ज्ञानमंडी में बालश्रम, विद्या बनी बाजार ! ठेंगे में संस्कार ।
विद्यालयों का शिक्षा के मंदिर से शिक्षा की मंडियों में परिवर्तित होना भी समाज के लिए लाभदायक नहीं होगा आज स्कूलों में ही नामी प्राइवेट कोचिंग संस्थान अपनी क्लासेज चला रहे हैं। वर्तमान समय में जहाँ स्कूलों में इमारतें ऊँची होती गयी वहीं शिक्षा की गुणवत्ता शायद कम हो रही है। कभी स्कूलों में यूनिफॉर्म सभी बच्चों में एकरूपता के लिए होती थी। वहीं आज स्कूलों में कक्षाओं के सेक्शन भी बच्चों के नंबरों के हिसाब से बांटे गए हैं। 90% से ज्यादा नम्बर वाले सेक्शन A, 80% सेक्शन B, 60% सेक्शन C और उसके बाद सेक्शन D।
अगर मेरे “A” for- पूछने पर आपका उत्तर भी apple ही है, तो आप भी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में well trained कहलाओगे या well educated इसका निर्णय आप स्वंय करें तो बेहतर होगा। ये प्रश्न और भी गंभीर तब हो जाता है जब शिक्षा का सीधा संबंध छात्रों की मौलिकता से हो।
क्या वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में श्रेष्ठता का आशय अधिक अंक प्राप्त करना ही रह गया है। अगर ज्यादा नम्बर लाना ही किसी छात्र के बेहतर होने का आधार है तो सचिन तेंदुलकर और राहत फतेह अली खान जैसी शख्सियतों के योग्य होने पर एक बार फिर से विचार करना आवश्यक होगा। जब ईश्वर ने प्रत्येक मानव को एक विशिष्ट गुण प्रदान किया है तो क्यों हर एक की योग्यता को मापने के आधार अधिक अंक प्राप्त करना ही रह गया है। ज्यादा नंबरों की इस दौड़ में बच्चे कब रोबोट बन गए इन बातों का अहसास भी हमें नहीं है।
विद्यालयों का शिक्षा के मंदिर से शिक्षा की मंडियों में परिवर्तित होना भी समाज के लिए लाभदायक नहीं होगा आज स्कूलों में ही नामी प्राइवेट कोचिंग संस्थान अपनी क्लासेज चला रहे हैं। वर्तमान समय में जहाँ स्कूलों में इमारतें ऊँची होती गयी वहीं शिक्षा की गुणवत्ता शायद कम हो रही है। कभी स्कूलों में यूनिफॉर्म सभी बच्चों में एकरूपता के लिए होती थी। वहीं आज स्कूलों में कक्षाओं के सेक्शन भी बच्चों के नंबरों के हिसाब से बांटे गए हैं। 90% से ज्यादा नम्बर वाले सेक्शन A, 80% सेक्शन B, 60% सेक्शन C और उसके बाद सेक्शन D।
छात्रों को अंकों के आधार पर बांटने वाले अध्यापकों को ही एक बार शिक्षा के मौलिक उद्देश्यों से अवगत होना जरूरी है। स्कूलों को डिमांड और सप्लाई की फैक्टरी न बना कर यदि शिक्षा का मंदिर ही रहने दिया जाए तो समाज और शिक्षा दोनों के हित में होगा।
Excellent
Very well said
एक सामयिक विषय पर आपका आलेख वर्तमान शिक्षा नीति एवम छात्रों की चुनौतियों से रूबरू कर सोचने पर विवश करता है। किंतु सुधार हेतु व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। सही है कि प्रत्येक बालक भिन्न प्रवृत्ति तथा मानसिक स्तर का है अतः आवश्यकता इस बात की है पारम्परिक शैक्षिक विषयों से हटकर छात्र की रुचि के आधार पर भाषा के साथ ही बचपन से कौशल विकास पर जोर दिया जाय। छात्र-शिक्षक अनुपात एवं नैतिक मूल्यों पर भी ध्यान दिया जाना नितांत आवश्यक है… सधुवाद
Good efforts .india needs youth like you.jai hind
Very true and shameful
Very true
सत्य एवं मौलिक विचार
निःसन्देह देश को ऐसी ही विचारधारा वाले युवाओं की जरूरत है।।