Ground Report : साध्वी की जिद्द के
आगे सरकार की न चल सकी …!
*एक साध्वी के सिंहस्थ स्नान की जिद्द या संकल्प…?
मध्य प्रदेश, बहुत दिनों के बाद बुलबुल के साथ घर पर जंगल बुक देखी जा रही थी। फिल्म के शोर शराबे और बुलबुल की खिलखिलाहट के बीच रात में कब फोन बजता रहा सुना नहीं। फिल्म का क्लाइमैक्स चल रहा था कि बजता हुआ फोन देख लिया गया। दफतर से लगातार फोन आ रहा था। खबर थी कि मालेगांव बम धमाके और सुनील जोशी हत्याकांड की आरोपी साध्वी प्रज्ञा भारती को तडके साढे तीन बजे भोपाल से उज्जैन ले जाया जायेगा कुंभ स्नान के लिये। साध्वी विचाराधीन कैदी के रूप में लंबे समय से नेहरू नगर की पहाडियों पर बने खुशीलाल शर्मा आयुर्वेदिक अस्पताल में बंद थीं। बस फिर क्या था फिल्म एक तरफ और शुरू हो गयी भाग दौड। कब जायेंगे कैसे जायेगे। रात के साढे बारह बज रहे थे और गाडी का इंतजाम, कैमरामेन की तैयारी और रात में दफतर खोलने की जिम्मेदारी बांटी जा रही थी। तय हुआ कि पहले जाने के बजाय रात में जब साढे तीन बजे साध्वी निकलेगी तभी साथ साथ चला जायेगा। हांलाकि हमारे टीवी के कुछ साथी उतनी रात में ही उज्जैन रवाना हो गये थे और यहां रजनी मेरा बेग जमा रही थी। एक दिन के भी जाने का होता है तो वो चार दिन के कपडे रखती है। तकरीब एक बजे बिस्तर पर पहुंचा तो तडके तीन बजे होमेंद्र का फोन बजा सर नीचे खडा हूं। साढे तीन बज रहे थे और हम अस्पताल के सामने थे हांलाकि हमारे टीवी के कुछ दोस्त रात से ही पहरा दे रहे थे मगर अस्पताल के बाहर सन्नाटा पसरा था। साध्वी के जाने की जरा भी सुगबुगाहट नहीं थी। साध्वी का कोई भी परिजन फोन नहीं उठा रहा था। लगा कि उज्जेन जाने का मामला टल नहीं गया हो। मगर यहां से यूँ छोडकर भी नहीं जाया जा सकता था इसलिये गाडी में सीट सीधी कर डाईवर के खर्राटों के बीच भी सोने की कोशिश की गयी। नींद लगी ही थी कि किसी ने बताया एंबुलेंस आ गयी और पुलिस की गाडियां भी आने लगीं। पुलिस अफसरों को जब ये पता चला कि हम टीवी वाले रात से बैठे हैं तो हंसने लगे अरे साध्वी इतनी बडी न्यूज है क्या । अब उनको क्या बतायें न्यूज बडी या छोटी क्या होती। छोटी न्यूज कब बडी हो जाये और बडी दिखने वाली न्यूज कब छोटी हो जाये कोई नहीं जानता। खैर पुलिस के अफसरों ने समझाया कि आप सब घर जाइये फ्रेश होकर आईये साध्वी को आने में वक्त लगेगा कम से कम आठ बजे तक ही निकलेंगे। इस सूचना पर भरोसा कर जब घर पहुंचा तो रजनी का रियेक्शन था अरे इतनी जल्दी लौट भी आये। जब उसे बताया कि पूरी रात अस्पताल के सामने खर्राटों और मच्छरों से संघर्ष करते काटी है तो उसका हंस हंसकर बुरा हाल था। खैर नहा धोकर आठ बजे फिर अस्पताल के सामने खडे थे और साध्वी के आने का कोई आसार फिर भी नहीं दिख रहे थे। कुछ महिला पुलिस सहित बीस पुलिस वाले दो डाक्टर और ढेर सारा मीडिया साध्वी के इंतजार में दरवाजे पर खडा था और साध्वी उतरीं दोपहर साढे बारह बजे। बस फिर क्या था टूट पडा रात भर का जागा मीडिया फोटो वीडियो और बाइट लेने के लिये। धक्का मुक्की शोर शराबे के बीच साध्वी समर्थकों और मीडिया के बीच तनातनी भी हुयीं लेकिन साध्वी को मीडिया के कवरेज और मीडिया को भी साध्वी की फोटो की दरकार थी सो मामला जल्दी ही निपट गया। जेल में आठ साल से बंद प्रज्ञा ढेर सी बीमारियों से भी लड रहीं हैं। वो चल नहीं पातीं एंबुलेंस में उनको लिटाया गया और फिर करीब दस गाडियों का कारवां चल पडा उज्जैन की ओर मगर ये क्या आधे किलोमीटर चलने के बाद ही कारवां थम गया। हमारे उत्साही कैमरामेन होमेंद्र उतर कर आगे पहुंचे पता चला कि साध्वी को एंबुलेंस में परेशानी हो रही है इसलिये उनको अब टोयोटा फारचून में बैठाया जा रहा है। मेरे पहुंचने तक होमेंद्र साध्वी के करीब से विजुअल्स बना रहे थे उनके उकसाते ही मैं भी साधवी के पास माइक लेकर पहुंच गया और कर दिये कुछ सवाल। साध्वी ने पहले तो सधे हुये शब्दों में जबाव दिये मगर सवालों का तीखापन बढते देख कहा भैया बस करो मैं बहुत तकलीफ में हुं। हांलाकि तब तक ये मेरा एक्सक्लूसिव इंटरव्यू हो चुका था जिसे चैनल ने तुरंत लाइव फीड के साथ चला भी दिया। इंटरव्यू चलते ही लगा रात भर की मेहनत काम आयी। उधर फारचून में आगे की सीट पर धूप का चश्मा चढाये साध्वी चली जा रहीं थी। बहुत दिनों के बाद मिली इस स्वतंत्रता से उनके चेहरे पर पूरे वक्त मुस्कान थी। रास्ते में डोडी में जब वो रूकीं तो बच्चों और महिलाओं ने उनके पास आकर आशीर्वाद और सेल्फी ली। रास्ते में लोग श्रद्धा से प्रणाम कर रहे थे। भगवा वस्त्रों में साध्वी अपने पूरे रंग में थीं। उनको देखकर पहचानना कठिन था कि तकरीबन बयालीस साल की उमर वाली इस महिला पर बम धमाके और हत्या करवाने के जघन्य आरोप लगे हैं। हांलाकि मालेगांव बम धमाके में उनको क्लीन चिट मिलने की तैयारी है तो बाकी मामलों में वो भी बरी हो जायेंगी ऐसा उनको भरोसा है। उज्जैन पहुंचते ही उनका काफिला विश्व हिंदू परिषद के पास बने उनके वंदे मातरम संगठन के पंडाल में पहुंचा। शंख बजाकर और फूल बरसाकर उनके समर्थकां ने स्वागत किया। थोडी देर बाद ही साध्वी अब सुबह से इंतजार कर रहे मीडिया के सामने थीं हांलाकि पुलिस ने उनको प्रेस कांफ्रेंस करने से रोका भी मगर साध्वी मानने वालीं होती तो आज साध्वी नहीं होती। प्रेस कांफें्रस में साध्वी ने पीएम मोदी की दिल खोलकर तारीफ तो सीएम शिवराज की जी भरकर बुरायी की। प्रेस के सारे सवालों के जबाव देने के बाद उन्होंने भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगवाये और रात में तबियत बिगडने पर अस्पताल में भर्ती हो गयीं। अगले दिन फिर साध्वी अपने काफिले के साथ सिंहस्थ में लाखों की भीड को पार करतीं हुयीं महाकाल मंदिर में थीं। मंदिर के अधिकारी उनको समझा रहे थे कि गर्भगृह में जाना संभव नहीं हैं मगर साध्वी की जिद थी मुझे महाकाल को स्पर्श करना है। आखिरकार साध्वी को गर्भगृह में ले ही जाया गया। शाम के छह बज रहे थे और अब साध्वी उज्जैन में अपने अंतिम पड़ाव क्षिप्रा के रामघाट पर परम आनंद में डुबकी ले रहीं थीं। घाट पर ही जब मैंने उनसे कहा तो ये मानें कि साध्वी की जिद अब पूरी हुयी। इस पर उसका जबाव था ये मेरी जिद नहीं संकल्प था और ऐसे ही संकल्पों के दम पर इन बुरे हालातों में भी जिंदा हूं। तो क्या ऐसे और भी संकल्प आप लेंगी। मुस्कुराकर वो बोली आप देखते जाइये । पुलिस और समर्थकों के कंधे के सहारे जीवटता की धनी इस महिला को मैं जाते हुये देख रहा था।
*ब्रजेश राजपूत
Copyright : Youth icon Yi National Creative Media Report, 22.05.2016