पत्रकारिता का भद्रलोक : इस शहर की पत्रकारिता और पत्रकारों का मिजाज पूरे देश के मीडिया से अलग है ।
आमतौर पर पत्रकार वार्ताओं का स्वरूप कुतर्क, कटाक्ष, बहस, अनावश्यक हावी होने और वाद-विवाद के वातावरण में देखने की आदत सी हो गई है। किन्तु इंदौर में ये संस्कार एक दिन में ही पोषित नहीं हुए। इंदौर ने पत्रकारिता को संस्कारित करने की नर्सरी का काम किया है और इसके श्रेय का बड़ा हिस्सा ‘नई दुनिया’ अखबार के खाते में जाता है। नई दुनिया पत्रकारिता की संस्कारशाला रही है, जिसने पत्रकारिता जगत के अनेक मनीषियों और पुरोधाओं को अपने तप से कुंदन बनाया।
एक अलग किस्म की शांति, अनुशासित वातावरण, शालीन भाषा में पूछे जा रहे तीखे सवाल और मंच पर सजग और सधी भाषा में जवाब देता वार्ताकार। निसंदेह, एक अद्भुत नजारा था, यह दृश्य था इंदौर प्रेस क्लब का । इस शहर की पत्रकारिता और पत्रकारों का मिजाज पूरे देश के मीडिया से अलग है ।
हाल ही में मध्य प्रदेश चुनाव में पार्टी के मीडिया प्रबंधन के दौरान राज्य भर में लगभग सभी महत्वपूर्ण केंद्रों पर पत्रकार वार्ता हुई। मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पिछले कुछ वर्षों में देश के अनेक प्रांतों में चुनावी मीडिया प्रबंधन टीम के सदस्य के नाते मुझे मीडिया से मुखातिब होने का अवसर मिला है, किंतु इंदौर का पत्रकारिता जगत कितना विशिष्ठ है यह सब पत्रकार वार्ता से साक्षात अनुभव हो रहा था।
आमतौर पर पत्रकार वार्ताओं का स्वरूप कुतर्क, कटाक्ष, बहस, अनावश्यक हावी होने और वाद-विवाद के वातावरण में देखने की आदत सी हो गई है। किन्तु इंदौर में ये संस्कार एक दिन में ही पोषित नहीं हुए। इंदौर ने पत्रकारिता को संस्कारित करने की नर्सरी का काम किया है और इसके श्रेय का बड़ा हिस्सा ‘नई दुनिया’ अखबार के खाते में जाता है। नई दुनिया पत्रकारिता की संस्कारशाला रही है, जिसने पत्रकारिता जगत के अनेक मनीषियों और पुरोधाओं को अपने तप से कुंदन बनाया।
इस धरती ने भारत के पत्रकारिता के आकाश को अनेक सितारे दिए। पत्रकार और साथ में साहित्यकार होने के भी अनेक उज्ज्वल उदाहरण इंदौर के खाते में हैं। व्यंग विधा के पहले रचनाकार हरिशंकर परसाई, प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी से लेकर राजेंद्र माथुर, राहुल बारपुते, प्रभाष जोशी और अभय छजलानी जैसे बड़े नाम हैं जो स्वयं पत्रकारिता के जागृत संस्थान रहे हैं। एक दौर में जब जनसत्ता अखबार प्रबंधन की उपेक्षा के कारण मृतप्राय सा हो गया था, तब भी संपादक प्रभाष जोशी जी के संपादकीय के पाठकों के नाते उसकी प्रसार संख्या अच्छे खासे अखबारों को टक्कर देती थी।
स्वाधीन भारत में हिंदी पत्रकारिता को एक बड़ा मुकाम दिलाने में राजेंद्र माथुर जी का योगदान अविस्मरणीय है। घटना या समाचार को ईमानदारी से, जिम्मेदारी से, बिना पूर्वाग्रह के और सच्चाई के साथ पंहुचाना पत्रकारिता का धर्म है, इस चरित्र को उन्होंने पत्रकारिता का संविधान के रूप में स्थापित किया।
राहुल बारपुते हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा रहे हैं। उनके संपादकत्व काल में नई दुनिया पत्रकारिता की ऐसी नर्सरी बना, जिसने कलम की दुनिया के कबीरों की श्रृंखला खड़ी की। आलोक मेहता से लेकर एक लंबी श्रृंखला इंदौर की पत्रकारिता जगत की देन है। पत्रकारिता के उच्च आदर्शों, समसामयिक समझ, पेशे की जिम्मेदारी और पत्रकार धर्म की लक्ष्मण रेखा को एक मुकाम तक पंहुचाने में इन साधकों का बड़ा योगदान है। आज भी इन्दौर का पत्रकारिता जगत देश के लिये आईना है।
वर्तमान में पत्रकार जगत और पत्रकारिता कर्म ने जिस तरह अपने पंख फैलाए हैं, उसकी उड़ान अनेक बार इस पेशे के रडार से बाहर जाती हुई दिखाई देती है। पत्रकारिता के पूर्वजों के दिए हुए संस्कार, भाषाई मर्यादा, सोचने का दायरा जिस तरह अभी भी यहां संजो कर रखा गया है वह पूरे देश से अलग है।