Khaki me insan : वास्तविक घटनाओं के इर्द गिर्द “खाकी में इंसान” IPS ऑफिसर अशोक कुमार की कलम से !
* इसी वर्ष 15 अक्टूबर 2017 को ADG अशोक कुमार को मिल चुका है यूथ आइकॉन Yi नेशनल अवार्ड ।
देहरादून , यूथ आइकॉन Yi मीडिया ।
खाकी में इंसान इस किताब में ग्रामीण परिवेश से उठकर आई.आई.टी. दिल्ली से शिक्षा प्राप्त कर भारतीय पुलिस सेवा में आए आईपीएस अफसर अशोक कुमार द्वारा कुछ वास्तविक घटनाओं पर आधारित कहानियों के जरिए यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि अच्छी पुलिस व्यवस्था से सचमुच गरीब व असहाय लोगों की जिन्दगी में फर्क लाया जा सकता है।
पुस्तक में आज के समय के ज्वलन्त मुद्दों, जैसे – आतंकवाद, अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई, महिलाओं के प्रति अपराध, समय के साथ बदलते व टूटते हुए मानवीय मूल्य, भू-माफियाओं का बढ़ता हुआ जाल, अपराधियों के बढ़ते हुए हौसले आदि का सटीक एवं यथार्थ चित्रण किया गया है। पुस्तक में दर्शाया गया है कि यद्यपि वर्तमान व्यवस्था में कुछ खामियाँ आ गई हैं फिर भी यदि ऊँचे पदों पर बैठे लोगों में दृढ़ इच्छाशक्ति हो, इंसानियत के नजरिए से सोचने की क्षमता हो और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो यही व्यवस्था, यही सिस्टम लोगों की मदद करने में बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकता है। पुस्तक में थानों की कार्यप्रणाली में बदलाव लाकर जन-समस्याओं की जड़ तक पहुँचने और पुलिस व्यवस्था को लोकतंत्र की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने के तौर-तरीकों का भी जीवन्त उल्लेख किया गया है।
खाकी में इंसान नवंबर 2009 में प्रकाशित हुई थी। 1989 बैच के आईपीएस अफसर अशोक कुमार ने यह किताब उत्तराखंड के कुमायूं रेंज के आईजी पद पर रहने के दौरान लिखी थी। वर्तमान में वह अपर पुलिस महानिदेशक, कानून एवं व्यवस्था, उत्तराखण्ड के पद पर कार्यरत हैं। किताब में लीक से हटकर -इंसाफ की डगर, सेवक नहीं, साहब हैं हम, चक्रव्यूह, पंच परमेश्वर या भू-माफिया, तराई में आतंक की दस्तक जैसी कई घटनाओं का उल्लेख है जिसमें यदि दृढ़ इच्छाशक्ति से काम न लिया जाता तो पीडित को इंसाफ न मिलकर उनकी फाइल सीन फाइल बनकर खत्म हो गई होती।
किताब में रुड़की के पास देहात क्षेत्र में 16 आदमियों द्वारा एक महिला की इज्जत तार-तार करने वाले वाक्ये का भी जिक्र है, जिसमें पंचायत के गलत फैसले ने महिला को ही नहीं बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया था। इस केस में जनपद हरिद्वार के एसएसपी रहते हुए अशोक कुमार ने फैसला देने वाले पंचों को ही नहीं बल्कि रेप करने वाले सभी 16 लोगों को सलाखों के पीछे भिजवाया। श्री अशोक कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद से ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग सहायक पुलिस अधीक्षक (ट्रेनी) के रूप में इलाहाबाद में हुई। वहां उन्हें फूलपुर थाने का थानाध्यक्ष बनाया गया, मगर उन्हें हैरानी उस वक्त होने लगी जब पांच दिन तक भी उनके पास न तो कोई शिकायत आई और न ही कोई शिकायती। बाद में जब उन्होंने थाने के पास ही एक पान की दुकान पर जाकर तहकीकात की तो पता लगा कि थाने के ही दूसरे अफसर पीड़ितों को यह कहकर थाने में आने से रोक रहे थे कि जब तक बड़े साहब यहां हैं तब तक कोई भी उनके सामने शिकायत लेकर पेश नहीं होगा। इसके बाद उन्होंने खुद पान की दुकान पर खड़े कितने ही लोगों को अपने पास बुलाया। अशोक कुमार के मुताबिक यदि हम काम न करने के 50 तरीके अपना सकते हैं तो काम करने के भी 50 रास्ते खोल सकते हैं। बस जरूरत है अपने को साहब न समझकर पब्लिक का नौकर होकर ठीक से काम करने की।