इसे पढ़कर आंसुओं से हर किसी की आंखें भर आएंगी ! ये कैसा हादशा ? पहले पिता, फिर माँ और अब 12 साल का बेटा दुनियां से चल बसा !
* बस अब एक मासूम रह गया जो बे-सहारा अनाथ हो गया ।
यह कहानी मनगढ़ंत नहीं है । यह सच्ची घटना है जो दो मासूम बच्चों के अभागेपन से जुड़ी हुई है । दोनों ने जैसे ही चलना और बोलना सीखा तो उन्हें दुनियां की सारी खुशियाँ देने वाला पिता चल बसा । महज 4 साल बीते थे कि मां को गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया चलने फिरने में जब माँ अशक्त हुई तो दोनों की मासूम हथेलियां दिन रात माँ की सेवा में जुट गई लेकिन माँ भी अपने दोनों कलेजे के टुकड़ों को अस्पताल में अकेला छोड़ बीते वर्ष चल बसी और अब परिवार का सबसे बड़ा बेटा जी हाँ सबसे बड़ा बेटा जिसकी उम्र महज 12 साल की थी वह भी अपने छोटे भाई को अकेला छोड़ अपने माता पिता के पास नीले आकाश में उड़ गया । बस अब रह गया एकमात्र सबसे छोटा महज 8 साल का बदनशीब दीपक जिसके चारों ओर अंधेरे के अलावा अब कुछ नहीं बचा । मासूम दीपक के सिर पर आते जाते लोग ईश्वर को कोसते हुए बस यही कह रहे हैं निर्दयी निठुर विधाता कन चक्रचाल के त्वेन ।
कहते हैं मासूमियत से भरा बचपन जिंदगी के थपेडे नहीं जानता। वह तो बस बारिश की बूंदे और कागज की कश्ती की चाह में आसमां छूने को आतुर रहता है। मगर यह जिंदगी का स्याह पहलू है कि हर किसी के हिस्से एक सा बचपन नहीं आता। किसी का बचपन बिना साए के लावारिश कहताला है, तो कोई निर्धन होने के चलते अपना बचपन खो देता है। ऐसे ही ये कहानी है दवेंद्र की। चमोली जिले के खनौली गांव के दीपक और देवेन्द्र की।
बताते चलें कि 12 साल का मासूम देवेंद्र नही रहा उसे माइनर टीबी की बीमारी थी। देवेंद्र की मौत के साथ ही उसका 8 साल का छोटा भाई दीपक अब इस दुनिया मे अकेला रह गया है।
एक साल पहले की बात है दोनों भाई टीबी की बीमारी से पीडित अपनी मां की सेवा में जुटे हुए थे। (तब भी यूथ आइकॉन ने इस खबर को कई मर्तबा प्रमुखता से प्रकाशित किया था ) । पांच वर्ष पहले टीबी की ही बीमारी के कारण इन दोंनों के सर से पिता का साया उठ गया था । विधवा पेंशन एवं मनेरगा के भरोंसे मुफलिसी में किसी तरह इन दोनों का लालन पालन इनकी मां सुरेशी देवी कर रही थी। सुरेशी देवी को टीबी होने के चलते मेडिकल काॅलेज श्रीनगर में भर्ती होना पड़ा था। रिस्तेदारों एवं संबन्धियों की बेरूखी एवं घर में बच्चों को अकेला न छोडने के चलते सुरेशी उन्हें भी अपने साथ श्रीनगर ले आयी थी। दुखदायी पहलु यह की अब सुरेशी देवी की टीबी की बीमारी 12 साल के देवेन्द्र पर भी फैल चुकी थी। एक वर्ष पहले जहां दवेंद्र की माँ को टीबी ने लील लिया वही दवेंद्र भी अब इस दुनिया मे नही रहा है।
और हमारे प्रधानमंत्री जी कहते हैं :
इस देश को 2025 तक टीबी की बीमारी से मुक्त करना है। देश के प्रधामंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने देश मे सरकार का ये लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके साथ ही सरकार टीबी के मरीजो को जहां दावा मुफ्त में दे रही है वही अब सरकार इन मरीजो को हर माह ₹ 500 की आर्थिक सहायता भी दे रही है। यहां आपको ये बताना भी जरूरी है कि इस देश मे टीबी के मरीजो को दवा खिलाने के लिए सरकार द्वारा बाकायदा स्वास्थ्य कर्मचारीयो की ड्यूटी लगाई जाती है। जिन मरीजो के लिए देश मे इतना कुछ हो रहा हो मन मे एक छवि बनती है कि ऐसी स्तिथि में देश मे टीबी को जड़ से खत्म होने से कोई नही रोक सकता। मगर हमने आज और इससे पहले यही खबर 2016 में आपके सामने रखी थी जिसमें इस परिवार की दुर्दशा पर जोर डाला था सोचा था कि शायद हमारी सरकार व सिस्टम इस बेहद मार्मिक मामले को तुरन्त संज्ञान में लेकर हरकत में आएंगे लेकिन ऐसा हो न सका हम लेखवारों सोच और मासूमों की आस पर सिस्टम ने पूरी तरह से पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी । आज मौत देवेंद्र की नहीं बल्कि हमारे सिस्टम व हमारी निर्दयी हुकूमत की हुई है ।
शर्म … शर्म … शर्म … उत्तराखंड राज्य के कर्ताधर्ताओं के लिए ।
अब नीचे पढ़ें इस परिवार की दुखभरी रिपोर्ट को यूथ आइकॉन 2016 में ही सरकार सामने ले आया था .. लेकिन अफसोश ..
ये देखिए 9 अप्रैल 2016 को श्रीनगर से पंकज मैंदोली की रिपोर्ट जो यूथ आइकॉन वेब पोर्टल पर आज भी मौजूद है :
तब जो लिखा था उसे आज आप फिर से पढ़ें नीचे और बताएं कि क्या हमारी सरकार या स्वास्थ्य महकमे को तब इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए था या नहीं ।
Youth icon Yi National Creative Media Report
09.04.2016
बेहद गरीब माँ एवं उसके दोनों बच्चों को है मदद की दरकार ।
5 वर्ष पहले टीबी की बीमारी से दोंनों के सर से पिता का साया उठ गया ।
मासूमियत से भरा बचपन जिंदगी के थपेडे नहीं जानता। वह तो बस बारिश की बूंदे और कागज की कश्ती की चाह में आसमां छूने को आतुर रहता है। मगर यह जिंदगी का स्याह पहलु है कि हर किसी के हिस्से एक सा बचपन नहीं आता। किसी का बचपन बिना साए के लावारिश कहताला है, तो कोई निर्धन होने के चलते अपना बचपन खो देता है। ऐसे ही एक कहानी है चमोली जिले के खनौली गांव के सात साल के दीपक एवं 11 साल के देवेन्द्र की, ये दोनों टीबी की बीमारी से पीडित अपनी मां की सेवा में जुटे हुए है। पांच वर्ष पहले टीबी की ही बीमारी के कारण इन दोंनों के सर से पिता का साया उठ गया। विधवा पेंशन
चमोली जिले के खनौली गांव के सात साल के दीपक एवं 13 साल के देवेन्द्र , ये दोनों टीबी की बीमारी से पीडित अपनी मां की सेवा में जुटे हुए है। पांच वर्ष पहले टीबी की ही बीमारी के कारण इन दोंनों के सर से पिता का साया उठ गया। विधवा पेंशन एवं मनेरगा के भरोंसे मुफलिसी में किसी तरह इन दोनों का लालन पालन इनकी मां सुरेशी देवी कर रही थी। अब सुरेशी देवी को भी टीबी होने के चलते मेडिकल काॅलेज में भर्ती होना पड़ा। रिस्तेदारों एवं संबन्धियों की बेरूखी एवं घर में बच्चों को अकेला न छोडने के चलते सुरेशी उन्हें भी अपने साथ यहां ले आयी। दुखदायी पहलु यह की अब सुरेशी देवी की टीबी की बीमारी तेरह साल के देवेन्द्र पर भी फैल गई है। डाक्टरों का कहना है कि अगर दूसरे बच्चे को इन से दूर नहीं रखा गया तो इसे भी पर टीबी हो सकती है।
एवं मनेरगा के भरोंसे मुफलिसी में किसी तरह इन दोनों का लालन पालन इनकी मां सुरेशी देवी कर रही थी। अब सुरेशी देवी को भी टीबी होने के चलते मेडिकल काॅलेज में भर्ती होना पड़ा। रिस्तेदारों एवं संबन्धियों की बेरूखी एवं घर में बच्चों को अकेला न छोडने के चलते सुरेशी उन्हें भी अपने साथ यहां ले आयी। दुखदायी पहलु यह की अब सुरेशी देवी की टीबी की बीमारी तेरह साल के देवेन्द्र पर भी फैल गई है। डाक्टरों का कहना है कि अगर दूसरे बच्चे को इन से दूर नहीं रखा गया तो इसे भी पर टीबी हो सकती है। देवेन्द्र समझदार होने के चलते सुबह से शांम तक अपनी मां सुरेशी देवी की सेवा में जुटा रहता है जबकि सात साल के दीपक को यह भी नहीं जानता की वह कहां आया है। ग्रामीण परिवेश में पले इन बच्चों को देख हर किसी का दिल पसीज रहा है। हाॅस्पिटल में महीने भर गुजर जाने के बाद मानों अब दीपक व देवेन्द्र ने हाॅस्पिटल को ही घर समझ लिया है। मां के प्रति देवेन्द्र की सेवा भक्ति देख कर हाॅस्पिटल के सिस्टर, डाक्टर खुश है। जबकि सात साल के दीपक की हरकते किसी के लिए मुसिबते तो किसी के लिए मनोरंजन का साधन बनी हुई है। दिन भर अस्पताल परिसर में भटकने के बाद सांम को ये दोनों बच्चें एक ही बेड पर साथ सो जाते है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इनकी मद्द भी की लेकिन इनके प्रयास भी साकार नहीं हो रहे है। सामाजिक कार्यकर्ता विभारे बहुगुणा का कहना है कि तमाम तरह के एनजीओं एवं सामाजिक संगठन बच्चों एवं असहाय लोगों की मद्द में जुटे रहते है लेकिन अब तक भी इनकी मद्द के लिए किसी का आगे न आना दुर्भाग्य पूर्ण है।
कोई तो पढ़ा दो मेरे बच्चों को :
यह कहना है सुरेशी देवी का। पिछले लम्बे समय से टीबी के उपचार के लिए बेस चिकित्सालय में पडी सुरेशी देवी कहती है कि टीबी के उपचार में लम्बा समय लगेंगा। इनके पिता की टीबी उन पर फैली और अब उनकी टीबी उनके बच्चों पर पसर रहीं है। अगर कोई उनके बच्चों को पढ़ाने में उनकी मद्द कर दे तो वह उनका आभारी रहेंगी। सुरेशी देवी के दोनों बच्चें भी स्कूल जाने के इच्छुक है।
दुखद
Sad!!In 21st Cebtury tb is still epidemic in our country