Immortal love story : उत्तराखंड की
एक अनोखी अमर प्रेम कथा ….!
पहली नजर का प्यार, इकरार, प्यार को पाने की कोशिश, दो इलाकों की खानदानी दुश्मनी, रार और फिर प्यार करने वालों की जीत, यानी हर वो मसाला इस कहानी में है, जो आमतौर पर बालीवुड फिल्मों के लिए शानदार मानी जा सकती है। मगर इस कहानी में ऐसा कुछ है जो इसे सबसे अलग करता है। इसमें किसी फिल्म के एक हीरो की प्रेम कहानी परवान नहीं चढ़ी बल्कि दो भाइयां ने मिलकर अपनी प्रेमिका को हासिल किया और ऐसी प्रेम कहानी को अंजाम दिया जो कहीं भी देखने को नहीं मिलती। ये प्रेम कहानी है उत्तरकाशी जिले के तिलोथ गांव के दो भाई नरु और बिजुला की। इन दोनों भाइयां ने आज से करीब छह सौ साल पहले प्यार की खातिर कुछ ऐसा किया, जो प्रेम डगर पर पग धरने वालों के लिए नजीर बन गया।
इस कहानी की शुरूआत होती है पंद्रहवीं सदी से। उत्तरकाशी के तिलोथ गांव में रहने वाले दो भाई नरु और बिजुला गंगा घाटी में अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। एक बार दोनों भाई बाड़ाहाट के मेले (माघ मेले) में गए। यहां उन्हें एक युवती दिखी, नजरें मिली और दोनों भाई उसे दिल दे बैठे। युवती भी आंखों ही आंखों में इजहार कर वापस लौट गई। भाइयों ने युवती के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि युवती यमुना पार रवांई इलाके के डख्याट गांव की रहने वाली थी। उन दिनों गंगा और यमुना घाटी के लोगों के बीच पुश्तैनी दुश्मनी थी। दोनों पक्षों में रोटी-बेटी का संबंध नहीं होता था।
मगर दोनों भाइयों ने इसकी परवाह किए बिना डख्याट गांव पहुंचकर युवती का अपहरण कर लिया और उसे कुठार (अनाज रखने के लिए लकड़ी का बक्सेनुमा घर) सहित उठाकर ही तिलोथ लेकर आ गए। उस दौर में दुश्मन के इलाके में घुसकर ऐसी घटना को अंजाम देना कोई मामूली बात नहीं थी। न तो सड़कें थीं, न वाहन, इसके बावजूद दोनों भाइयों ने बड़ी चतुराई और बहादुरी से इस कार्य को अंजाम दिया।
इधर जब डख्याट से युवती के अपहरण की खबर फैली तो यमुना घाटी रवांई के कई गांवों के लोग इकट्ठा हो गए। उन्हें गंगा घाटी वालों का यह दुस्साहस कतई नागवार गुजरा। गंगा घाटी वालों ने जंग का ऐलान कर दिया और सैकड़ों लोग हथियार लेकर नरु-बिजुला से बदला लेने निकल पड़े। गंगा घाटी के सैकड़ों लोग रवांई की सीमा पर ज्ञानसू पहुंच गए और उन्होंने सुबह तक यहीं इंतजार करने का फैसला लिया। नदी पार रवांई के लोगों के जमा होने की सूचना मिलते ही नरु-बिजुला ने अपने गांव के लोगों को अन्न-धन समेत गुप्त तरीके से डुण्डा के उदालका गांव की ओर रवाना कर दिया। सुबह दोनों भाइयों ने गंगा नदी पर बने झूलापुल काट डाला। सभी लोगां को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाकर नरू बिजूला गांव से 3 किमी ऊपर सिल्याण गांव पहुंचे जहां उन्होंने विशालकाय पत्थरां से एक चबूतरा बना दिया। ये चबूतरा आज भी इस गांव की थात (सार्वजनिक पूजा, मेले आदि का स्थान) के रूप में है।
अपने गांववालों व प्रेमिका को सुरक्षित कर दोनों भाई दुश्मनों से लड़ने पहुंच गए। बताया जाता है कि इस लड़ाई में नरु-बिजुला ने अकेले ही दुश्मनों के दांत खट्टे कर भागने को मजबूर कर दिया। हालांकि उनमें से कई लोग कीमती सामान (जंजीरें, घण्टा, धातु के बर्तन अदि) लेकर गए। आज भी उनके वंशजों के पास वह सामान निशानी के रूप में है। इस घटना के बाद दोनों पक्षां की पुश्तैनी दुश्मनी भी समाप्त हो गई। नरू-बिजूला ने तिलोथ में अपनी पत्नी के साथ सुखद जीवन जिया। उनके वंशज आज भी तिलोथ व सिल्याण गांव में रहते हैं।
महलनुमा घर आज बन गया खण्डहर :
तिलोथ में नरु-बिजुला का छह सौ साल पुराना चार मंजिला भवन आज भी है। कभी आठ हॉल व आठ छोटे कक्ष वाले भवन की हर मंजिल खूबसूरत अटारियां बनी थी। इसकी मजबूती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तरकाशी में 1991 में आया भीषण भूकंप भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सका। लेकिन साल दर साल सुरक्षा व संरक्षण के अभाव में भवन जर्जर होता जा रहा है। लकड़ियां सड़ चुकी हैं और दीवारें दरकने लगी हैं। हालांकि त्रिलोक सिंह गुसांई प्रेम और वीरता की
इस निशानी की हिफाजत की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सरकारी मदद के अभाव में उनके प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। नरू-विजुला के वशंज त्रिलोक गुसांई कहते है कि हमे गर्व है कि हम नरू-विजुला के वशंज है,हमारे पास आज भी अपने पुरखां की धरोहर है लेकिन हमे दुख इस बात का है कि हमारी इस धरोहर के सरक्षंण के लिए आज तक सरकार की तरफ से कोई पहल नही हुई हैं। हम जितना कर सकते थे हमने किया लेकिन अब इस हवेली की हालत भगवान भरोसे हैं।
इस गांव के शोध छात्र विकास नौटियाल कहते है कि मेरा घर इसी हवेली के बगल मे हैं। अपने शौध के दौरान जब भी मैं राजस्थान,गुजरात जैसे राज्यां मे जाता हूं तो वहां की पुरानी हवेली को देखकर मेरे दिलो-दिमाग मे एक ही सवाल उठता है कि मेरे गांव मे इतनी बड़ी धरोहर पर हमारे राज्य की सरकार, संस्कृति विभाग,पुरातत्व विभाग क्यां उदासीन बैठा है। मेरा मानना है कि सरकार को इसकी एतिहासिकता ,शिल्पकला को समझते हुए इसके सरक्षंण के लिए पहल करनी चाहिए।
*पंकज मैंदोली
Copyright: Youth icon Yi National Media, 27.05.2016
Bhot khob likha h aap ne pankaj ji. Isi tarh prachin katha aur sanskriti s judi khaniya samaj ko batate rahiye
Dhanyavad
Marvellous love story,which also describes polyandry.
Bahut he sundar…. aapki pranshnsa jitni karu kam hai…aasha karta hu ki aap aise he aur bhi un hakikato se rubru karwaynge jo eshi tarah viraan ho rahi hai..thanksss.
Bahut marmik or shandar
पंकज जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद आपके ऐतिहासिक लेख के लिए ।
आपने बहुत खूब लिखा हैं ये हमारे उत्तराखंड वासियो के लिए बहुत गर्व की बात हैं हमारे पूर्वज इतने साल पहले भी हर क्षेत्र में आगे थे ।
लेकिन उत्तराखंड टुरिज़म को इसे टुरिज़म के तौर पर बढ़ावा देना चाहिए और इसका संरक्षण पुरात्तव विभाग के साथ साथ उस क्षेत्र के लोगो को भी करना चाहिए । में तो कहूँगा की हमारे शोध के विधार्थियो को भी इसे देखकर जरूर कुछ न कुछ इसके ऊपर शोध करना चाहिए।
पंकज जी एक बात तो में लिखना ही भूल गया कि आप ने लिखा है रोटी बेटी का संबंध नहीं था तो
आप गलत लिख रहें नातेदारी व रिश्तेदारी भी थी और कोई दुश्मनी नहीं केवल इस प्रकरण से ही दुश्मनी हुई वो डख्याट गांव वाले इलाके मान्यवर संशोधन की आवश्यकता है
क्या आप लोग उस लड़की का नाम बता सकते हो जिसका अपहरण हुआ था ???