Double dose of Trekking and Paraglyding – Shiwani Gusain, डर के आगे है जीत….!
*Shivani these mountains Addict.
*Mountnering contribution in the field of adventure Shivani Gusain have been awarded the National Award Yi youth icon.
यूथ आइकाॅन स्पेशल में आज मेरे साथ है उत्तराखंड की एक ऐसी बेटी जिसने साहसिक खेलों को राज्य में एक नई पहचान दी और तमाम प्रतियोगिताओं में राज्य का नाम रोशन किया, जिसकी बदौलत उसका नाम लिम्काबुक के रिकार्ड में दर्ज हुआ । मैं बात कर रहा हूं पैराग्लाइडिंग और ट्रैकिंग दीवानी शिवानी गुंसाई की। राजनीतिक परिवार से ताल्लुख रखने के बावजूद शिवानी को राजनीति बिल्कुल भी पंसद नहीं है, बचपन से ही उसकी रूचि साहसिक खेलों में थी । महज 13 साल की उम्र में शुरू हुआ शिवानी का ट्रैकिंग का सफर बिना रूके बदस्तूर जारी है। आज वह उत्तराखंड ही नही बल्कि देश के हर युवा की रोल माॅडल बन गंई हैं। क्या है शिवानी का फ्यूचर प्लान ? राजनीति से क्यों है शिवानी को परहेज ? ऐसे ही कई सवालों के जवाब दिए मेरे साथ यूथ आइकाॅन स्पेशल में यूथ आइकॉन Yi नेशनल अवर्डी शिवानी गुसाईं ने ।
माउंटनेरिंग एडवेंचर के क्षेत्र में अहम योगदान देने वाली शिवानी गुसाईं हो चुकी हैं सम्मानित यूथ आइकॉन Yi नेशनल अवार्ड से ।
इस क्षेत्र में कम उम्र में ही शिवानी के अभूतपूर्व काम की वजह से उनका नाम लिम्काबुक ऑफ़ रिकार्ड में भी दर्ज हुआ है । पैराग्लाईडिंग एवं ट्रैकिंग के क्षेत्र में शिवानी को महारत हासिल है । केदारनाथ आपदा के बाद शिवानी ने कपाट बन्द होने के उपरांत 50 युवाओं के ग्रुप को केदारनाथ की बर्फीली चोटियों पर ट्रैकिंग पर ले जाकर देशभर में सुर्खियां बटोरी थी और तब केदारधाम के प्रति देश और दुनियाँ के लोगों को यह सन्देश दिया कि देवभूमि उत्तराखंड का मुकुट केदार हिमालय क्षेत्र पूर्णतः सुरक्षित भी है ।
तब शिवानी ने प्रदेश की इस महान धरोहर के संरक्षण, संवर्धन हेतु अपनी विधा से प्रचार – प्रसार कर देश और दुनियां के लोगों को वापस केदारधाम की ओर लाने में अहम भूमिका भी निभाई थी ।
आज शिवानी हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा की श्रोत बन गई हैं और इन्ही खूबियों के चलते शिवानी को 21 फरवरी 2016 को यूथ आइकॉन नेशनल अवार्ड से सम्मानित भी किया गया ।
यूथ आइकॉन स्पेशल में आगे पढ़िए शिवानी गुसाईं के साथ की गई बातचीत के कुछ मुख्य अंश
Yi शशि पारस: आपका मिशन किस तरह का है और कब से इस काम को कर रही हो ?
शिवानी गुसाईं: देखिए मुझे ट्रैकिंग करते हुए काॅफी टाइम हो गया। मै जब 8वीं पढ़ रही थी तब से ट्रैकिंग कर रहीं हूॅं।
Yi शशि पारस: ऐसा कब मन में ख्याल आया कि मुझे इस ट्रैकिग वाली लाईन पर चलना हैं। कौन सी क्लास में थी, जब शुरूआत हुई?
शिवानी गुसाईं: जब मैं 13 साल की थी तब पौडी जनपद के बुआखाल क्षेत्र में पैराग्लाइडिंग का शिविर लगा था। वहां पर एनसीसी,स्काउट गाइड,और ऐसी ही जितनी स्वंयसेवी संस्थाएं थी, उनके लिए कार्यक्रम रखा गया था, तो मै उस समय अपने स्कूल से स्काउट गाइड में थी। मेरा भी उसमें सलेक्शन हो गया। लेकिन उसमें एक कंडिशन आ रही थी कि जो हमारे इन्सट्रक्टर थे उन्हांने कहा कि आप अडंरवेट हो आप नहीं कर सकते हो। बस ये था कि मुझे करना है, तो करना है क्योकि मेरे लिए वो एक नई सी चीज थी कि पैराग्लाइंडिग होती क्या हैं। और मुझे ये करना है तब मुझे ये भी नही मालूम था कि हवा में उड़ना है और उपर से नीचे आना है। इसी चीज को देखते हुए मेरा मेडिकल ट्रिªटमेंट हुआ तो उसमे डाॅक्टर ने कहा की इनका विल पावर ठीक है, बीपी वीपी सब ठीक है। तब मुझे एक शर्त पर ले जाया गया कि पहले हम आपकी ग्राउडं ट्रैनिगं करवाएगें अगर कर लिया तो ठीक नही कर पाई तो आपको वापस भेज दिया जाएगा,तब में महज 8 वीं क्लास में थी।
Yi शशि पारस: इसके बाद का सफर कैसा रहा आपका?
शिवानी गुसाईं: इसके बाद मैने एक के बाद एडवेंचर किये। कभी राफॅटिंग किया , कभी स्कींइग कर लिया। 2009 के जो स्कीइगं गेम्स हुए थे उस समय भी मैने दो तीन महीने वहां लगाए। लेकिन चूॅंकि वो इटंरनेशनल गेम था और शायद हमारी तैयारी अच्छी ना होने के कारण हम स्टेट लेवल मे ही बाहर हो गए।
Yi शशि पारस: शुरूआत में जब आप छोटी थीं तो क्या कभी ऐसा हुआ की जब घर से बाहर कहीं टैªकिगं, पैराग्लाइंडिग में जाना हो तो परिवार वालों ने बाहर भेजने में मना किया हो?
शिवानी गुसाईं: जी हाॅं कभी कभी होता था ।जब मुझे कहीं किसी ट्रिप पर जाना होता था तो मेरी माॅं यही कहती थीं कि सोच लो ,देख लो, क्या करोगी ये करके लेकिन बस मेरे अंदर एक जुनून था कि मुझे यही करना है तो फिर उसके बाद मेरे परिवार वाले मुझे खुद सर्पोट करना शुरू कर देते थे। मेरी सफलता के पीछे मेरा परिवार है।
Yi शशि पारस: इस फिल्ड मंे जब से गई तो कुछ ऐसा महसूस हुआ कि मैं एक लडकी हूं या कभी कुछ गलत होते हुए देखा। मतलब लडकी होने का कुछ नुकसान हुआ?
शिवानी गुसाईं: नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि लड़की होने का मुझे गर्व है कि हर आदमी के अंदर चाहे लडकी हो या लडका अगर उसमे कुछ करने का जज्बा है और उसे वो काम करना है तो फिर ये बात मायने नही रखती ।मुझे करना है वाली बात में व्यक्ति कुछ भी कर जाता है। समाज में इनसिक्यिोरिटी दिखती है लेकिन उस इनसिकियोरिटी को भी पार कर जाना वही हमारे लिए बहुत बडी चुनौती हो जाती है।
Yi शशि पारस: मतलब आप यह कहना चाहती हैं कि लडकी अबला ना बने।
शिवानी गुसाईं: जी बिल्कुल। अगर किसी के भी दिल में कोई काम करने की चाहत है तो वह उसे जरूर करें। मतलब अपने मन की बातों को मन में ना दबाऐं।
Yi शशि पारस: मतलब अब इस जुमले बाजी से नहीं चलेगा कि लडका-लडकी एक समान। बल्कि लड़कीयों को खुद आगे आ करके एक पहल करनी होगी और उनको खुद करके दिखाना होगा?
शिवानी गुसाईं: जी बिल्कुल मैं तो इन सब चीजों को कमजोरी मानती हूॅं। हमारी जो भी कमजोरियां होती हैं उन्हें हमें अपनी ताकत बनाना चाहिए। आज लड़कियां हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रहीं हैं। आज वह किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।
Yi शशि पारस: इसके अलावा अभी तक आपने कितने टैªक किए हैं ।
शिवानी गुसाईं: केदारनाथ टैªक तो मेरा लगातार चलता रहता है। इसके अलावा मैने और काफी टैªक किए हैं, जैसे नंदा राजजात वाला कर लिया है। कुमांउ में भी काफी कर लिए हैं, मतलब सिलसिला जारी है।
Yi शशि पारस: जगंलो में आपको कितने दिन बिताने पड़ते हंै। क्या साथ मे गाईड लेकर चलती हंै ?
शिवानी गुसाईं: हम दो से तीन दिन बिताते हैं इससे ज्यादा नहीं। हम गाईड नहीं रखते बल्कि वहीें के लोकल लोगों को रखते हैं। मैं अपना पूरा मेप डिजाईन करती हॅॅॅू कि कैसे जाना है किधर से जाना हैं और मेरे साथ कितने लोग होगें। मैं वहीं के लोकल लोगों से हेल्प लेती हूॅं। खाना बनाने वाले भी लोकल ही होते है। मंै उनके अंदर वो चीज लाना चाहती हूं कि तुम लोग भी इस तरह का काम कर सकते हो। मंै उनको सोचने का एक जरिया देती हूॅं कि तुम भी खुद इस तरह का कर सकते हो और लोगों को बुला सकते हो।
Yi शशि पारस: शिवानी का फ्यूचर प्लान क्या है?
शिवानी गुसाईं: सर फ्यूचर प्लान तो मैं अभी कह नहीं सकती। क्योंकि मैं इसी में आगे आगे बढती जा रही हॅू। मैं यह कोशिश करती हॅंू कि जो मेरे हम उम्र्र है या उम्र से कम वाले हैं मै उनके साथ काम करना चाहती हॅंू और बडों का अनुभव लेना चाहती हॅू। क्यांेकि बिना उनके अनुभवों के में कुछ नही कर सकती ।
Yi शशि पारस: कभी राजनीती मंे आने का भी मन है। एक समय आएगा कि जब थक जाओगी तो राजनीती में आना चाहोगी। क्योंकि आपका बैकग्राउडं भी है, आपकी मम्मी भी राजनीती में है?
शिवानी गुसाईं: नहीं कभी नहीं। राजनीती मंे आना ही नहीं चाहिए क्यांेकि वहां यह है कि आप अपने उदेश्यों से भटक जाते हो और मुझे अपने उदेश्यों से भटकना नहीं है। मुझे इसमे कामयाबी मिले ना मिले लेकिन में राजनीति में नहीं आउगीं।
Yi शशि पारस: उत्तराखड मंे विधानसभा चुनाव का मतदान हो चुका है। यूथ का रूझान किस ओर देखतीं हैं ?
शिवानी गुसाईं: मैं युवाओं से हर चुनाव से पहले अपील करती आई हॅंू कि व्यक्ति विशेष को चुनंे। जिसे उन्होंने देखा है जिसने उनके यहां पर काम किया है। ऐसा नही की किसी किसी पार्टी का लेवल लगा हो, पार्टी लेवल पर ना जाऐं। वो जाएं व्यक्ति विशेष पर जिसका वो नाम बैकग्राउडं जानते हों, जिसको उन्होने फिल्ड मे देखा हो। जो योग्यता रखता हो उसको वोट दंे सबके सब। मैंने ऐसा ही किया है और मुझे उम्मीद है कि युवाओं ने भी ऐसा ही किया होगा।
Yi शशि पारस: इन 16 सालों मंे आपको लगता है कि युवाओं के मन में जो सपने थे वो पूरे हो रहे हैं।
शिवानी गुसाईं: देखिए क्या होता है कि ये सारी की सारी चीजें केवल बोलने तक रहती हैं। आज भी युवा कहता है कि मैं बेरोजगार हूॅं,हमारे यहां पर रोजगार नही है। मुझे मेरी फील्ड चुनने में दिक्कत हो रही है। दरअसल उसको सही डाइरेक्शन नहीं मिल पा रही है।आज के समय मे युवा एक तरह से जंजाल में फॅंस चुका है उसको सामने कुछ नही दिखाई दे रहा है। तो लास्ट में आड़े आती है राजनीति, तो युवा कभी अपना फ्यूचर देख ही नहीं पाता।
Yi शशि पारस: आपके साथ जब ग्रुप जातें हैं तो आप उन्हे किस तरह की दिनचर्या में रखतीं हैं ?
शिवानी गुसाईं: मंै उनको जो दिनचर्या सिखाती हूॅ वो उनकी जो डेली लाईफ है उससे बिल्कुल अलग होती है।मंै उन्हे सुबह पाॅंच बजे उठाती हूॅं ,वार्मअप एक्सरसाइज करवाती हूॅं। जब वो कहते हैं की नहीं मार्निग में नहीं तो मैं बस यही कहती हूॅं कि अगर तुम चार पांच दिन मेरे साथ हो तो मेरे हिसाब से जियो। मैं उनको अपनी तरह लाईफ सरवाईब करवाती हूॅं। उन्हें लगता है कि वाकई लाईफ ये ज्यादा अच्छी है बजाए हम जो आठ बजे उठते हैं।
Yi शशि पारस: टैकिगं में रोजगार के कितने प्रतिशत संभावनाएं हैं, यूथ को आना चाहिए इस ओर?
शिवानी गुसाईं: मंै आपको एक किस्सा बताती हूॅं कि एक बार मंै इदौर, राजस्थान, गुजरात घुमने गई तो वहां पर मुझे हर प्लेस पर गाईड मिल रहा था। आप अगर हिमाचल भी चले जाएं तो आपको वहां भी गाईड मिलेगा।लेकिन हमारे यहां पर आजतक ये चीज डेवलप नही हुई। अगर हमारे यहां का युवा पहले पूरा अपना उत्तराखडं घूमे और यहां की जानकारी ले तो उसको बाहर रोजगार के लिए जाने की जरूरत नही है। वो अपने ही घर मै बैठकर रोजगार पा सकता है। हमारे यहाॅं टूरिज्म की अपार संभावनाऐं हैं।
Yi शशि पारस: आपको क्या लगता है कि साहसिक खेलों को बढावा ना देने लिए राजनेता जिम्मेदार हैं?
शिवानी गुसाईं: जी बिल्कुल। जब तक किसी भी विभाग की ज़िम्मेदारी सक्षम व योग्य नेता (मंत्री) को नहीं दी जाएगी तब तक बेड़ागर्क होता रहेगा । मंत्री बनाए जाते समय उसके प्रोफाइल को देखते हुए उसका विभाग उसे दिया जाना चाहिए। हमेशा राजनीति मंे यही देखा जाता है कि जिसने ज्यादा वक्त ठेकेदारी की उसे शिक्षा विभाग दे दिया जाता है या जो खिलाड़ी रहा हो उसे पीडबल्यूडी जैसा विभाग दे दिया जाता है तो ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगाइएगा कि ऐसे नेता क्या विकास करेंगे जिनकी सोच कुछ और होती है और काम उन्हें कुछ और ही सौंप दिया जाता है । उनका प्रोफाॅइल कुछ और होता है या फिर यह भी कह सकते हैं कि कई बार हमारे ऐसे नेता लोग मंत्री बन जाते हैं जो कम पढे लिखे होते हंै और उन्हे उस फील्ड का ज्ञान भी नही होता है। राजनीति में इस तरह की विषमताऐं नहींे आनी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। हर बार नेताआंे को उनके मनपसंद विभाग या ओहदे बांट दिए जाते हैं।जिससे उस क्षेत्र का विकास नही हो पाता है।
श्री शशी भूषण मेठ़ाणी ‘पारस’ जी शीवानी गौसाई जी को उनके साहसिक कार्यो के लिए बहुत बहुत बधाई साथ ही आपकी सम्पूर्ण टीम को भी ऐसी प्रतिभा की खोज के लिए बहुत बहुत बधाई ,क्योंकि शीवानी गौसाई जैसी प्रतिभाशाली लड़कियाँ ही साधारण लडकियों के लिए प्रेणनास्रौत हैं।
Great job shiwani