये उम्मीदें पेश भी करते हैं जो उन पर दबाव का कारण बनती हैं। दस नंबर की दौड में नौ नंबर भी हमें बर्दाष्त नहीं होते। क्योंकि दस में दस आने पर ही तो सोशल मीडिया की सुर्खी बनेगी। हमारा दोहरापन भी देखिये। जब अपने बच्चे के नंबर कम आते हैं तो इस नंबर के सिस्टम को कोसते हैं मगर जैसे ही दस में दस या नौ नंबर आते हैं हम झूमकर फेसबुक पर आ धमकते हैं खुशियां छलकाते हुये बिना ये जाने के ढेर सारे अभिभावकों के बच्चे अच्छे नंबर नहीं ला पाये होंगे। आयुष का ये दर्द भरा किस्सा बता रहा है कि कैसे हम अपने बच्चों में उनके खुद को लेकर, परिवार और स्कूल को लेकर भरोसा नहीं जगा पा रहे। आयुष सरीखे होनहार की मौत बहुत सारे सवाल हमारे स्वयं के, समाज के और शिक्षा व्यवस्था के सामने छोड गयी है। मन बेहद दुखी है और दिल से यही आवाज आ रही है तुम्हारे अच्छे रिजल्ट की मिठाई किसे खिलायें आयुष ।
*ब्रजेश राजपूत
Copyright: Youth icon Yi National Media, 05.06.2016
यदि आपके पास भी है कोई खास खबर तो, हम तक भिजवाएं । मेल आई. डी. है – shashibhushan.maithani@gmail.com मोबाइल नंबर – 7060214681 , और आप हमें यूथ आइकॉन के फेसबुक पेज पर भी फॉलो का सकते हैं । हमारा फेसबुक पेज लिंक है – https://www.facebook.com/YOUTH-ICON-Yi-National-Award-167038483378621/
हर गल्ती की सजा भुगतनी ही होती है और सजा अगली पिछली पीढ़ी को ही मिलती है
अब चेतना ये लानी है की बच्चे मार्क्स और परसेंटेज के बोझ से न दबे
माता पिता को समझना होगा की सर्वांगिक विकास बच्चे का कैसे हो ।क्योकि जरूरी नहीं है की बहुत पढ़े लोगो ने ही नाम कमाया हो नजाने कितनी शख्शियत है और कितने साइंटिस्ट जो बिना डिग्री अमर होगये
चिंतनीय विषय है सभी को सोचना होगा