योगेश सकलानी yogesh saklani holi song होली गीत यूथ आइकॉन youth iconयोगेश सकलानी yogesh saklani holi song होली गीत यूथ आइकॉन youth icon

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उत्तराखंड को मिली इस होली पर ये सौगात । जमकर हो रही है तारीफ । नेगी जी के बाद लोक शब्दों का मूर्धन्य गायक के रूप में आ रहा है कलाकार योगेश सकलानी ।

 

* बेहद सस्तेपन, घटिया व फूहड़ गीतों से दो – चार हो रही उत्तराखंड की अद्भुत संस्कृति व लोक संगीत, लोक परंपरा को मिलेगा नया आयाम ।

 

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 शशि भूषण मैठाणी पारस

गीत संगीत, साहित्य, कला, संस्कृति और परम्पराओं में लोक विधा को दुनियाभर में हमेशा से एक अलग पहचान मिलती रही है । लेकिन बदलते दौर के साथ-साथ कई बाजारू वाह्य विकृतियों ने विभिन्न लोक कलाओं में अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए जबरदस्त घुसपैठ की है, या लोक विधा को चुरा कर उसे चकाचौंध भरे बाजार में ले आए हैं । और कमोवेश यह हालात कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक जैसे ही हैं । गीत संगीत कला के क्षेत्र में हिमालय के शिखरों व नदी घाटियों की वादियों से लेकर समुद्र की गहराईयों तक में भारत की एक विशिष्ट पहचान रही है । परंतु वर्तमान दौर में कानफोड़ू बाजों व आड़े तिरछे गायकों की भीड़ के बीच भारत की यह पहचान कहीं न कहीं हासिए पर जा रही है ।

आज मैं यहां इसी विषय पर जिक्र कर रहा हूँ देवभूमि उत्तराखंड के लोक गायकों व लोक संगीत की । पहाड़ों में बजने वाला ढ़ोल दमाऊं , थाली, रणसिंघा, मशकबीन , बिणाई, बांसुरी, हुड़क, डौंर आदि इत्यादि सब कुछ धीरे दरकिनार होता जा रहा है ।

इस होली पर सुने ये शानदार उत्तराखंडी लोक गीत जो एकदम नए कलेवर में है … नीचे  दिए गए वीडियो को क्लिक करें …   

 

 

हालांकि सुप्रसिद्ध लोकगायक लोक कवि विद्वान नरेंद्र सिंह नेगी और लोकगायक पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने हमेशा से पहाड़ी शब्दों और पहाड़ी वाद्यों को तबज्जो दी है । जिस कारण कहीं न कहीं वर्तमान पीढ़ी भी काफी हद तक उसके इर्द गिर्द दिखाई दे रही है । वहीं अगर पहाड़ी लोक गद्य या पद्य की बात करें तो मूर्धन्य विद्वान नरेंद्र सिंह नेगी जैसे लोक गायक लोक कवि जिन्हें गढ़वाली शब्दकोष का चलता फिरता बैंक भी कहा जाता है, ने हमेशा से अपने काव्य पाठ व लोक गीतों में गढ़वाली लोक भाषा का संरक्षण संवर्धन किया है । नेगी जी के प्रशंसको के अलावा लोक-भाषा के संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले बुद्धिजीवियों व शोधकर्ताओं को भी बेशक इस बात की मलाल है कि गढ़वाली भाषा ज्ञान का महापंडित नेगी जी जैसा कोई दूसरा न हो सका ।

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आज यहां बताना चाहूंगा कि पिछले 6 महीनों से मेरा संपर्क युवा योगेश सकलानी से बना हुआ है । कई दौर की बातचीत इस युवा के साथ हुई है । जब-जब मेरी योगेश से बात हुई तो उसकी बोली या उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों में काफी हद तक सुप्रसिद्ध लोक गायक व लोक कवि नरेंद्र सिंह नेगी की मिलती है । मैंने कई मर्तबा योगेश को कहा कि तुम जब बातें करते हो या गाना गुनगुनाते हो तो ऐसा लगता है कि मैं नेगी जी के साथ बैठा हूँ । तो योगेश ने हमेशा इस बात पर मुझे टोका है कि भाई साहब ऐसा मत कहिए । क्योंकि महान गायक और कवि नेगी जी तक पहुंचना तो इस दौर में किसी के भी बस में नहीं है ।

सच बताऊं तो योगेश की यह बातें मुझे बहुत प्रभावित करती रही हैं । योगेश कभी इस बात पर खुश नहीं हुआ कि मैं उसकी तुलना विख्यात लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के साथ कर रहा हूँ । यह योगेश का शिष्टाचार और बड़प्पन ही है कि वह नेगी जी को अपना आदर्श मानकर उन्हें गीत संगीत के क्षेत्र में पहाड़ का भीष्म पितामह कहता है ।

बेशक.. योगेश ने मुझसे ये इच्छा जरूरी जताई है कि मैं उसे एक बार नेगी जी के घर पर ले जाऊं और उनके दर्शन करवाऊं । इसके लिए मैंने भी योगेश से शर्त रखी कि ठीक है एक हफ्ते से भी कम का समय है होली के लिए और तुम एक ऐसा गाना तैयार करो इस होली पर जिसे लेकर हम नेगी जी के सामने जाएंगे । योगेश ने सहजता से स्वीकार किया
और यह मेरे लिए अचंभित होने जैसा ही था कि योगेश मेरे घर से गया और तीसरे दिन स्टूडियो से मेरे मित्र अनिल भट्ट के मार्फ़त फोन आता है कि होली का गाना तैयार हो गया है और खूबसूरत शब्दों का चयन और रचना स्वयं युवा कवि गायक योगेश ने ही तैयार किये हैं जिसे वह अभी अपनी आवाज में गा रहा है ।

योगेश द्वारा होली पर विशेष रूप से तैयार किए गए इस गाने में संगीत दिया है युवा म्यूजिक डारेक्टर रणजीत सिंह ने . यहाँ बताते चलें कि आज के दौर में रणजीत का संगीत सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है . इसलिए रणजीत शानदार म्यूजिक से अलंकृत  इस गाने को सुनने के बाद तो यही कहूंगा कि उत्तराखंडी गीत संगीत को विकृतियों से छुटकारा मिलेगा । क्योंकि उत्तराखंड में यह बड़ी समस्या है हो गई है कि यहां हर तीसरा चौथा आदमी स्वयं को लोक गायक कहलाना पसंद कर रहा है । जबकि लोक गायक का असली मतलब यह है कि उस के अपनी लोक-भाषा, संस्कृति और परम्पराओं का भी भरपूर ज्ञान हो । लेकिन यह सच है कि आज अधकचरे ज्ञान के साथ यहां की लोक विधा में कुछ विकृतियां आ चुकी हैं । लेकिन योगेश सकलानी के रूप में सामने आ रहे लोक कवि व लोक गायक से उम्मीद जग गई है कि वह पहाड़ी शब्दों के संयोजन से हमेशा ठेठ पहाड़ी मिजाज के साथ आने वाली पीढ़ी को भी दिशानिर्देशित करते रहेंगे । बाकी योगेश का मार्गदर्शन आदरणीय नेगी जी भी करेंगे । समय लेकर योगेश सकलानी को जन शिरोमणि उत्तराखंड रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी के सम्मुख प्रस्तुत किया जाएगा ।

By Editor