Foundation Day of Uttrakhand : दोहरी खुशियों का स्थापना वर्ष ..!
राज्य आंदोलन कुछ और था उसके मुद्दे प्राथमिकतायें अलग थीं , पृथक राज्य का मतलब अब यूपी से अलग चुनाव होना, सरकार बनना, विधायक मंत्री बनना भर रह गया है। यूपी के कानून, यूपी की नकल, यूपी की तड़क भड़क की राजनीति। इन सोलह सालों का सच यही है। पहाड़ी गाँव का ग्रामीण नेपथ्य में उपेक्षित है। उसका कोई पैरोकार नहीं। उसकी तकलीफों के समाधान के लिए बने राज्य में उसकी कोई चर्चा नहीं है।
सोलह वर्षों का यह तरुण प्रान्त आगे बढ़ रहा है। पृथक होकर हम उत्तर प्रदेश से बेहतर हालात में हैं। राज्यवासी अपनी पहचान के साथ अपने राज्य के विकास के प्रति चिन्तित हैं। गत सोलह वर्षों के खोया पाया की समीक्षा अपने अपने नजरिये से हो सकती है। अबतक अपने प्रति सौतेले व्यवहार का आरोप हम यूपी पर लगाकर पल्ला झाड़ लेते थे। अब आत्मसमीक्षा का समय है। अगर कुछ पाया तो
अपनों के कारण और खोया तो भी अपनों के कारण।
ये सोलह साल अवसरों के साल थे, हर एक की अपनी भूमिका रही। किसी ने अपने अवसर की बेहतर छाप छोड़ी तो कुछ बेनकाब भी हुए। पर्यटन, व्यापार और जनसुविधा के क्षेत्र में आमूलचूल प्रगति हुई। जो गैरसरकारी पक्ष था तो निःसंदेह आगे बढ़ा किन्तु सरकार और सरकार आधारित तन्त्र उम्मीद नहीं जगा पाया। जनप्रतिनिधि, अफसर, कर्मचारी और सरकारी बिचौलिये खूब पनपे। साथ बने राज्य झारखण्ड छत्तीसगढ़ शायद इस मामले में इतनी प्रगति नहीं कर पाये।
आज का दिन उन शहीदों को और उस मातृ शक्ति को समर्पित है जिनके सर्वोच्च बलिदान पर इस राज्य का संघर्ष अपने मुकाम पर पँहुचा साथ ही हम सब अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए भी कृतज्ञ है जिन्होंने दशकों पुरानी पृथक राज्य की माँग को साकार किया। राजनैतिक दलों के अपने एजेण्डे हैं अपनी निष्ठायें हैं उनके साँचों में स्थानीय मुद्दे नहीं ठूंसे जा सकते बल्कि जिन राजनैतिक दलों ने स्थानीय मुद्दों को आत्मसात किया उन्हैं उसका सियासी फायदा भी मिला।
राज्य आंदोलन के मुद्दे बड़ी चालाकी से गायब कर दिए गए हैं। जल, जंगल, जमीन, पलायन, पर्यावरण, पहचान, रोटी, रोजगार और राजधानी के विषय नदारद हैं। मूल निवास पर चर्चा से सब कतराते हैं। अगर असली रोग के उपचार से बचेंगे तो अन्य विमारियाँ भी बढ़ेंगी। जिस मुद्दे पर लोग सड़कों पर उतरें, शहादत दें और राज्य बनते ही उन सब मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाय समझिये आज नहीं तो कल दबी हुई चिंगारी भड़क सकती है।
राजधानी गैरसैण की माँग आखिर कैसे अनदेखी हो सकती है। कभी राज्य आंदोलन में न दिखने वाले नेता या देहरादून में ड्राइंग रूम में बैठे ज्ञानी आज राजधानी पर तर्क कुतर्क पेश करते है। उत्तराखण्ड मूल का व्यक्ति या तो हाशिये पर है या अन्य सियासी लाभ के लिए चुप्पी साधे है। क्या राज्य कुर्सी पर बैठे लोगों की जनविरोधी जिद से चलेगा। इसी तरह नैनीताल में उच्च न्यायालय थोपने का निर्णय है। विश्व प्रसिद्ध पर्यटक नगरी में गांव का गरीब अपने हक की पैरोकारी कितनी मजबूती से कर पायेगा।
राज्य आंदोलन कुछ और था उसके मुद्दे प्राथमिकतायें अलग थीं , पृथक राज्य का मतलब अब यूपी से अलग चुनाव होना, सरकार बनना, विधायक मंत्री बनना भर रह गया है। यूपी के कानून, यूपी की नकल, यूपी की तड़क भड़क की राजनीति। इन सोलह सालों का सच यही है। पहाड़ी गाँव का ग्रामीण नेपथ्य में उपेक्षित है। उसका कोई पैरोकार नहीं। उसकी तकलीफों के समाधान के लिए बने राज्य में उसकी कोई चर्चा नहीं है।
बंटवारे के बाद भी टिहरी बांध से मिलने वाला राज्यांश, कालागढ़ बांध, नानकमत्ता जलाशय सहित अनेक जलाशयों, गंगनहर सहित अनेक नहरों, अनेक अतिथि गृहों, हरिद्वार स्थित अलकनन्दा होटल, वीआईपी घाट, सैकड़ों सरकारी भवन आवास और भूखण्डों पर उत्तर प्रदेश बेशर्मी से कब्जा जमाये बैठा है। अभी तक इन मामलों का लम्बित होना राज्य के हुक्मरानों पर अंगुली उठाती है।
बहरहाल हमे धनात्मक सोचना चाहिए, प्रगति की कामना करनी चाहिए, जनता की जागरूकता और चेतना राज्योन्मुखी हो, हुक्मरान दायित्वशील हों और शहीदों के सपनों का राज्य बने यही शुभेच्छा रखनी चाहिये।
इस बार का राज्य स्थापना दिवस विशेष है। 9 नवम्बर 2002 को केवल राज्य के निर्माण पर खुशी से झूम रहा था और आज पूरा देश कालेधन पर कड़े प्रहार पर झूम रहा है।
*सतीश लखेड़ा ,
Copyright: Youth icon Yi National Media, 10.11.2016
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धन्यवाद, संपादक महोदय आपने अपने प्रतिष्ठित पत्र में मेरे आलेख को स्थान दिया।
सतीश लखेड़ा जी बाकि सब बातें तो सत्य है परंतु कौन कौन नेता किस हैसियत का था और आज कितने हजार करोड़ की हैसियत बनगई सबको पता है फिरभी जनता अगर नींद से नहीं जागती तो उत्तराखण्ड के शहीदों की शहादत पर प्रश्नचिन्ह लगजा स्वाभाविक है।
आगे देखते है राज्य के भाग्य का विधाता कोई आता है या सभी तिजोरी भरने वाले इस राज्यके भाग्यमे है
महोदय,
आप थोडा बहुत विकास इन 16 सालों मैं कहाँ देख पा रहे है,, पता नही
राज्य गठन से लेकर अब तक सिर्फ और सिर्फ नेताओ का ही विकास हुआ है जो की बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
दोनों ही पार्टियो की सरकारें इस राज्य को को विकसित करने मैं नाकाम रही है,, और ये कही ना कही प्रदेश की जनता की ही कमी है की वो कोई मजबूत विकल्प नही चुन पा रही है और हर बार निराश होती है।
आपकी लिखी अंतिम पंक्ति से जरूर सहमत हूँ, मोदी जी द्वारा उठाया गया कदम सचमुच ख़ुशी देने वाला है। निःसन्देह।
sir Uttarakhand has turned into pieces ( khand khand) sorry but there’s no role of political parties in devloping this state
It was better when was a part of UP
Nicely written lakhera sir.