Disaster Uttrakhand 2nd Part : हेलीकाप्टर से शुरू हुआ सफ़र प्लेन मे खत्म हुआ ।
हैलीकाप्टर से कौन जाये और कौन बद्रीनाथ में रूके हम चारों यानिकी मैं, मनोज, संजय और होमेंद्र बडे असमंजस में आ फंसे थे। आमतौर पर ऐसी सिचुयेशन फिल्मों में ही देखी है। मुझे फिल्म काला पत्थर याद आ गयी जब खदान में फंसी लिफ्ट में चार मजदूर बैठते हैं मगर तीन को ही लिफ्ट ले जा सकती है ऐसे में मैक मोहन ताश के पत्ते फेंटते हैं और उनके पास ही बादशाह नहीं निकलता। हमेशा ताश की बाजी जीतने वाले मैक मोहन ये बाजी हारकर खदान में रूक जाते हैं। यहंा पर हमारे कैमरामेन होमेंद्र ने ही बडा दिल दिखाया और कहा सर आप सब जाइये, फुटेज भेजिये हम यहां पर रूक जाते हैं। भारी मन से हम देहरादून उड चले। हवाई अडडे पर ही हमारे चैनल के अंकित गुप्ता ओबी वैन के साथ मिल गये और बद्रीनाथ से हमारी लायीं स्टोरी सीधे ओबी से भेजीं जा रहीं थीं जो आन एयर प्रसारित हो रहीं थीं।
आमतौर पर आने वाले परिवार आधे अधूरे ही आ रहे थे। किसी का पति उपर छूट गया था तो किसी की पत्नी बिछड गयी थी। पहाडों पर बाढ के दौरान तीर्थयात्रियों से लूट पाट की खबरें भी डरा रहीं थीं। राहत के काम में कहीं मौसम साथ नहीं दे रहा था तो कहीं संसाधनों की भी कमी थी। पहाड से आने वाली खबरें और रोंगटे खडे कर रहीं थीं। बताया जा रहा था कि 16 जून की बारिश में केदारनाथ में भारी भूस्खलन हुआ है जिसमें उस दिन केदारनाथ से नीचे उतरने वाले और उपर चढने वाले हजारों तीर्थयात्री दबे पडे हैं। पहाड पर लगातार हो रही बारिश और कडाके की ठंड भी राहत के काम में बाधा बन रही थी। ऐसे में सेना का एक बडा हैलीकाप्टर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से भी राहत के काम में लगे लोगों का हौसला टूटा। एक दिन और हमारा हैलीकाप्टर होमेंद्र को लेने उडा मगर सेना ने कुछ दूसरे जरूरतमंद लोग बैठाकर वापस कर दिया। हमारा दफ्तर भी अब होमेंद्र को लेकर चिंतित होने लगा था। दो रात रूकने के बाद होमेंद्र का हौसला भी जबाव देने लगा था। उसके एसएमएस अब निराशा में डूबे होते थे। ऐसे में तीसरे दिन होमेंद्र जब बहुत सारा पैदल चलने के बाद हैलीकाप्टर से वापस आया तो हमारी जान मे जान आयी। अपना कोई बिछडता या आपदा में फंसता है तो कैसा लगता है होमेंद्र की घटना ने ये अहसास हम सभी को करा दिया।
आपदा में फंसे अपने लोगों को निकालने हैलीकाप्टर लेकर पहुंचे विधायक संजय पाठक के चर्चे अब देहरादून के अखबारों में होने लगे थे। उसके प्रयासों पर स्टोरी छपने लगीं थीं। उधर दूसरे राज्यों के हैलीकाप्टर और विमानों ने भी अपने लोगों को वापस ले जाने के लिये उत्तराखंड में डेरा डाल दिया था। गुजरात, छत्तीसगढ, आंध्रप्रदेश के साथ साथ एमपी सरकार ने भी तत्कालीन कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की डयूटी लगा दी थी इस आपदा में फंसे लोगों तक सुरक्षित वापसी के लिये। शर्मा जी प्रदेश के अफसरों के साथ हरिद्वार में डेरा डालकर बैठ गये थे। दो बार सीएम शिवराज भी आकर चले गये थे। उत्तराखंड के राज्यपाल उन दिनों अजीज कुरैशी थे। भोपाल के रहने वाले अजीज कुरैशी से हम मिलने पहुंचे तो उन्होंने भेंट के दौरान एक पत्र बताया जिसमें उन्होंने चार धाम यात्रा में होने वाली लापरवाहियों की ओर सरकार का ध्यान बहुत पहले खींचा था और कभी भी ऐसा हादसा होने की चेतावनी दी थी। ये पत्र मिलते ही हमने राज्य सरकार की ख्ंिाचाई करते हुये खबर दिखायी। अब हमें सीएम विजय बहुगुणा के लोग तलाशने लगे थे। इस बीच में हमारे चैनल के कुछ दूसरे रिपोर्टर भी आ गये थे जो पहाड पर जाने के लिये नये नये रास्ते तलाशने लगे थे। मगर रास्ता बंद होने के कारण पहाडों पर चढना बेहद कठिन हो रहा था। ऐसे में हमने बजाये उपर जाने के देहरादून शहर में होने वाली गतिविधियों तक अपने
को सीमित कर लिया। आपदा में मदद के लिये देश भर से सामान आने लगा था। खाने पीने और राशन के सामान के टक रातोंरात चले आ रहे थे ऐसे में उनको रखना और प्रभावितों तक राहत सामग्री कैसे पहुंचाये ये बडी समस्या आन पडी थी। राहत सामग्री की दुदर्शा की कहानियां की गयीं। देश भर से अपने परिजनों को तलाशने लोग अब आने लगे थे। किसी के हाथ में अपने खोये लोगों की पासपोर्ट फोटो थी तो कोई कमरे में लगी तस्वीरें ही उठा लाये थे। हर आदमी एक कहानी था। दुख दर्द से भरा। खोये हुये लोगों की जानकारियां जुटाने के लिये देहरादून में कंटोल रूम खोला गया। जहां पूरे वक्त भीड रही आती थीं। कोई अपने खोये साथी की जानकारी चाहता था तो कोई अपने परिजन का मृत्यू प्रमाणपत्र। आपदा बडी भीषण थी। सरकार ने पांच हजार लोगों के मारे जाने या लापता हो जाने की पुष्टि कर दी थी। अब तक हमें भी एक हफता हो गया था देहरादून आये। बिछडे हुओं की दुख दर्द की कहानियां अब हमें बहुत आकर्षित नहीं कर रहीं थीं। सब कुछ एक जैसा लगने लगा था। विधायक संजय पाठक भी अपने लोगों को पहाड से निकाल कर वापस चले गये थे। मनोज मुकेश और होमेंद्र भी भोपाल वापस लौट गये थे। करीब पंद्रह दिन बाद अब हम भी एमपी सरकार के उस चार्टड फलाइट में सवार थे जिसमें आपदा में फंसे लोगों को भोपाल तक वापस ले जाया जा रहा था। गंगा मैय्या के जयकारे के साथ जब देहरादून के जौली ग्रांट हवाई अडडे से विमान भोपाल को उडा तो वापस लौटने की खुशी तो हमें भी हुयी मगर विमान में अधिकतर लोग ऐसे सवार थे जो अपनों को खो कर अपने घर लौटते हुये सुबक रहे थे। छोटे हैलीकाप्टर से शुरू हुआ सफर जेट के चार्टड विमान में खत्म हुआ मगर बहुत सारी ऐसी यादें दे गया जो कभी भुलाये नहीं भूलतीं। पत्रकारिता में रोमांच के चलते अपने को मुश्किल में डालने का ये अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था।
*ब्रजेश राजपूत
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