Guruji Ab Man Bhi Jao : आन्दोलनों की गर्भ से पैदा राज्य के कर्मचारी कब काम पर लौटेंगे …?
*समर्थन बने गले की हड्डी, अब सर्जरी जरूरी ।
*हड़ताली शिक्षकों से सम्बंधित एक जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट का निर्णय स्वागतयोग्य ।
राज्य बनने के बाद से सभी सरकारें इस ब्लैकमेलिंग से दुखी हैं। सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन से भले ही जनता त्रस्त हो मगर फोकट के राजनैतिक समर्थन से हड़तालियों के मंच गुलजार हैं।
हो सकता है कुछ मांगें जायज हों, शासन प्रशासन हठधर्मी हो, संवेदनहीन हो। मगर रोज रोज के ड्रामे बताते हैं कि इनके सामने सरकारें कितनी लाचार हैं। सरकारी कर्मचारी की आचारसंहिता है, मगर मंचों, अख़बार, टीवी में उनके नेताओं के बेबाक बयान सारी मर्यादायें तोड़ते हैं। जिस निष्ठा और तत्परता से वे संगठन की बैठक और जुलूस में दिखते हैं क्या अपने कार्यस्थल पर उनका यह सेवा भाव दिखता है, नहीं। राज्य की जनता इन हड़तालों से दुखी है क्योंकि बार बार हड़ताल पर जाने वाले लोग अपनी गैरजिम्मेदाराना भूमिका से सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान खो चुके हैं।
राजनेताओं के तुच्छ स्वार्थ, वोट बैंक की भूख इनकी ब्लैकमेलिंग में खाद का काम करती है। ये चलन अब परम्परा बन गया है कि कोई सरकार के खिलाफ कुछ भी बोले मुँह उठाकर समर्थन देने विरोधी पार्टियां पँहुच जाती है। कर्मचारी जानते हैं सरकार जिसकी रहे विपक्षी हमारा साथ देंगे ही। खुद तात्कालिक लाभ के लिए आन्दोलित अतिथि शिक्षकों के धरने पर रात गुजार कर मुख्यमंत्री हरीश रावत जी जान चुके होंगे कि विपक्षी बनकर समर्थन देना और शासक बन कर क्रियान्वित करना अलग अलग स्थितयां हैं।
जिम्मेदार सरकार कर्मचारियों के हितों का ध्यान दे और उनसे अपेक्षित काम ले। इस छोटे राज्य में हर एक व्यक्ति मंत्री, मुख्यमंत्री तक पँहुच रखता है, प्रोटोकॉल नदारद है। सोशल मीडिया फेसबुक पर खुलेआम सरकारी कर्मचारी सरकार को अमर्यादित भाषा में ललकारता है। अपनी राजनैतिक पसंद, नापसन्द, गाली गलौच खुलेआम अपनी वाल पर लिखता है। है किसी की हिम्मत, है कोई निगरानी। कभी लगता है उत्तर प्रदेश ही ठीक था।
राजनैतिक लोगों को विचारना होगा, अध्ययन करना होगा, राज्यहित देखना होगा। सत्ता में बैठे हुक्मरानों को निडर होकर कड़े फैसले लेने होंगे। राज्य बनने के बाद से ही नेताओं ने क्षणिक राजनैतिक लाभ के बजाय राज्यहित देखा होता तो आज उत्तराखण्ड की तुलना पश्चिम बंगाल से नही होती जो केवल सरकारी कर्मचारियों की नेतागिरी और हड़ताली प्रदेश के रूप में जाना जाता है।
हाईकोर्ट ने भले ही हड़ताली शिक्षकों के मसले पर कड़ा रुख अख्तियार किया हो किन्तु जरूरत है कि सरकार सभी सरकारी कर्मचारियों की व्यवहारिक, न्यायसंगत मांगों पर तुरन्त विचार करे और भविष्य में ऐसे बेशर्म समर्पण की स्थिति न हो कि न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़े।
* सतीश लखेड़ा
Copyright: Youth icon Yi National Media, 17.09.2016
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आदरणीय सतीश लखेड़ा जी और शशिभूषण मैठानी जी, दरअसल इन सभी के मूल में जायेंगें तो पायेंगें कि इन आन्दोलनकारियों के पुष्पन और पल्लवन में राज्य के राजनेताओं का बहुत बड़ा हाथ है। आखिर क्यों नहीं नियुक्तयों में उच्च प्रशिक्षण और पारदर्शिता पर ध्यान नहीं दिया जाता। क्यों राज्य सरकार समय समय पर आयोग से नियमित नियुक्तियाँ नहीं करती? क्यों शैक्षिक संस्थानों में नियुक्ति के मानकों में अपनों को लाभ पहुँचाने हेतु सरकारें ढील देती हैं? क्यों मानकों को ताक पर रखकर बैकडोर नियुक्तयाँ धड़ल्ले से करने के लिए सरकार आयोग को विज्ञापित किये जाने वाले पदों को भेजने के पश्चात भी वापस ले लेती है? क्यों सरकार संवैधानिक संस्था और आयोग से भरे जाने वाले पदों को आयोगों की परिधि से बाहर कर देना चाहती है? क्यों सरकार समय समय पर मात्र संविदा पर ही नियुक्त करना चाहती है? क्यों सरकार ने शिक्षा के सभी स्तरों (चाहे वह उच्च शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा या प्राथमिक शिक्षा हो)पर पू्र्व में महीनों कलमबन्द हड़ताल करने वालों पर कोई कार्यवाही न कर अपितु उनको हड़ताल अवधि का भुगतान भी करने के साथ ही साथ उनका विनियमितीकरण तक कर दिया? क्यो सरकार विभिन्न विभागों में प्रशासनिक पदों पर बिठाने में योग्यता को तरजीह न देकर भाई भतीजावाद को प्रमुखता देती है? क्यों सरकार के अंग के रुप में कार्य करने वाले लोग स्थानांतरण में खेल करते हैं?
उपरोक्त सभी सवालों के साथ ही साथ क्यों जब कोई संस्था और शिक्षक संघ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बात करती है और सलाह देती है, उपाय सुझाती है, तो उन सलाहों पर ध्यान देने और उनकी पीठ थपथपाने के बजाय उनके पदाधिकारियों का उत्पीड़न करती है, उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करती है?
क्यों सरकार शासन के शासनादेशों का उल्लंघन करने वालों और शिक्षा में अनियमितता के सूत्रधारों के खिलाफ सूचना के अधिकार के तहत सूचना माँगने वालों को न केवल प्रताड़ित करती है अपितु उनके खिलाफ अखबारों में उल्टा सीधा समाचार छपवाकर उनको अच्छे कार्य करने से हतोत्साहित करती है? क्यों सरकार आयोग से चयनित प्राध्यापकों के हितों को ताक पर रखती है? उनके संगठन तक को मान्यता नहीं देती जो सरकारी शासनादेशों को लागू कराने तथा शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु नियमों के अनुपालन हेतु प्रार्थना करते हैं?
जब तक सरकार इन बिन्दुओं पर ध्यान नहीं देगी और वोट को ध्यान में रखकर ही सारे शिक्षा सम्बन्धी कार्य करेगी तब तक ऐसे ही भस्मासुर पैदा होंगे, जिनको न राज्य की शिक्षा व्यवस्था से सरोकार होगा और न ही राज्य की जनता से।
किसने कह दिया हड़ताल ख़त्म होगी????
मान्यवर यह दबाव की हड़ताल हुई ही खत्म होंने के लिए है इंतजार करें ……
सतीश लखेडा जी आपका कथन सत्य है, यदि सभी सरकारी कर्मचारीयो की उचित मांग को सरकारी तन्त्र हाँ करने के बाद तुरंत उस पर अम्ल करें तो यह नोबत नहीं आयेगी किन्तु होता उलटा ही है ,किसी भी मांग को शासन से पास कराने का सिर्फ आशवासन ही दिया जाता है, मांग पुरी होती नहीं है जिसपर कर्मचारियों को धरना प्रदर्शन व हड़ताल करने का भारी मन से निर्णय लेना पडता है।
Our teachers who shape the minds of our future generations deserve best treatments from all quaters…not only they should be provided with all necessary help and encouragements and if there are any genuine greavances it should be settled as early as possible. ..
I think teachers are also not happy with their strike…as such they should come back to work immediately and the government should also come forward to solve their problems without making it a prestige issue…
कर्मचारी आचरण नियमावली-2008 के नियम-4 मै हड़ताल करना…..नियम विरुध्द है….नियम-8 भी है….आचरण नियमावली किस सरकारी कर्मचारी के लिये बनी है…
हइकोर्ट का निर्णय सराहनीय है। एक तरीके से अब सरकार का काम न्यायलय कर रही है,और ये बहुत अफसोसजनक स्थिति है। इन गुरुओं को नेतारूपि मास्टर बनाने मैं सरकार का बहुत बड़ा हाथ रहा है,वो चाहे वर्तमान या फिर पूर्व मैं रही सरकारे हो। क्यों नही पहले से ही सख्ती बरती गयी।
आज कई-कई दिनों के हड़ताल से जो बच्चों की पढ़ाई का नुक्सान हो रहा है उसके लिए शिक्षक और ये साशन प्रणाली दोनों ज़िम्मेदार है।
और आजकल के मास्टर जिनका उदेशय शिक्षा देना तो बिलकुल भी नही लगता,सरकारी स्कूलों की स्थिति देखकर कोई भी समझ सकता है, अपनी जिम्मेदारी न समझकर सिर्फ खानापूर्ति कर रहे है । ये (so called ) गुरूजी अगर अपने गिरेबान मैं झांके तो ज्यादा विश्लेषण की आवश्यता नही पड़ेगी।
बाकी लखेड़ा जी आपकी इस पोस्ट के माध्य्म से जो कई सभ्य गुरूजी रियेक्ट कर रहे है,,और अपनी शिक्षक होने का परिचय दे रहे है उनको सचमुच सम्मानित किया जाना चाहिए, साथ ही इनको इस उपसधि से नवाजने वालॉ (चयन करने) वालो को भी सम्मानित किया जाना चाहिए।
Teacher profession is a very noble profession.
But now a days it has become a joke. These type of teacher’s are just taking their profession as for granted not only they are spoiling the future of our children’s but also they has spoiled their own image.
Very shame full.
Their should be strictly rules followed as per respective High court decision
Satish lakhera sir I do agree with you.
Really Sir,situation has totally changed.Now gruruji are not at all interested in giving proper education .
They are trying to teach all the system, may be some of their demands would be correct but the method which they are using is totally incorrect.
Teacher’s are spouse to be an idol but here they are creating very shamefull situation
Nicely written .