Hindi is our mother tongue.. हिन्दी की खानापूरी / श्रद्धांजलि/ विसर्जन ।
हिन्दी दिवस एक बार फिर से सम्मुख है। हम हिन्दी की बात कर रहे हैं। उसको अपनाए जाने की बात कर रहे हैं। पर हिन्दी दिवस मनाते ही क्यों हैं, हिन्दी तो एक शाश्वत भाषा है उसका कोई जन्मदिवस कैसे हो सकता है। पर हमारे यहां है, जिस धरती की वह भाषा है जहां उसका विकास उद्भव हुआ वहां उसका दिवस है। और दिवस भी यों नहीं बल्कि यह दिन याद कराता है कि हिन्दी उसका दर्जा देने के लिए देश की संविधान सभा में जम कर बहस हुई। हिन्दी के पक्षधर भी हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेजी में बोले।
संविधान सभा में हिन्दी की स्थिति को लेकर 12 सितंबर, 1949 को 4 बजे दोपहर में बहस शुरू हुई और 14 सितंबर, 1949 को दिन में समाप्त हुई। बहस के प्रारंभ होने से पहले संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अंग्रेज़ी में ही एक संक्षिप्त भाषण दिया। जिसका निष्कर्ष यह था कि भाषा को लेकर कोई आवेश या अपील नहीं होनी चाहिए और पूरे देश को संविधानसभा का निर्णय मान्य होना चाहिए। भाषा संबंधी अनुच्छेदों पर उन्हें लगभग तीन सौ या उससे भी अधिक संशोधन मिले। 14 सितंबर की शाम बहस के समापन के बाद भाषा संबंधी संविधान का तत्कालीन भाग 14 क और वर्तमान भाग 17, संविधान का भाग बन गया तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा, अंग्रेज़ी से हम निकट आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्य हमारे संबंध घनिष्ठ होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परंपराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है,
हिन्दी दिवस या पखवाड़ा हर साल मनाया जाता है, हमें इस दिवस को आचरण और चिंतन में भी लाना होगा तभी यह अभियान सफल होगा और हिन्दी की सच्ची सेवा होगी।
*सतीश लखेड़ा,
Copyright: Youth icon Yi National Media, 14.09.2016
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Bahut Sundar Lekh. Hardik Badhai !