Encounter : सुबह जेल ब्रेक, दोपहर को मुठभेड और शाम को विवाद …!
मध्यप्रदेश, आमतौर पर सुबह जल्दी उठने की आदत तो हैं मगर उस दिन तडके ही फोन पर एक घंटी बजी, अधमुंदी आंखों से फोन देखा तो साढे चार बज रहे थे और फोन करने वाले षख्स पुलिस विभाग के बडे अधिकारी थे जो दूर जिले में पदस्थ थे। सोचा अंजाने में फोन बज गया होगा क्यों कोई इतनी सुबह फोन करता है। मगर पत्रकार मन नहीं माना मैंने भी उनको फोन कर ही दिया जो दूसरी तरफ से तुरंत उठा लिया गया। उस तरफ से आवाज आयी बुरी खबर है भोपाल जेल से सिमी के आठ आतंकी जेल प्रहरी की हत्या कर भाग गये। ये खबर सुनते ही मेरी नींद उड गयी। बिस्तर से उठते उठते मैं उनसे ज्यादा बात करने लगा मगर वो जल्दी में थे फोन रख दिया। इधर मेरी हालत खराब थी इतनी बडी खबर क्या करें इतनी सुबह किससे इस खबर की पुप्ठि करें। इस बीच में पुलिस के अपने सारे संपर्काे को फोन लगाया मगर किसी ने भी फोन नहीं उठाया। जेल में पहचान वालों को फोन लगा रहा था तो वहां से भी कोई जबाव नहीं। जेल का फोन भी लगातार बज रहा था मगर नो रिप्लाई। इस बीच में इंटेलीजेंस के अधिकारी से
बात हुयी उसने खबर की पुप्ठि की और भागे आतंकियों की फोटो भेजने का वायदा किया। अब तक मैं दफतर को ये बडी खबर बता चुका था। सुबह सात बजे का बुलेटिन इस पहली बडी खबर से मेरे फोनो के साथ खुला। उधर क्षेत्रीय चैनल अब इस बडी खबर को चलाने लगे थे। अब उठकर घटनास्थल यानिकी जेल भागने की जल्दबाजी थी। जो घर से करीब 20 किलोमीटर दूर था। उस पर मुसीबत ये कि हमारे कैमरामेन और कैमरा पीएम मोदी के रायपुर दौरे को कवर करने रात को ही रवाना हो चुके थे यहां पर मैं अकेला था। भोपाल के सहयोगी दिनेष षुक्ला को फोन किया और कहीं से कैमरा लेकर जल्दी आने को कहा। करीब आठ बजे तक हम जेल के सामने थे। यहां पूरी तरह अफरा तफरी का माहौल था। जेल के अंदर पुलिस की गाडियों का जमावडा था तो बाहर रीजनल चैनल की ओवी वैन और उनके एंटिना तन गये थे। मीडिया के लिये पूरा जेल परिसर में प्रवेष पर पाबंदी लगा दी गयी थी। हर थोडी देर में परिसर का दरवाजा खुलता और बंद होता गाडियां आतीं जातीं और हम अपने पहचान के पुलिस अफसरों से जानकारियां लेते। मैं नये कैमरे और कैमरामेन के साथ जेल परिसर से वाकथू्र भेज रहा था जिसे नेटवर्क की परेषानी के चलते भेजना मुष्किल हो रहा था। ऐसे में काम दिया फोर जी के नये फोन ने। बस फिर क्या था अपने जिओ और एपल के फोन से ही मौके पर वाकथू्र रिकार्ड करना षुरू कर दिया। जो जल्दी जल्दी पहुंचने भी लगा और चैनल पर चलने भी लगा। हमारा चैनल इस खबर पर लीड कर रहा था ऐसे में ज्यादा से ज्यादा आउटपुट की दरकार आ रही थी। जेल से कैदी कैसे भागे इस पर ज्यादा से ज्यादा जानकारियां जुटायीं जा रहीं थीं।
जेल के बाहर खडे हम पत्रकार अपनी जानकारियां बांट रहे थे, खबरें आगे बढा रहे थे यहंा वहां से आ रही कच्ची पक्की खबरों को एक दूसरे से बांट रहे थे। तमाम बातों के बीच हमारे जेहन में यही चल रहा था कि आतंकी कैसे और कहां भागे होंगे। देर से जेल आने वाले पत्रकार दूसरों के लिये नाष्ता चाय भी ला रहे थे। इस बीच में जेल के पास के संजीव नगर में आतंकियों की बर्बरता का षिकार बने प्रहरी रमाषंकर यादव का घर भी था। हमारे कुछ साथी उसके घर होकर आ गये थे। षहीद यादव की फोटो हमें मिल गयी थी। तब तक साढे दस बच चुके इसी बीच में जेल से पुलिस के सषस्त्र जवानों की कुछ गाडियां तेजी से निकलीं। हम सब हैरान हुये लगा कि कहीं कुछ एक्षन चल रहा है जहां ये सैनिक भाग रहे हैं। हम सारे रिपोर्टर अपने अपने संपर्कों को फोन लगाने लगे। तभी उडती उडती खबर मिली कि ईंटखेडी के पास आतंकियों की लोकेषन मिली है। फिर खबर आयी कि आतंकियों ओर पुलिस में मुठभेड हो रही है। इस मुठभेड को लेकर अलग अलग खबरें एक साथ मिल रही थीं एनकाउंटर की जगह कोई अचारपुरा गांव बता रहा था तो कहीं ईंटखेडी तो खेजरादेव गावं का नाम आ रहा था। हमारे सामने दिक्कत आ रही थी कि किस गांव में जायेंं। गाडी तेज भागती जा रही थी और हम फोन पर लगातार गंाव और मुठभेड के बारे में जानकारी ले रहे थे। एक फोन पर संपर्को से बात हो रही थी तो दूसरा फोन से दफतर में लाइव फोनो चल रहा था। अचानक खबर आयी कि आठों मार डाले गये। एक पल को भरोसा नहीं हुआ। इतनी बडी खबर क्या करें। पुप्ठि करने के लिये एक अफसर को फोन लगाया उनका जबाव था बधाई हो आपरेषन फिनिष्ड। बस फिर क्या था मुठभेड की खबर का फोनो देते देते मैंने बता दिया कि आठों आतंकी मार डाले गये हैं। अब तो एंकर ज्यादा से ज्यादा जानकारी चाहता था और मैं अपनी सीमित जानकारी के आधार पर उसकी जिज्ञासा षांत कर रहा था। भागते भागते हम खेजडादेव गांव पहुंच गये थे गांव के बाहर खडी महिलाओं ने हामी भरी कि गांव में बहुत पुलिस आयी है। अब जाकर हमारी जान में जान आयी कि सही गांव में पहुंचे हैं। गांव को पार कर खेतों को लांघकर एक मणिखेडा पहाडी थी जिस पर नीचे गांव वाले तो उपर पुलिस वाले खडे दिख रहे थे। दफतर का फोनो जारी था और हम पहाडी पर हांफते हुये चढ रहे थे। उपर पहाडी पर नजारा हैरान कर देने वाला था। चोटी के किनारे के बडे पत्थर पर आठ लाषें और उनके पास खून फैला हुआ था। भारी पुलिस वहां मौजूद भीड को उस जगह से दूर कर रही थी। भीड में अधिकतर लोग अपने मोबाइल कैमरे से फोटो वीडिया बनाने की कोषिष कर रहे थे। आलम ये था कि पहचान वाले पुलिस अफसर भी हमें कैमरा चलाने से रोक रहे थे। फिर ऐसे में काम आया अपना स्मार्ट फोन। फोन के सामने के कैमरे से ही आतंकियों की लाषें और पहाडी की हलचल दिखाते हुये वाकथू्र किया जो पहाडी पर मिल रहे अच्छे नेटवर्क के चलते जल्दी चला गया और थोडी देर बाद ही ये सारा नजारा हमारे चैनल की स्क्रीन पर था। सबसे पहले। मगर सुबह का जेल ब्रेक दोपहर की मुठभेड कैसे षाम तक विवाद में बदला इस पर अगली बार।
© ब्रजेष राजपूत, एबीपी न्यूज, भोपाल
Youth icon Yi National Media, 13.11.2016
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