मेरे दूध का कर्ज़ मेरे ही खून से चुकाते हो …. हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो…
मेरे दूध का कर्ज़ मेरे ही खून से चुकाते हो
कुछ इस तरह तुम अपना पौरुष दिखाते हो
दूध पीकर मेरा तुम इस दूध को ही लजाते हो
वाह रे पौरुष तेरा तुम खुद को पुरुष कहाते हो
हर वक्त मेरे सीने पर नज़र तुम जमाते हो
इस सीने में छुपी ममता क्यों देख नहीं पाते हो
इक औरत ने जन्मा ,पाला -पोसा है तुम्हें
बड़े होकर ये बात क्यों भूल जाते हो
तेरे हर एक आँसू पर हज़ार खुशियाँ कुर्बान कर देती हूँ मैं
क्यों तुम मेरे हजार आँसू भी नहीं देख पाते हो
हवस की खातिर आदमी होकर क्यों नर पिशाच बन जाते हो
हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो
हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो…
आज फेसबुक के माध्यम से ही एक चित्र देखने को मिला पता नहीं किसका था ?
पर चित्र देखकर खुद को रोक नहीं पाई सोचने से । मन में भाव आ रहे थे पर इस चित्र ने इतना अधिक विचलित कर दिया था कि उन्हें शब्द रूप नहीं दे पा रही थी मैं अब जाकर कुछ टूटे -फूटे शब्द लिख पाई हूँ जिनका भी बनाया हुआ ये चित्र है उनकी अनुमति के बिना इस चित्र को प्रयोग कर रही हूँ ।
इस रचना में पर बिना इस चित्र के ये रचना अधूरी है ।
साभार : श्वेता झा, मसहूर टीवी एंकर / पत्रकार, की फेसबुक वॉल से ।
बहुत ही सटीक लिखा आपने
काश की हर नजर उठे एक श्रद्धा और विश्वास से
फिर देखे सुनहरा संसार ये
हर रिश्ता निभाती मैं
जीवन पर्यंत तुम्हे पूजती हूँ
कभी पिता कभी भाई के रूप में
फिर मिलते हो तुम मुझे
जीवनसाथी के रूप में
और फिर मैं जीवन देती हूं तुम्हे
अपनी रक्त मज्जा और
आती जाती सांसो से
और अचानक से कोई
रौंद दे भावनाएं मेरी
मेरे ही द्वारा रचित कृति तोड़ दे
मेरे मंदिर रूपी शरीर को
और मैं कर्तव्यविमूढ़ सी
तकु खाली मकान को
क्योकि रूह मर गई मेरी
तेरे किये काम से
निशागुप्ता @कॉपीराइट