उत्तराखंड, आग बुझाये या प्यास ….!
जंगल एक पखवाड़े से जल रहे हैं साथ ही पेयजल के लिए पहाड़ी जिलों में हाहाकार मचा है। किसानों की फसल बर्बाद होने की चिन्ता अब तीसरे पायदान पर है। राज्य सरकार ने चन्द दिन पहले कुछ जिलों को सूखा घोषित किया, आश्चर्य होता है। मतलब सूखे के अलावा जो जिले हैं वहाँ सब ठीकठाक है। उत्तराखण्ड की क्रूर और नालायक नौकरशाही के कामकाज का यह एक भद्दा उदाहरण है। बिना मौका मुआयना किये, बिना आँकलन किये कुछ जिलों को सूखा ग्रस्त घोषित करने का अर्थ है कि सरकार हरकत में है और अफसर मुस्तैदी से काम कर रहे हैं।
वनों की आग ने पर्वतीय जनजीवन को संकट में डाल दिया है। अमूल्य वन सम्पदा धधक कर
जल रही है, वन्यजीव झुलस रहे हैं, मवेशी चारे और पानी के बिना बेहाल हैं, जड़ीबूटियां राख हो चुकी है।अन्न उगाने वाले किसान तो पीड़ित थे ही, सब्जी उत्पादन सूखी नहरों ने लील लिया है, उत्तरकाशी जिले के एकड़ों सेब के बगीचे आग की भेंट चढ़ गए हैं। अन्न, सब्जी, फल, जड़ी-बूटी और चारे के बिना जनजीवन किन हालातों में होगा अंदाजा लगाया जा सकता है।
पहाड़ी सड़कों पर चलना खतरे से खाली नहीं है कब जलते पेड़ और आग की गर्मी से चटके पत्थर यात्रियों को निशाने पर ले लें। अनेक जानें आग बुझाने में जा चुकी हैं, अनेक घायल हैं। ग्रामीणों द्वारा
बच्चों की तरह पाले हुए जंगल आज कोयले और राख के ढेर में तब्दील है। बिजली के तार आग से गलकर टूट रहे हैं। ये बात अलग है देहरादून में बैठे हुक्मरान पहाड़ को आपदाग्रस्त मानने को तैयार नहीं हैं। राजाजी पार्क, कॉर्बेट पार्क, टाइगर रिज़र्व आग के हवाले हैं। संरक्षित वन्यजीव खतरे में हैं।
बिजली, सड़क, पानी व्यवस्था तो चरमरायी थी ही, धुऐं के कारण हर
एक व्यक्ति का स्वास्थ्य भी खतरे में हैं, बच्चे और बुजुर्ग साँस की तकलीफ से गुजर रहे हैं। वनों की आग रोकने की सरकारी इच्छाशक्ति गायब है। अब वनाधिकारियों की छुट्टियाँ रद्द करना साँप के गुजरने के बाद लाठी पीटने जैसा है। आग बुझाने को खरीदे गए करोड़ों के अग्निशमन उपकरण नदारद हैं पूरे प्रदेश में हरी टहनियों से आग बुझाई जा रही है।
अब स्वयं प्रधानमन्त्री कार्यालय ने स्थिति की गम्भीरता को समझा है। एनडीआरएफ, सेना, वायुसेना ने मोर्चा सम्हाला है। मगर देर हो चुकी है, नुकसान हो चुका है , सबक ले लें यही काफी होगा।
Youth icon Yi National Creative Media Report 1.05.2016
उफ् कितना विनाश हो गया! यदि शासन में दम है तो चीफ कंजरवेटर को जेल में डाले।
ये बहुत बड़ा दुर्भाग्य है की जब तक कोई बड़ी दुर्घटना या नुक्सान नही हो जाता तब तक ना तो शासनतंत्र ना ही अधिकारीयों की नींद खुलती है
आखिर इनकी कोई जवाबदेही है या नही।
ये इनका नकारापन ही है जिसके चलते हर छोटी बड़ी घटना के लिए सेना की मदद ली जाती है यदि सेना का ही ये काम है तो इन अधिकारियो की आवशयकता ही क्या है