Keep distance : लड़कियों को लड़कों से दूरी बना कर रखनी है, वे एक-दूसरे को छू नही सकते, बालों का जुड़ा बड़ा भी नही होना चाहिए 21वीं सदी में तुगलकी फरमान !
आज 21वीं सदी में भी सदियों पुरानी सोच को हावी करने की कोशिशे की जा रही है। वो भी भारत जैसे देश में जो बहुत हद तक पश्चिमी सभ्यता को अपना चुका है और बड़ी तेज़ी से इस ओर अग्रसर है। एक खुले और लोकतान्त्रिक समाज में कोइ भी अतार्किक सोच और नियम कानून हमे रुढ़िवादी तो बनाते ही है साथ ही साथ हमारे विकास को भी प्रभावित करते है। और जब समाज को आगे बढ़ाने का जिम्मा सम्भालने वाले शिक्षण संस्थानों में खाफ पंचायतों की तरह नियम बनने लगे तो तब समाज के विकास की दिशा पर प्रश्नचिंह जरुर लगता है।
इन नियमों की बानगी देखिये- लड़कियों को लड़कों से दूरी बना कर रखनी है और वे एक-दूसरे को छू नही सकते, बालों का जुड़ा बड़ा भी नही होना चाहिए और ज्यादा नीचे भी नही, काजल, रंगीन लिपस्टिक का प्रयोग नही होना चाहिए, शर्ट पर बटन होने चाहिए इसमे रंगीन बटन भी चल सकते है, बाल खुले नही होने चाहिए….. ये तुगलकी फरमान खाप पंचायतों के नही है बल्कि अपने आप को खुला समाज कहने और दूसरे धर्मों से अपने धर्म को उदार और महिला हितेषी कहने वाले कैथोलिक धर्म के एक विद्यालय सेंट अलॉयसीस प्री- यूनिवर्सिटी कॉलेज, मंगलुरु के मेनेजमेंट ने अनुशासन के नाम पर निकाला है। कैथोलिक समाज के बारे में एक आम धरना है कि वह खुला समाज है और महिलाओं के अनुकूल यह समाज अन्य धर्मों की अपेक्षा संवेदनशील और खुला समाज है। लेकिन उसी समाज के धर्म के विचारों को आगे बढ़ाने का काम करने वाले इस संस्थान में महिलाओं के लिए इस तरह के नियम दर्शाते है की हर समाज महिलाओं को दबाने का ही काम कर रहे है। और पितृसत्ता की जड़ों की गहराई किस तरह समाज के अंदर तक फैली है और आगे भी फैलती जा रही है इसका ब्यान ये संस्थान के नियम बता रहे है।
आज जब हमारे देश में कई महत्वपूर्ण पदों पर महिलाये है, और हम दुनिया के सामने विश्वगुरु बनने की दौड़ में है तब इस तरह के फरमान हमे किस दिशा में ले जा रहे है? जब विश्वविद्यालय के शैक्षिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परिवेश में ऐसे फरमान जारी किये जा रहे है तब गाँव और देहात के तुलनात्मक रूप से अशिक्षित और पिछड़े समाजों की तो केवल मात्र कल्पना ही की जा सकती है।
महिलाओं के लिए समाज के बनाये नियम मर्यादा और इज्जत के नाम पर महिलाओं को कैदी बनाया रहा है। खाप के अशिक्षित और पिछड़े समाज के महिला विरोधी होने की बात समझ में आती है लेकिन उच्च शिक्षा के संस्थानों में ये फरमान हमारे समाज की रुढ़िवादी जड़ों को अधिक मजबूत करने की दिशा में कदम है। उच्च शिक्षा के संस्थानों में इस तरह के फरमान आने वाले समाज की भयावहता को दर्शा रहे है ।
एक बेहतर दुनिया के लिए, बेहतर परिवार के लिए, अगली पीढ़ी की बेहतर परवरिश और भविष्य के लिए… कुल मिलाकर एक बेहतर जीवन के लिए ज़रूरी है कि औरत और पुरुष के अधिकारों में कोई फर्क़ नहीं समझा जाए; और इस अधिकार में सबसे पहला है- जीवन को एक इंसान के रूप में जीने का अधिकार। लेकिन शिक्षा के संस्थानों में ही भेदभाव किया जायेगा तब समाज के पिछड़े क्षेत्रों की स्थिति का केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। एक प्रगतिशील समाज तभी प्रगति कर सकता है जब महिलाओं की आधी आबादी भी उसके साथ कदम से कदम मिलाती है।
पितृसत्तात्मक समाज शासक वर्ग है। कई बार इस व्यवस्था के खिलाफ संस्थाएं खुलती है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज की जड़े इतनी मजबूत होती है कि ये बदलाव के लिए जन्मी संस्थाएं भी बदलते परिदृश्य में उसी की भाषा बोलने लगती है। इस बदलते दौर में समाज उन सब बातों को नये रूप में विकसित कर के अपना लेता है। जब तक मनोस्थितियाँ नही बदलेंगी समाज उन पुरानी ज्क्दानों में बधां रहेगा, मनुष्य को मनुष्य के समकक्ष नही मानेगा। शैक्षिक संस्थान जितने प्रगतिशील होंगे वो समाज को उसी अनुरूप विकसित करेंगे।और जब तक हर उपेक्षित वर्ग अपने लिए लड़ेगा नही समाज के बनाये पायदानों के खिलाफ आवाज नही उठाएगा तब तक पुरुष प्रधान समाज का रवैया नही बदलेगा।
हम सब की जिम्मेदारी है कि आज 21वीं सदी के बदलते परिदृश्य में समाज के उन सभी नियमों को बदल कर समाज को मनुष्य मानने के प्राथमिक अधिकार मिल सके। इस स्तर पर खड़ा करे कि जिस प्रगतिशील समाज के लिए प्रगतिशील लोगो ने अपना बलिदान दिया ताकि समाज में सबकी प्रगति सुनिश्चित हो सके। शैक्षणिक संस्थानों को, जिनको समाज की प्रगति का दर्पण कहा जाता है इसलिए इन शैक्षणिक संस्थानों की जिम्मेदारी समाज को बराबरी के पायदान पर लाने के लिए काम करने की है। न कि समाज को और अँधेरे में ले जाने वाला।
*शिवानी पाण्डेय
Copyright: Youth icon Yi National Media, 13.079.2016
यदि आपके पास भी है कोई खास खबर तो, हम तक भिजवाएं । मेल आई. डी. है – shashibhushan.maithani@gmail.com मोबाइल नंबर – 7060214681 , 9756838527 और आप हमें यूथ आइकॉन के फेसबुक पेज पर भी फॉलो का सकते हैं । हमारा फेसबुक पेज लिंक है – https://www.facebook.com/YOUTH-ICON-Yi-National-Award-167038483378621/
यूथ आइकॉन : हम न किसी से आगे हैं, और न ही किसी से पीछे ।
weldon shivani .you are a true leader.
बिल्कुल सटीक टिप्पणी आपकी मगर सोचने का विषय ये भी है कि बच्चियां लडकिया कॉलेज में पढ़ने जाती हैं या अपनी हेयर स्टाइल और लिपस्टिक दिखने शिक्षण संस्थान में हर वर्ग का बच्चा पढ़ने आता है अमीर भी और मध्यम परिवार से भी तो अगर कोई नियम है तो बराबरी की भावना पैदा करना भी तो होसकता है जो आज के परिवेक्ष में जरूरी हैं ।
सिक्के के दो पहलू होते है आप क्या देखते है ये आपकी सोच दिखाता है ।ये बात कह कर आप ही लड़के लड़की में फर्क कर रहे है जो की ठीक नहीं । मै इसे व्यवस्था व्यवस्थित करना कह सकती हूँ ।आजकल बच्चे पढ़ने पर् ध्यान न देकर फैशन पर् केंद्रित हो रहे है और आप इसे नकार नहीं सकते । ये मेरा व्यक्तिगत मत है।
शिवानी प्रगति का मतलब क्या ड्रेस जुड़ा और लिपस्टिक ही है और वो भी शिक्षण संस्थाओं में ।एक बार और विचार करे ।
nisha जी बिलकुल आपकी बातों से इत्तेफाक रखती हूँ की कॉलेज में फैसन शो नही होना चाहिए। लेकिन क्या नियम केवल लड़कियों के लिए बनाये जाने चाहिए? और उनमे से भी क्या ये नियम फैशन के लिए है कि लड़के लड़कियों को एक दुसरे को छूना नही चाहिए? co- education के संस्थानों में इस तरह के नियम क्या साबित करते है? और लड़कियां अपने बाल कितने ऊपर कितने नीचे बनाएगी ये स्कूल तक तो अनुशासन के नाम पर समझा जा सकता है लेकिन उच्च शिक्ष्ण संस्थान अपने नाम के आगे उच्च लगाते है उसकी गरिमा को तो समझा जा सकता है। उच्च शिक्षा के संस्थान हमारे दिमाग खोलने के लिए बने होते है न की ये फरमान जारी कर शिक्षा को संकीर्ण दायरे में बाधने के लिए।
nisha जी बिलकुल आपकी बातों से इत्तेफाक रखती हूँ की कॉलेज में फैसन शो नही होना चाहिए। लेकिन क्या नियम केवल लड़कियों के लिए बनाये जाने चाहिए? और उनमे से भी क्या ये नियम फैशन के लिए है कि लड़के लड़कियों को एक दुसरे को छूना नही चाहिए? co- education के संस्थानों में इस तरह के नियम क्या साबित करते है? और लड़कियां अपने बाल कितने ऊपर कितने नीचे बनाएगी ये स्कूल तक तो अनुशासन के नाम पर समझा जा सकता है लेकिन उच्च शिक्ष्ण संस्थान अपने नाम के आगे उच्च लगाते है उसकी गरिमा को तो समझा जा सकता है। उच्च शिक्षा के संस्थान हमारे दिमाग खोलने के लिए बने होते है न की ये फरमान जारी कर शिक्षा को संकीर्ण दायरे में बाधने के लिए।
I also agree with Nisha Ji.
Without having knowing/discussing the matter with college authorities one can not reach to conclusions.
शिवानी पाण्डेय जी आप कि सोच सही है कि हमें 21 वी सदी के अनुसार ही चलना चाहिए, अन्यथा हम पिछड़े ही रहेंगे, परन्तु न जाने कोई तो कारण होगा ही जो उस संसथान ने ऐसा फरमान निकाला, आपको उसकी तह तक जाकर ही कोई निर्णय लेना होगा ।