जोशीमठ मे छट पूजा की धूम, गांधी मैदान में विशाल जल कुंड बनाकर उसमें लगाई गई भक्तों ने आस्था की डुबकी । जोशीमठ में छट पूजा । joshimath chhat poojaजोशीमठ मे छट पूजा की धूम, गांधी मैदान में विशाल जल कुंड बनाकर उसमें लगाई गई भक्तों ने आस्था की डुबकी । जोशीमठ में छट पूजा । joshimath chhat pooja

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freezing temperature in Joshimath Uttrakhand: Chhat pooja Celebration बर्फीली हवा के बीच छट पूजा की धूम….!

 

* बर्फीली हवा के बीच छट पूजा की धूम  । 
* जोशीमठ के गांधी मैदान में उतरी गंगा । 

जोशीमठ चमोली Yi Media Report,

फोटो : साभार आशीष डिमरी 

जोशीमठ मे छट पूजा की धूम, गांधी मैदान में विशाल जल कुंड बनाकर उसमें लगाई गई भक्तों ने आस्था की डुबकी । 

शशि भूषण मैठाणी "पारस" Shashi Bhushan Maithani Paras संपादक यूथ आइकॉन । Editor Youth icon media Award . Dehradun . Maithana . Chamoli . Joshimath . Gopeshwar .
शशि भूषण मैठाणी “पारस”

समुद्र तल से लगभग 6500 फीट की ऊंचाई पर चारों ओर से गगनचुम्बी उतुंग शिखरों के बीच में स्थित है उत्तराखंड के सीमान्त जनपद चमोली का अंतिम नगर जोशीमठ ।  जहां गर्मियों में भी मौसम सर्दी का ही रहता है । और जब मौसम ही सर्दियों वाला हो तो फिर कहना ही क्या । अक्टूबर से मार्च तक जोशीमठ और उसके आसपास हाड़ मांस कंपा देने वाली जबरदस्त ठण्ड का प्रकोप रहता है । ऐसे में हर कोई ठण्ड से बचने के अनेकों ऊपाय भी तलाशते और जुटाते  हैं ।

परन्तु जब आस्था का पर्व छट पूजा का मौक़ा आया तो आस्थावान लोगों पर इस जबरदस्त ठण्ड का कोई असर नहीं दिखा ।

जोशीमठ मे छट पूजा की धूम, गांधी मैदान में विशाल जल कुंड बनाकर उसमें लगाई गई भक्तों ने आस्था की डुबकी । जोशीमठ में छट पूजा । joshimath chhat pooja
जोशीमठ मे छट पूजा की धूम, गांधी मैदान में विशाल जल कुंड बनाकर उसमें लगाई गई भक्तों ने आस्था की डुबकी ।

दरअसल बिहार सहित पूरे हिन्दुस्तान में आजकल छट पूजा की धूम है । बिहार मूल के लोगों के लिए यह महज एक पर्व मात्र नहीं है. अपितु महापर्व है । छटपर्व की शुरुआत नहाए-खाए से होती है तदुपरांत डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है ।
छट पर्व वर्ष में पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में मनाया जाता है । चैत्र शुक्ल पक्ष में मनाए जाने वाले छठ पर्व को ‘चैती छठ’ और कार्तिक में मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है और यह पर्व दोनों ही मासों के शुक्ल पक्ष के षष्ठी में मनाया जाता है । छट पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है जिसमे महिलाओं के अलावा पुरुष भी शामिल होते हैं ।

सीमान्त क्षेत्र जोशीमठ में छट पूजा की धूम : 

Photo : Youth icon Yi Media

आयोजनकर्ता नंदलाल शाह से मेरी बात हुई तो उन्होंने बताया कि यह भक्ति की शक्ति है । इससे हमे यह भी सीख मिलती है कि यदि आपकी हमारी ईश्वर में सच्ची आस्था है तो तब, हम आप कहीं भी किसी भी विकट परीस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकतें हैं ।

यह भक्ति की शक्ति है । इससे हमे यह भी सीख मिलती है कि यदि आपकी हमारी ईश्वर में सच्ची आस्था है तो तब, हम आप कहीं भी किसी भी विकट परीस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकतें हैं । नंदलाल शाह : आयोजक

आस्था के इस महापर्व की जोरदार रौनक उत्तराखंड के  सीमान्त जनपद जोशीमठ में भी छाई है  । जबरदस्त ठण्ड और बर्फीली हवाओं के बीच शाम से ही बिहार मूल के लोग छटी माई की पूजा सामग्री अपने-अपने सिरों पर रखकर गांधी मैदान में जुटने लगे थे जहां पर इन लोगों ने पहले से ही एक विशाल जलकुण्ड को अस्थाई तौर पर तैयार किया था जिसमे अलकनंदा और धौली गंगा के संगम विष्णुप्रयाग से भी पवित्र जल मिश्रित किया गया था ।

जोशीमठ मे छट पूजा की धूम, गांधी मैदान में विशाल जल कुंड बनाकर उसमें लगाई गई भक्तों ने आस्था की डुबकी । जोशीमठ में छट पूजा । joshimath chhat pooja
फोटो : आशीष डिमरी ।

शाम होते-होते कुण्ड के आसपास आस्थावान बिहारी लोगों की भारी भीड़ जुटने लगी और विधि विधान से पूजा अर्चना भी आरम्भ हुई फिर एक-एक कर महिलाएं और पुरुष गांधी मैदान में स्थित विशाल जल कुण्ड में प्रवेश कर डुबकी लगाने के बाद सूर्यनारायण की आराधना में घंटो तक के लिए बर्फ के समान बेहद ठण्डे पानी में ही खड़े हो गए ।

जिन्हें देख आसपास के सभी लोग अचंभित हो रहे थे कि जहाँ हम लोग कई तरह के गर्म कपड़े इनर , स्वेटर , जैकेट टोपी दस्ताने पहनने के बाद भी जबर्दस्त ठण्ड से काँप रहे थे वहीं इसके उलट ये लोग  मामूली  कपड़ो को शरीर पर लपेट कर इस बर्फीली हवा के बीच आखिर कैंसे जलकुण्ड में डुबकी लगाकर घंटो से एक ही जगह पर पानी में खड़े हैं यह देख सभी चकित हो रहे थे, लेकिन कड़ाके मौसम पर आस्था पूरी तरह से भारी पड़ रही थी ।

यहाँ पर यह पर्व बिहार के लोगों के द्वारा आयोजित किया जाता है । अभी इस जघ पर 5 से 7 डिग्री का तापमान है । हमने आपने इतने मोटे मोटे गरम कपड़े पहने हैं तब भी ठंड से कांप रहे हैं सामने से हिमालय की चोटी से तेज बर्फीली हवा लगातार आ रही है लेकिन उसके बाबजूद ये लोग इस कड़ाके की ठंड के बीच इस कृतिम जल कुंड नहा रहे हैं उसमें डुबकी लगा रहे हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं है । इन सबको छट मईया का विशेष वरदान है ऐसा मुझे लगता है । * रमेश डिमरी, स्थानीय निवासी जोशीमठ

यह पर्व बिहार के लोगों के द्वारा आयोजित किया जाता है । अभी यहां पर 5 से 7 डिग्री का तापमान है । हमने आपने इतने मोटे मोटे गरम कपड़े पहने हैं तब भी ठंड से कांप रहे हैं सामने हिमालय की चोटी से बर्फीली हवा लगातार आ रही है, लेकिन उसके बाबजूद ये लोग इस कड़ाके की ठंड के बीच इस जल कुंड नहा रहे हैं, उसमें डुबकी लगा रहे हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं है । इन सबको छट मईया का विशेष वरदान है ऐसा मुझे लगता है ।
* रमेश डिमरी,
स्थानीय निवासी जोशीमठ

इसी बीच  आयोजनकर्ता नंदलाल शाह ने बताया कि यह भक्ति की शक्ति है । इससे हमे यह भी सीख मिलती है कि यदि आपकी हमारी ईश्वर में सच्ची आस्था है तो तब, हम आप कहीं भी किसी भी विकट परीस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकतें हैं ।

किसी भी समाज के हों छठ पर्व का सम्मान करना चाहिए।

वेद विलास उनियाल , वरिष्ठ पत्रकार । ved vilas uniyal . Youth icon media यूथ आइकॉन मीडिया
वेद विलास उनियाल , वरिष्ठ पत्रकार ।

छठ पर्व एक तरह से प्रकृति का पर्व है। सूर्य अग्नि और जल के प्रति हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति है और प्रकृति को उसकी उदारता धन धान्य के लिए नमन भी है। छठ व्यापक है। सीमाओं में नहीं । छठ की महत्व उसके गहरे प्रतीकों में है। सूर्य प्रकाशवान हों या क्षितिज पर डूब रहा हो उसके हर स्वरूप भाव भंगिमा को हम नमन करते हैं। सिंदूरी बिंदिया की तरह अस्त होता सूरज फिर सुबह सबेरे आता है।

हिंदुस्तान टाइम्स में प्रख्यात लेखिका अऩामिका जी के भावपूर्ण लेख से छठ का प्रभाव, इसकी सुंदरता इससे जुडे प्रसंग और लोकजीवन में इसका वैभव को समझा जा सकता है। पिता के नाम एक पत्र के माध्यम से वह लिखती चली गई हैं और महसूस कराया है कि छठ के समय घर मोहल्ले के बच्चों के साथ उनके साथ घूमने की यादें और बातें ऐसी है जैसे लहरों में दियों का धीरे धीरे से बहना।
छठ पर्व पर बहुत सुंदर गीत बने हैं। शारदा सिन्हाजी की आवाज में एक सम्मोहन है। उनकी आवाज में मधुरता, एक तरह की कसक है। खासकर छठ पर्व के गाए उनके गीत पर्व पर सुनते हैं तो दिव्यता का सा असहास होता है।
यही वह क्षण हैं जब व्यक्ति प्रकृति के आगे नतमस्तक हो जाता है। यह ईश्वरीय आवाज है। उन जैसी गायिका प्रकृति की देन हैं। शारदाजी के गीतों को सुनना चाहिए। इन गीतों की लोक भाषा का भाव सब तक पहुंचता है। उत्तराखंड का फुलदेही चैत के गीत, गुजरात का गरबा की तरह छठ के गीतों मे भी लहक है।
बेशक मनोजजी राजनीति में हों लेकिन इससे हटकर उनके छठ गीतों को सुनना भी एक सुंदर अनुभव है। मालतीजी पूर्णिमा जैसे लोकगायक गायिकाओं ने अपने गीतों से इस चली आ रही परंपरा को महसूस कराया है। उसकी लौकिकता का अहसास कराया है।

बिहारियों की इस महान आस्था व जज्बे को  स्थानीय निवासी  आदर सम्मान सहित सलाम व छटी मइय्या को कोटि – कोटि प्रणाम कर रहे थे  ।

©  शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ ,  

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